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आज हम आपको तेरहवीं-चौदहवीं सदी (संवत १२५३ ई./६५३ हिज्री से सन १३२५ ई./७२५ हिज्री तक) के हिन्दुस्तान की उस रंगारंग हुनरमंद, शानदार अजीम शख्सियत और अमर हस्ती से मिलवाएँगे जिसने बरबादी और आबादी, तबाही और तामीर (निर्माण करना), जंग और अमन तथा दुख और सुख के बीच निडरता एवं अपने बुद्धि कौशल से एक बेहतरीन किंज़दगी के बहत्तर साल गुज़ारे। यह वि प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय शख़िसयत हैं - तूती-ए-हिंद यानी हज़रत अमीर खुसरो दहलवी। इनका वास्तविक अर्थात बचपन का नाम था - अबुल हसन यमीनुद्दीन मुहम्मद। यह नाम इनके पिता ने इन्हें दिया था जो बहुत ही निडर सिपहसालार एवं योद्धा थे। अमीर खुसरो को बचपन से ही कविता करने का शौक़ था। इनकी काव्य प्रतिभा की चकाचौंध में, इनका बचपन का नाम अबुल हसन बिल्कुल ही विस्मृत हो कर रह गया। अमीर खुसरो दहलवी ने धार्मिक संकीर्णता और राजनीतिक छल कपट की उथल-पुथल से भरे माहौल में रहकर हिन्दू-मुस्लिम एवं राष्ट्रीय एकता, प्रेम, सौहादर्य, मानवतावाद और सांस्कृतिक समन्वय के लिए पूरी ईमानदारी और निष्ठा से काम किया। प्रसिद्ध इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी ने अपने ऐतिहासिक ग्रंथ 'तारीखे-फिरोज शाही' में स्पष्ट रुप से लिखा है कि बादशाह जलालुद्दीन फ़ीरोज़ खिलजी ने अमीर खुसरो की एक चुलबुली फ़ारसी कविता से प्रसन्न होकर उन्हें 'अमीर' का ख़िताब दिया था जो उन दिनों बहुत ही इज़ज़त की बात थी। उन दिनों अमीर का ख़िताब पाने वालों का एक अपना ही अलग रुतबा व शान होती थी। अमीर खुसरो दहलवी का जन्म उत्तर-प्रदेश के एटा जिले के पटियाली नामक ग्राम
में गंगा किनारे हुआ था। गाँव पटियाली
उन दिनों मोमिनपुर या मोमिनाबाद के नाम
से जाना जाता था। इस गाँव में अमीर खुसरो के जन्म की
बात हुमायूँ काल के हामिद बिन
फ़जलुल्लाह जमाली ने अपने ऐतिहासिक ग्रंथ
'तज़किरा सैरुल आरफीन' में सबसे पहले कही। तेरहवीं
शताब्दी के आरंभ में दिल्ली का राजसिंहासन गुलाम
वंश के सुल्तानों के अधीन हो रहा था। उसी
समय अमीर खुसरो के पिता अमीर सैफुद्दीन महमूद (मुहम्मद) तुर्किस्तान
में लाचीन कबीले के सरदार थे। कुछ
लोग इसे बलख हजारा अफ़गानिस्तान
भी मानते हैं। चंगेज खाँ के इस दौर
में मुगलों के अत्याचार से तंग आकर
ये भारत आए थे। कुछ लोग ऐसी भी मानते हैं कि
ये कुश नामक शहर से आए थे जो अब
शर-ए-सब्ज के नाम से जाना जाता है।
ये वस्ते एशिया के तजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान देशों की
सीमा पर स्थित है। उस समय भारत
में कुतुबुद्दीन ऐबक (१२०६-१२१० ई.) का देहांत हो चुका था और उसके स्थान पर उसका एक दास
शम्शुद्दीन अल्तमश (१२११-१२३६ ई.) राज्य करता था। अमीर खुसरो के पिता अमीर
सैफुद्दीन अपने लाचीन वालों के साथ पहले लाहौर और फिर दिल्ली (देहली) पहुँचे। यहाँ
सौभाग्य से शम्शुद्दीन अल्तमश के दरबार
में उनकी पहुँच जल्दी हो गयी। अपने
सैनिक गुणों के कारण वे दरबार में
फ़ौजी पद पर सरदार बन गए। शम्शुद्दीन अल्तमश के पश्चात
शरीफ और अम्न पंसद बादशाह नासिरुद्दीन महमूद ने इन्हें नौकरी दी। गुलाम खानदाने शाही के एक ज़बरदस्त और दबदबे
वाले तख्तनशीं बलबन ने अमीर को औहदा और पटियाली जिला एटा
में गंगा किनारे जागीर दी।
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Content Prepared by Pradeep Sharma Khusro, General Secretary, Amir Khusro Academy (R), R. P. 40, Pitam Pura, Delhi - 88
email: amirkhusrou1@yahoo.co.in
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