बुंदेलखंड संस्कृति |
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बुंदेली समाज और संस्कृति
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किसी
भी देश की संस्कृति उस देश के धर्म,
दर्शन, साहित्य, कला तथा राजनितिक
विचारों पर आधारित रहती है। भारत
की संस्कृति अनेक तत्वों के मिश्रण से
बनी है। विश्व की अनेक प्राचीन संस्कृतिया
नष्ट हो गई, परन्तु भारतीय संस्कृति
की धारा आज भी प्रवाहित है। भारतीय
संस्कृति के इतिहास पर दृष्टिक्षेप करने
के पूर्व उसकी विशेषताएँ देखना आवश्यक
है। ने इस प्रकार है - (१)
भारत की संस्कृति आध्यात्म भावना
पर आश्रित है। यहाँ भौतिकवाद की
अपेक्षा अध्यात्मवाद पर अधिक बल दिया
गया है। (२)
इस संस्कृति में सांसारिक सुख
की उपेक्षा की दृष्टि से नही देखा गया
है। मनुष्य की सर्वांगीण उन्नति के लिए
उसके शरीर, मन और आत्मा की उन्नती,
भौतिक सुख तथा आध्यात्मिक संतोष
आवश्यक है। धर्म, अर्थ, काम के साथ अंतिम
ध्येय मोक्ष होता है। धर्म का पालन
कर अर्थ प्राप्त कर तथा धर्मसम्मत काम
का सेवन कर ही मनुष्य अपने अंतिम
लक्ष्य (मोक्ष) को प्राप्त कर सकता है। (३)
मानव की सर्वांगीण उन्नति के लिए वर्ण
और आश्रम-धर्म का पालन आवश्यक माना
गया है। अपनी और समाज की उन्नति तभी
हो सकती है जब मनुष्य वर्ण और आश्रम
से स्वधर्म का पालन करे। इसका पालन
करते हुए उसे अपने लोकिक सुख और
समृद्धि का अवसर मिलता है तथा मनुष्य
का अंतिम लक्ष्य भी याद रहता है। इसी
वर्णाश्रम व्यवस्था के आधार पर प्राचीन
भारत में अनेक संस्थाएं तता परम्पराएं
निर्मित हुई। (४)
अन्य विचारधाराओं के प्रति सहिष्णुता
भारतीय संस्कृति की विशेषता
रही है। भारतीय संस्कृति "वसुधैव
कुटुम्बकम्' (सारा संसार एक परिवार
है) की भावना से अनुप्रणित है। (५)
इस संस्कृति का अन्य लक्षण ग्रहणशीलता
रहा है। इसने द्रविड़, आर्य, यवन, शक,
कुषाण, हूण, अफ़गान, तुर्क आदि अनेक जातियों
के उपयोगी विचारों तथा परम्पराओं
को समय-समय पर ग्रहण किया है। सदाचार-संबलित
भारतीय संस्कृति का प्रचार भारत के
बाहर भी हुआ। परन्तु वह तलवार
के बल पर नहीं उदारता और सहिष्णुता
के आधार पर। भारतीय संस्कृति से
इतिहास को कालक्रमानुसार देखने
से ज्ञात होता है कि इस संस्कृति के
विकास मे अनेक उतार-चढ़ाव आए, परन्तु
अपनी विशेषताओं के कारण सभी बाधाओं
को पार कर भारतीय संस्कृति आज जीवित
है। समाज
यदि सामाजिक मूल्यों की विभिन्न संबंध-परताओं
और वर्गीकरण की कुल जमा है तो संस्कृति
उसका एक क्रियात्मक रुप है। इसे दूसरे
शब्दों में जाये तो ""संस्कृति की
किसी जन जीवन-पद्धति के रुप में और
समाज को उसी का अनुसरण करने वाले
व्यक्तियों का समूह माना जायेगा। संस्कृति
विभिन्न युगों में स्वरुप धारण करती
है और संस्कृति संश्लेण की प्रक्रिया
अत्यंत सूक्ष्म होती है। जैसे समग्र प्रवाह
में एक बिन्दु का पृथक आंकना दुष्कर
है, वैसे ही सांस्कृतिक इकाई के
अन्तर्गत एक विशिष्ट प्रभाव को विश्लेषित
करना कठिन है। आज का बुन्देली समाज
विभिन्न युगीन समाजों और संस्कृतियों
का परिणाम है। इसके उद्भव और
विकास की प्रक्रिया अत्यन्त आश्चर्यजनक
है। "बुंदेली' शब्द स्वत: पाँच
सौ से एक हजार वर्षों के बीच अपनी
प्रकृति का निर्माण कर पाया है जबकि
इसको वहन करने वाले समाज और
संस्कृति का इतिहास सभ्यता के उदय
काल से जुड़ा है।'' अध्ययन
की सुविधा के लिए मैंने बुंदेली समाज
और संस्कृति के विभिन्न युग माने
हैं - |
:: अनुक्रम :: |
© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र
Content prepared by Mr. Ajay Kumar
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