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अमीर ख़ुसरो दहलवी


ढकोसले या अनमेलियाँ

ढकोसलों का प्रचलित अर्थ है आडम्बर, पाखंड, ऊपरी ठाट-बाट या एक विशेष प्रकार की कविता, उक्ति, दोहे, जिसका अर्थ न हो और जो इतनी बेतुकी हो कि सुन कर फौरन सी हँसी छूटे। इनका अविष्कार खुसरो ने आम लोगों का मन बहलाने व हँसाने के उद्देश्य से किया था। अमीर खुसरो एक सूफी संत भी थे। सूफीमत या सूफी परम्परा में सूफियों द्वारा लिखित रचनाओं (पदों, दोहों, फुटकल छंदों, गीतों आदि) के दो अर्थ होते हैं। एक ऊपरी अर्थ तो आसानी से हमें न आता है और एक दूसरा उसका आध्यात्मिक अर्थ जो भीतर छुपा हुआ है। अत: जहाँ अमीर खुसरो जी के ठकोसले हँसा कर लोटपोट करते हैं और मन में गुदगुदी पैदा करते हैं तो वहीं वे सूफी विचार धारा लिए हुए, व्यक्ति को कोई न कोई संदेश या शिक्षा भी देते हैं। उदाहरण -


(क) भार भुजावन हम गए, पल्ले बाँधी ऊन।
कुत्ता चरखा लै गयो, काएते फटकूँगी चून।।

(ख) काकी फूफा घर में हैं कि नायं, नायं तो नन्देऊ
पांवरो होय तो ला दे, ला कथूरा में डोराई डारि लाऊँ।।

(ग) खीर पकाई जतन से और चरखा दिया जलाय।
आयो कुत्तो खा गयो, तू बैठी ढोल बजाय, ला पानी पिलाय।

(घ) भैंस चढ़ी बबूल पर और लपलप गूलर खाय।
दुम उठा के देखा तो पूरनमासी के तीन दिन।।

(ड़) पीपल पकी पपेलियाँ, झड़ झड़ पड़े हैं बेर।
सर में लगा खटाक से, वाह रे तेरी मिठास।।

(च) लखु आवे लखु जावे, बड़ो कर धम्मकला।
पीपर तन की न मानूँ बरतन धधरया, बड़ो कर धम्मकला।।

ऊपर लिखित (घ) ढोकसले के कइ अन्य रुप भी मिलते हैं। जैसे -

(१) भैंस चढ़ी बबूल पर और लप लप गूलर खाए।
उतर उतर परमेश्वरी तेरा मठा सिरानों जाए।।

(२) भैंस चढ़ी बिटोरी और लप लप गूलर खाए।
उतर आ मेरे साँड की, कहीं हिफ्ज न फट जाए।।

(३) भैंस चढ़ा बबूल पर गप गप गूलर खाय।
दुम उठा के देखा तो ईद के तीन तिन।।

इन ढकोसलों के साथ रोचक एवं हास्यात्मक किस्से भी जुड़ हैं। तो आइए एक ऐसा ही किस्सा सुने -

'एक बार आशु कवि अमीर खुसरो गाँव की कच्ची पगडंडी से होते हुए पैदल कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्हें बहुत जोर से प्यास लगी। गला प्यास के मारे सूखा जा रहा था। खुसरो ने फौरन आसमान की ओर देखा। कुछ ही दूरी पर आसमान में उन्हें पक्षियों का एक झुंड मँडराता न आया। वे फौरन भॉप गए कि वहीं पानी हैं क्योंकि पक्षी पानी के आसपास ही उड़ा करते हैं। वे तुरन्त उसी दिशा में चल दिए। पहुँच कर देखा कि एक कुँए पर चार ग्रामीण पनिहारिने अपनी-अपनी मटकी में पानी भर रही हैं। और आपस में खूब हँसी मजाक और ठिठोली कर रही हैं। वे चारों बहुत ही हँसमुख प्रकृति की दिखती थीं। खुसरो ने कुँए के पास जा कर उनमें से एक से पानी पिलाने को कहा। अचानक एक अजनबी को देख कर सब चुप हो गयीं। इनमें से एक उन्हें पहचानती थी। वह बाकी औरतों से बोली - अरे ठहर तो जरा। ये तो अमीर खुसरो हैं, आशु कवि मीर खुसरो तुरकवा। तब सब ने मिल कर उनसे पूछा - क्या तुम ही दरबारी शायर अमीर खुसरो हो जो भाँति-भाँति की मुकरियों, पहेलियों, ठकोसले, निस्बतें, सावन, बसंत, बरावा, हिंडोला (झूला), साजन, विदाई, शादी ब्याह आदि के गीत लिखते हो। खुसरो ने बेहद सहजता एवं शिष्टाचार से जवाब दिया - हाँ हूँ तो वही। इतना सुनते ही एक बोली - तुम तो दरबारी शायर हो, दरबार के लिए अधिक लिखते हो। हमारे लिए भी तो कुछ लिखो। चलो खीर पर कुछ सुनाओ? मेरी दादी बहुत ही स्वादिष्ट खीर बनाती है। इस पर दूसरी युवती ने पहली की बात काटते हुए कहा, 'तुझे तो हमेशा खाने-पीने की पड़ी रहती है। पेटू कहीं की। अरे तुरकवा तुम खीर पर नहीं। चरखे पर सुनाओ, मेरे दादा जी चरखे पर सूत बहुत अच्छा कातते हैं। तीसरी युवती भी फिर चुप न रह सकी। तपाक से उसने भी अपनी फ़रमाइश की - अरे चरखा भी कोई सुनाने की चीज़ है। उसने मज़ाक के उद्देश्य से कहा कुत्ते पर सुनाओ कुत्ते पर। इस पर चौथी युवती बिगड़ते हुए ज़ोर से बोली, छि: छि: कुत्ता। कुत्ता तो मरा होता है गंदा। यह भी कोई सुनाने की चीज़ है। सुनाना है तो ढोल पर सुनाओ। मेरी अम्माँ बहुत ही अच्छा ढोल बजाती है और मुझे भी सिखाती है। इस पर खुसरो ने ज़रा सख़ती से कहा - ठीक है सबकी फ़रमाइश पर सुनाऊँगा। लेकिन पहले पानी तो पिलाओ। मारे प्यास के मेरा दम निकला जा रहा है। वे सभी युवतियाँ एक स्वर में एक साथ बोलीं 'जब तक हमारी बात पूरी नहीं कर दोगे हम पानी नहीं पिलाएँगी और न ही तुम्हें पानी देंगे। अजी तुम तो ऐसे ही नाम के खुसरो बनते फिरते हो। कुछ सुनाओ जरा चटपटी जरा ठनकदार। तब खुसरो ने झट कहा -

"खीर पकाई जतन से और चरखा दिया जलाय।
आया कुत्ता खा गया (अब तू), बैठी ढोल बजाय। ला पानी पिलाय।

यह सुनकर सभी पनिहारिने आश्चर्य चकित रह गयीं। इतनी शीघ्र इतनी बढिया तुकबंदी। अमीर खुसरो की विलक्षण प्रतिभा व बुद्धि देखिए कि उन्होंने एक ही दोहे या ठकोसले में चारों पनिहारिनों की फ़रमाइशें ही नहीं पूर्ण कर दी वरन उसके माध्यम से सूफ़ी संदेश भी दिया। इसी तरह अन्य कई क़िस्से ठकोसलों के सात मशहूर हैं।

जैसा कि हम पहले ही विदित कर चुके हैं कि अमीर खुसरो बहुभाषी थे। उन्होंने देवभाषा संस्कृत में भी लिखा। अमीर खुसरो की काव्य निर्माण संबंधी उक्तियाँ भी प्राप्त होती हैं। यह संस्कृत से प्रभावित लगती हैं। जैसे -

"उक्ति धर्म, विशालस्य, राजनीति नवंरस।
षट भाषा पुणांच कुराणांच कथितं गया।।

नोट - इस उक्ति में रहस्यवादी ढंग से नायक की नायिका से मिलने की तीव्र उत्कंठा प्रतीत होती है। इस भाँति काव्य निर्माण संबंधी खुसरो की उक्तियाँ भी प्राप्त होती हैं। उक्ति का अर्थ कथन, वचन, अनोखा वाक्य, विचार, चमत्कार पूर्ण कथन आदि है।

 

शास्रीय गायक उस्ताद हफीज अहमद खान

 

उप शास्रीय गायिका विधा राव
अमीर खुसरो सेमीनार (९ अगस्त २००३) में अमीर खुसरो पर डॉ. लक्ष्मीमल सिंघवी द्वारा लिखित कविता गाते हुए।

शिक्षित वर्ग में अमीर खुसरो दहलवी की निम्न प्रकार की प्रहेलिकाऐं भी बूझी जाती रही हैं। उदाहरण -


"अजा पुत्र कौ शब्द लै, गज कौ पिछलौ अंक।
सो तरकारी लाय दै, चातुर मेरे कंत।।"

उत्तर - मैथी।

यह इस प्रकार है - अजा पुत्र हुआ बकरा, उसका शब्द (आवाज) हुआ 'मैं' गज हुआ हाथी। उस शब्द का अंतिम अक्षर हुआ 'थी'।

यहाँ यह स्पष्ट कर दें कि अमीर खुसरो द्वारा लिखित हिन्दवी कलाम की जो एकमात्र प्रति उपलब्ध है यह है देवनागरी लिपि में न हो कर फारसी अथवा उर्दू लिपि में है। यह बर्लिन (जर्मनी) के राष्ट्रीय पुस्तकालय (स्टाट्स बिब्लिओथिक) में सुरक्षित रखी है जिसे उर्दू के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. गोपी चंद नारंग ने खोज निकाला है। यह हस्तलिखित पांडुलिपि इस बात को प्रमाणित करती है कि अमीर खुसरो फारसी के अलावा हिन्दवी भाषा में भी लिखते थे। इस पुस्तकालय में रखा हुआ हस्तलिखित पांडुलिपियों का यह खजाना ओरंटालिया और र्जिंश्प्रगयाना के नाम से मशहूर है। इस पांडुलिपि में खुसरो की डेढ़ सौ पहेलियाँ हैं। डॉ. नारंग ने इस दावे का उर्दू और हिन्दी के कई विद्वानों ने खंडन किया है। ये वास्तव में अमीर खुसरो के विरोधी लोग हैं। खैर इस हिन्दवी कलाम का अध्ययन करने पर पता चलता है कि इनमें से अधिकांश रचनाएँ पहली बार प्रकाश में आई हैं। डॉ. नारंग कह यह योगदान प्रशंसनीय है। अगर यह कहा जाए कि उन्होंने खुसरो को पुन: जीवित किया है तो यह गलत न होगा।

 

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