बुंदेलखंड संस्कृति

लक्ष्मीबाई रासो

अ-मात्रिक सम छन्द
छन्द  कवि  विवरण

तोमर

श्रीघर

१२ मात्रा अन्त में एक गुरु एक लघु
श्रीधर कवि के द्वारा प्रयुक्त छंदों में मात्रा की उचित प्रयोग दिखलाई पड़ता है, परंतु इस कवि ने छन्द की चरण संख्या निर्धारित नहीं रखी है। प्रायः दो-दो पृष्ठों तक एक ही छंद समाप्त हुआ है।

चौपाई

किशुनेश गाडर रायसा

१५ मात्रा अन्त में गुरु लघु किशुनेश के द्वारा प्रयुक्त इस छन्द में १६ मात्रा पाई जाती हैं और यह चौपाई मदनेश के अधिक निकट है। इन्होंने इस छन्द के द्वारा सेनापतियों की भाग दौड़ का वर्णन किया है।

मदनेश ने इस छंद का प्रयोग नाम मात्र को किया है। इन्होंने चौपही तथा चौपाई नाम से जिस छंद का प्रयोग किया है वह १६ मात्रा वाली चौपाई छंद के अधिक निकट है, अतः इसका अध्ययन चौपाई छन्द के अन्तरगत किया जायेगा।

"गाडर रायसा' में कुछ स्थानों पर इसका प्रयोग किया गया है। कवि ने इस छंद में १५ मात्रा तथा । का पूर्ण निर्वाह किया है।

चौपाई

गुलाब मदनेश गाडर रायसा

१६ मात्राम अन्त में गुरु लघु वर्जित मदनेश जी ने इस छंद के प्रयोग में बहुत असावधानी की है। मात्रओं की संख्या १५ से लेकर १७ तक पाई जाती है। पर इस प्रकार की चौपाइयाँ कम ही हैं। अधिकांशतः १६ मात्रायें ही हैं। १५ मात्रा का उदाहरण निम्न प्रकार है -

""तुरत बाइ जब पौंची तहाँ। तोप कमानी लागी जहां।
१५ मात्रा १५ मात्रा

१७ माता का उदाहरण निम्नानुसार है-

""ताकै गरै डार सो दीना। बोली रानी वचन प्रवीना।।''

१७ मात्रा १८ मात्रा

मदनेश जी ने एक स्थान पर इसका नाम चौपदी दिया है, परन्तु वास्तव में वह है, चौपाई ही।
गाडर रायसा में इस छंद का अल्प प्रयोग किया गया है। छंद शास्र की दृष्टि से चौपाइयां ठीक हैं। यथा-

""कासी लौट घरैं जब आए। चिट्ठी लिखी नाऊ पठवाए।।''
१६ मात्रा १६ मात्रा

अरिल्ल

चन्द, जोगीदास प्रधान आनन्दु सिंह कुड़रा 

१६ मात्रा तथ अनत में ११ अथवा ।चन्द द्वारा प्रयुक्त इस छंद में १६ मात्रायें तथा प्रधान आनन्द ११ हैं। जोगीदास ने दलपति राव रायसे में एक स्थान पर केवल चार अरिल्ल छंदों का प्रयोग किया है। इनके द्वारा प्रयुक्त सभी अरिल्ल सदोष है। उनमें से किसी भी छंद के किसी भी चरण में मात्राओं का उचति निर्वाह नहीं किया गया है। प्रायः १८, १९, २०, २१ तथा २२ मात्राओं वाले चरण पाये जाते हैं। दलपति राव रासो में इस छंद में शुभकर्ण और दलपति राव की विजय का वर्णन किया गया है।

प्रधान आनन्द सिंह कुड़रा ने "बाघाट कौ रासौ' में एक स्थान पर चार तथा त दूसरे स्थान पर एक, कुल पांच अरिल्लों का प्रयोग किया है। वे सभी दोषपूर्ण हैं। छंद के चारों चरणों में २२-२१ तथा २१-२२ मात्राओं का क्रम पाया जाता है। इन्होंने इस छंद के द्वारा सलाह मशविरा तथा सेना प्रयाण का वर्णन किया है।

पध्धरी

जोगीदास गुलावब किशुनेश मदनेश

१६ मात्रा अन्त में नगण। 

जोगीदास के द्वारा प्रयुक्त यह छंद सदोष है। कहीं कहीं १५ मात्रा तथा अन्त में नगण पाया जाता है। एकाध स्थान पर चरणान्त में । भी तथा चरण संख्या ४ के स्थान पर ८ हो गई है। एक स्थान पर तो चरण संख्या ४० पाई जाती है, अथवा लिपिकारों के प्रमाद से छंद गणना में यह भूल हुई है। दलपति राव रासो में इस छंद के द्वारा सेना की कूच तथा दूत गमनागमन का वर्णन किया गया है। इन्होंने इस छंद का नाम पध्धर भी लिखा है।

शत्रुजी रासो में किशुनेश भाट ने एक सथान पर केवल ५ पध्धरी छंद दिए हैं। इन्होंने इस छंद क्षरा अवतार वर्णन एवं राजा के यश का वर्णन किया है।
"मदनेश' ने जिस छंद कोकेवल "छंद' नाम दिया है, उनमें से बहुत से पध्धरी छंद हैं। इन छंदों द्वारा कवि ने सेना प्रयाण, युद्ध, लूट तथा युद्ध सामग्रियों का वर्णन किया है।

रोला

जोगीदास

११-१३ की यति से २४ मात्रायें।
दलपति राव रासो मे प्रयुक्त इस छंद में मात्राओं की शुद्धता पर तो ध्यान दिया गया, पर एक ही छंद में १० चरण रख देने से छंद दोषपूर्ण हो गया है। जोगी दास ने इस छंद के द्वारा शूरवीरों का वर्णन किया है।

गीतिका

किशुनेश

२६ मात्रा, १४-१२, अन्त में लघु गुरु शत्रु जीत रासो में तीन स्थान पर इस छंद का प्रयोग हुआ है। इस रासो में ३० गीतिका छंद हैं, जिनमें तीन छंदों में चार-चार चरण हैं। शेष्ज्ञ सभी छंदों में दो-दो चरण रखे गए हैं। किशुनेश ने हरि गीतिका छंद को ही गीतिका के नाम से प्रयुक्त कर दिया है। क्योंकि इनके द्वारा प्रयुक्त गीतिका छंदों में २८ मात्राओं वाले चरण पाये जाते हैं। इस छंद के द्वारा इस ग्रन्थ में सेना प्रयाण, राजा का युद्ध के लिए सजकर तैयार होने तथा युद्ध प्रयाण का वर्णन किया गया है।

हरिगीतिका

मदनेश

१६, १२ कुल २८ मात्राओं का चरण अन्त में लघु गुरु "मदनेश' ने इस छंद की पद संख्या पर ध्यान नहीं दिया है। इस छंद के द्वारा युद्ध क्षेत्र में वीरों के युद्ध कौशल पैतरे बाजी का स्वाभाविक चित्रण किया गया है।

त्रिभंगी

जोगीदास किशुनेश श्रीधर

१०, ८, , ६ की यति पर ३२ मात्रा तथा अन्त में गुरु वर्ण जोगीदास ने केवल एक स्थान पर एक छंद का प्रयोग किया है, जिसमें छः चरण हैं। इस छंद के द्वारा पठानों की जातियों का वर्णन किया गया है।

किशुनेश के ग्रन्थ में कुल चार त्रिभंगी छंद हैं। इनके द्वारा प्रयुक्त इस छंद में चार चरण हैं। इन्होंने इस छंद के द्वारा सैन्य शक्ति तथा वीरत्व का ओजपूर्ण वर्णन किया है।

"श्रीधर' ने इस छंद के द्वारा वीरों और सरदारों की युद्ध सज्जा तथा वीर जातियों का वर्णन किया है। इनके द्वारा प्रयुक्त इस छंद में ८ चरण पाए जाते हैं।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि इन कवियों ने इस छंद की चरण संख्या निर्धारित नहीं रखी है, परन्तु सबने मात्राओं आदि के अनुसार छंदों का ठीक प्रयोग किया है।

आल्हा चौपाई

मदनेश

"मदनेश' जी द्वारा प्रयुक्त आल्हा चौपाई छंद के प्रथम और तृतीय चरण में १२-१२ ममात्रायें, दूसरे और चौथे चरण में १३-१३ मात्रायें, चरणान्त में सामान्यतः रगण और जगण नहीं आता, अन्त में। होता है। यह छंद तुकांत होता है इसे प्रायः दुत दादरा ताल में गाया जाता है। यह ३१ मात्राओं और अन्त में गुरु लघु वाले आल्हा छंद से भिन्न है।

सिहर

"मदनेश'

मदनेश द्वारा प्रयुक्त सिहर सैर ही है। साधारण तौर पर सेर के प्रारम्भ में एक दोहा रखा गया है, पश्चात २२ मात्राओं की दादरा ताल की दो पंक्तियाँ होती हैं, जिसकी अन्तिम पंक्ति टेक ध्रुव पंक्ति होतीहै, फिर उसी तरह के चार-चार चरणों के चार चौके होते हैं। सभी चौकों के अन्तिम चरण में वहीं धुव पंक्ति होती है। मदनेश के सैरों में आठ-आठ पंक्तियों के चार-चार चौके पाए जाते हैं। सैर छंद बुन्देलखण्ड में ग्रामीण अंचलों में आज भी जनप्रिय है। सैर गायक मण्डलियाँ बाँधकर ढोलक पर इसे गाते हैं। मदनेश ने लक्ष्मीबाई रासो के छठवें भाग में सभी सिहर या सैर छंद ही रखे हैं, तथा समाप्ति पुष्पिका में भी छंद का उल्लेख इस प्रकार किया है -"" ....... सिहर छन्दानुसारेण पत्र गमनागमनं नाम षष्ट भाग सम्पूर्ण ........'' इस छंद के द्वारा मदनेश ने पत्र के आने जाने तथा झाँसी में पराजय के पश्चात हुई भारी हानि से दु:खी टेहरी वाली रानी के दु:ख और पश्चाताप का वर्णन किया है।

दोहा, दोहरा

चंद जोगीदास गुलाब

विषम चरणों में १३-१३ एवं सम चरणों में ११-११ मात्रायें अन्त में । दोहा छंद का प्रयोग प्रायः सभी कवियों ने किया है। सरलता के कारण ही इसे अधिक अपनाया गया है।

किशुनेश,

श्रीधर

उन्होंने इस छंद के द्वारा चिट्ठी भेजने, सेना प्रयाण, सरस्वती, गणेश आदि देवताओं तथा गुरु और ईश्वर की वन्दना, राज्य वंशों का वर्णन, ग्रन्थ निर्माण का उद्देश्य, कवि परिचय, तिथ निर्देश, आश्रयदाता की प्रशंसा युद्ध की तैयारी, उपदेश, #ीनति आदि विषयों का प्रतिपादन किया है। घटना का परिचयात्मक रुप प्रस्तुत करने के लिए भी इस छन्द का प्रयोग किया गया है।

प्रधान आनन्द सिंह 

प्रधान कल्याणसिंह

मदनेश, भैरांलाल

छछूंदर रायसा

घूस रायसा पृथीराज

उपर्युक्त दोहा छंद के दोन नाम मिलते हैं, दोहा और दोहरा। दोहरा दोहा का ही राजस्थानी संस्करण है। प्रधान आनन्द सिंह कुड़रा ने "बाघाट का रासो' में सभी स्थानों पर "दोहरा' नाम का ही प्रयोग किया है, केवल एकस्थान पर "दोहा' नाम प्रयुक्त हुआ 
है।

साकी 

मदनेश

साकी या साखी वास्तव में दोहा ही है। दोहा की भांति ही इसमें भी मात्राओं का क्रम १३-११ ही होना चाहिए। परन्तु गाने वालों ने गेयता के लिए मुख सुख की दृष्टि से इसमें कुछ और शब्द या शब्दांश जोड़कर साकी नाम दे दिया। बम भोला गाने वालो के मुंह से भी दोहा का परिवर्तित गेय रुप सुना जा सकता है। "मदनेश' द्वारा प्रयुक्त साकी छंद का एक उदाहरण निम्न प्रकार है-

""इतलख आवत बाई साब कौं, सूरन कौं चड़ौ रन चाउ। 
मरबे को जे डरपें नहिं, उर ओडें, सनमुख घाउ।।''

उपर्युक्त साकी का दोहा रुप निम्न प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है-

""इत लखबाई साब कौ, सूरन कों रन चाउ।
मरबे कों डरपें नहिं, ओड़े सनमुख घाउ।।

कहीं-कहीं पर तो "मदनेश' जी ने शूद्ध दा#ेहा ही साकी के नाम से लिख दिया है। तथा किसी छन्द में साकी और दोहा कामिला जुला रुप देखा जा सकता है-

--कसक रयौ है कोमल जांघ में, गोली कीनों घाउ।
तुरत मुसाफ बुलाय कें , तब ताकौ जतन कराउ।।

उपर्युक्त साकी के द्वितीय चरण में ११ तथा तृतीय चरण में १३ मात्रायें है, जैसाकि दोहे में होना चाहिए।

एक स्थान पर आधी साकी और आधा दोहा रखा गया है-

"अस कहकें बाई ने सब खुस कर लये, और विदा करी है फेर।
लेउ बुलाय वीन खाँ, "मदन' न लागें देर।।'

उपर्युक्त छंद में प्रथम पंक्ति साकी की और दूसरी पंक्ति देहा की है।

किसी किसी साकी की लय आल्हा चौपाई से मिलती हुई है। असल में आल्हा चौपाई के पूर्व साकीका प्रयोग गेयता और लय बद्धता की दृष्टि से ही किया गया है।

सोरठा

जोगीदास श्रीधर

विषम चरण में ११, सम चरण में १३ कुल २४ मात्रायें
यह छन्द दोहा का उल्टा रुप है।

जोगीदास ने इस छंद द्वारा युद्ध तथा युद्ध विजय की सूचना देने, स्थान व घअना आदि का सूत्र रुप में परिचय देने, समाचार भेजने, मुसलमान सरदारों की युद्ध की सज्जा आदि का वर्णन किया है।

श्रीधर ने सेना प्रयाण, युद्ध सज्जा, घोड़ा की जातियों आदि का वर्णन सोरठा द्वारा किया गया है।

कल्याण सिंह ने इस छंद के द्वारा वीरों का नम उल्लेख, युद्ध नीति की चर्चा, वीर प्रशंसा आदि विषयों का वर्णन किया है।

"मदनेश' ने दूतों, वकीलों, पंचों आदि की बातचीत तथा तोप का गोला चलने का वर्णन इस छंद में किया है।

भेरों लाल ने घावन भेजने, समाचार ले जाने के वर्णन ही इस छंद के द्वारा किए हैं।

पृथ्वीराज ने अपने "घूस रायसा' में केवल तीन सोरठा छंद प्रयुक्त किए हैं। इनमें से दो के सभी चरणों में १३-१३ मात्रायें पाई जाती हैं।

अमृत ध्वनि

गुलाब कल्यण सिंह   

एक दोहा- एक रोला इस छंद के रोला में ८-८ मात्राओं की यति पर यमक को तीन बार झमकाव के साथ रखा जाता है। रोला के चारों चरणों में २४-२४ मात्रायें होती हैं। इस प्रकार इस छंद के कुल ६ चरणों में १४४ मात्रायें होती हैं।

मदनेश

प्रधान कल्याण सिंह ने जिस अमृतध्वनि का प्रया#ेग किया है, उसमें केवल रोला ही है। इनके द्वारा प्रयुक्त इस छंद में ८-८-८-६ की यति पर प्रत्येक चरण में ३०-३० मात्रायें पाई जाती हैं तथा चरण के अन्तिम शब्द या शब्दांश से अगले चरण का प्रारम्भ किया गया है।

"मदनेश' द्वारा प्रयुक्त अमृतध्वनियों में पहले दोहा फिर रोला है, तथा दोहे के अंतिम चरण से रोला का प्रारम्भ किया गया है। वास्तव में अमृत-ध्वनि में ७-७ मात्राओं के तीन खण्ड होते हैं, जिनमें कुल २१ मात्राये होती है, परंतु छंद के चरण में प्रयुक्त शब्दों के वर्णों में ध्वन्यात्मकता केलिए द्वित्व उत्पन्न करके कुछ और मात्रायें बढ़ाकर उसे २४ मात्राओं का कर लिया जाता है।
"मनदेश' जी नेकई प्रकार की अमृतध्वनियों का प्रयोग किया है। डॉ. भगवान दास माहौर के अनुसार "इनका सामान्य लक्षण यही है कि इनक आरम्भ में एक दोहा होता है, और फिर दोहे के अंतिम शब्दों को दुहराकर कोई अन्य छंद आता है, तदनन्तर एक उल्लाला छंद। इन छंदों में आन्तरिक अनुपा#्रस जिसे "जमक' भी कहे हैं उसी प्रकार होता है जैसे नियमित टकसाली अमृतध्वनि में, और अन्तिम चरणके अन्त के अन्त में वे ही शब्द आते हैं जो दोहे के आदि में।"
"मदनेश' की एक अमृध्वनि की रचना कुछ विशेष निराली है। इसमें इन्होंने पहले दोहा फिर १६ मात्रा वाले दो चरण तथा अंतिम दो चरण २८ मात्रा वाले हैं। कुछ अमृतध्वनियों में पहले दोहा है, फिर ३२ मात्रा वाले दो रोला के चरण तथा दो २४ मात्राओं वाले रोला के चरण पाये जाते हैं। एक अमृतध्वनि में पहले दोहा फिर दो चरण ४० मात्रा वाले तथा बाद में २४ मात्रा वाले दो चरण हैं। एकअमृत ध्वनि में दोहे के पश्चात् २८-२८ मात्राओं के दो चरण फिर २६ मात्रा का एक चरण फिर १ चरण २८ मात्रा का है। संभवतः इस छंद में कवि सभी चरण २८ मात्राओं के ही रखना चाहता होगा, पर भूल से एक चरण में २६ मात्रायें रह गई हैं। जिस छंद का नाम "मदनेश' ने "अमृत ध्वनि दूसरी' लिखा है, उसमें पहले दोहा फिर २४-२४ मात्रा वाले रोला के चार चरण प्रयुक्त किए हैं।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है, कि इस छन्द को भिन्न भिन्न प्रकार से प्रयुक्त करने की क्षमता मदनेश में थी अथवा उन्होंने कवि स्वातन्त्रय के नाम पर कुछ असावधानी की है।

कुण्डलिया गुलाब

कुण्डरिया श्रीधर, प्रधान आनन्दसिंह प्रधान कल्याणसिंह मदनेश, गाडर राया घूस रायसा (पृथीराज)

(दोहाअ रोला कुल ६ चरण और १४४ मात्रायें)

विभिन्न कवियों ने इस छन्द के द्वारा नीति, विचार प्रधान विमर्श तथा युद्ध चर्चा आदि का वर्णन किया है।

छप्पय छप्पै छप्प

चंद जोगीदास गुलाब

रोला और उल्लाला को मिलाकर छप्पर बनता है। पहले चार पद रेला के फिर दो पद उल्लाला के होते हैं। उल्लाला में कहीं २६ कहीं २८ मात्रायें होती हैं और पूरे छप्पय में कुल १४८ या १५२ मात्रायें होती हैं। चन्द ने स छन्द का प्रयोग विभिन्न विषयों के वर्णन के लिये किया है, किन्तु परिमाल रासो के उपलब्ध अंश में केवल एक छप्पय पारस्परिक चर्चा के विषय में प्रस्तुत किया गया है।

जोगीदास ने इस छन्द के द्वारा राजा के शौर्य एवं वैभव की प्रशंसा, युद्धस्थल में वीरों की दर्पेक्तियं सेना प्रयाण, सेना की गणना व युद्ध वर्णन, वीरों के लिए तैयार होना, दलपति राव की मृत्यु, दलपति राव की दाह क्रिया, दान वैभव, आदि विषयों का वर्णन किया है। कहीं-कहीं इनके छप्पय सदोष हैं। एक छप्पय के रोला के तीसरे चरण में २२ मात्रायें ही हैं, तथा उल्लाला में एक ही चरण है, तथ यह छप्पय दो को मिलाकर एक है इसकी पद संख्सा ११ है। यहाँ छन्द गणना में भूल हुई लगती है। एक स्थान पर प्रयुक्त छप्पय के रोला के चारों चरणों की मात्रायों में व्यतिक्रम पाया जाता है। क्रमशः २०,२४, २३, २४ मात्रायें रखी गई हैं। एक छप्पय में ११ चरण पाये जाते हैं, जिसमें प्रत्येक चरण में १४, १५ अथवा १६ मात्रायें रखी गई हैं। उन्होंने छप्पय, छप्य नाम इस छन्द को दिये हैं।

किशुनेश ने इस छन्द आश्रयदाता की प्रशंसा, वीरों की दर्पोक्ति, सेना की गणना, युद्ध की भयंकरता आदि का वर्णन किया है। इनके छप्पय छन्द शास्र के अनुसार ठीक हैं। केवल एक छप्पय में रोला का द्वितीय चरण नहीं पाया जाता है।

श्रीधर ने पारीछत रायसा में छप्पय द्वारा गणेश वन्दना, राजा का यश, वीरों की दर्पोक्ति, सेना तथा युद्ध के वर्णन किए हैं।

प्रधान कल्याण सिंह ने छप्पय द्वारा राज मर्यादा, राजनीति, सैन्य, युद्ध क्षेत्र में हथियारों के चलने, युद्ध में वीरों को प्रोत्साहन देने आदि का वर्णन किया गया है।

"मदनेश' ने केवल एक छप्पय में युद्ध क्षेत्र में दोनों सेनाओं की भिड़न्त तथा हथियारों के चलने, घायलों के घूमने तथा वीरों के युद्ध क्षेत्र में "मार-मार' उच्चारण आदि विषयों का वर्णन किया है।

भैरों लाल नेइसका नाम छप्पै दिया है, परनतु यह छन्द छप्पय का आभास मात्र है क्योंकि इसमें मात्रा व चरण आदि की दृष्टि से अशुद्धियाँ हैं।

कंजा

जोगीदास

अस छन्द में १३-१३ की यति पर प्रत्येक चरण में २६ मात्रायें होती है। अधिकांशत- अनुस्वारान्त शब्दावली का प्रयोग किया गया है। पद संख्या अनिश्चित है। इस छन्द द्वारा युद्ध की भयंकरता का वर्णन किया गया है। यह छन्द आलोच्य काव्यों में केवल दलपति राव रासोकार जोगीदास ने प्रयुक्त किया है। छन्द का उदाहरण निम्नानुसार है।

"कोपंता श्री दलपत्तं, घोपंता तहं सुहत्तं।
वाहंता जोर समथ्थं, चाहता और न सथ्थं।।'

मंज

भेरोलाल, भग्गी दाऊज

"श्याम' मंज में २८-२८ मात्राओं वाले चार चरण होते है। यह गेय छन्द है। भैरोलाल ने केवल एक मंज में श्यामले सिंह व केशरीसिंह आदि वरी सरदारों की पारस्परिक चर्चा का वर्णन किया है। भग्गी दाऊ जू "श्याम' ने अपने "झाँसी कौ कटक' में मंज का सफल प्रयोग किया है। इन्होंने पूरा कटक मंज छन्द में ही लिखा है। इसमें मंज के पहले एक दोहा रख गया है, फिर चार-चार पदों के मंज हैं, जिनमें प्रत्येक को चौथी पंक्ति टेक के रुप में बार बार दुहराई गई है। इस प्रकार ये मंज अच्छे खासे गीत का सा आनन्द प्रदान करते दिखाई देते हैं।

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