बुंदेलखंड संस्कृति

लक्ष्मीबाई रासो

अलंकार

जोगीदास के दलपति राव रायसे में उपमा, उत्प्रेक्षा, रुपक, अनुप्रास तथा अनन्वय आदि अलकारों का प्रयोग किया गया है। नीचे इन अलंकारों का एक एक उदाहरण प्रस्तुत किया जा रहा है।

 

उपमा

"लरत बुन्देला वी, दष्षिन दल में सोभजै।
ज्यों पच्छिन की भर, बाज झपट्टौ करत है।।''

उत्प्रेक्षा"

आंच सुधुंध अंधेरी छाई।
चहूं ओर जनु घटा सुहाई।।
तहां निसान करनाल सुवाजै।
भई सोभ मानौ घन गाजै।।

अनुप्रास

अनुप्रास अलंकार के छेका, वृत्या, लाटानुप्रास आदि समवेत रुप एक ही छन्द में देखिये-
"ठाये ठोर ठाइन अठाइन सौं ठानै ठैन जाके संग सोहत है ठाकुर ठिकाने को।
भारौसिरदार हरभारौऊ दलेल दार अगवन दार अनी स्वांमित सयानै कौ।।
धीर राज धोरी राज धरा कौ धरन हारौ पाय कै मरद मैं विरदवरी बानै की।
लाल सुखदेउ लोह लागन लरा फौज दार नरदानौ सुभसाह मरदानै कौ।।

रुपक

निम्न छन्द में कवि ने विवाह का सुन्दर युद्ध रुपक प्रस्तुत किया है। युद्ध क्षेत्र का मारु राग विवाह में गाये जाने वालेगंगल राग, सिर, पर का झ्लिम टोप मौर, खड्ग कंकण, बरछी, खंभे, ढालें मंडप आदि का रुपक है-

"रचौरन व्याह मचौ मारु राग मंगल ज्यौं रचौ रुद्र रह सब धायै सुभगत की।
मामसिर मौर धर पत्त सिर पनरथ्थ कंध्ध सौहे खर्ग विराजै सोभ अत की।।
बरछे सुखंम्भ ढाल मंडिप अनूप छाप अनीवर आलम की वरी रुप रत की।
स्वांम काम तन को तमरो करौ तेगन कौ धन्य धन्य हिम्मत रजीलै दलपत की।।

अनन्वय

जहाँ उपमेय की समानता में उपमेय को ही उपमान माना जाये, अनन्वय अलंकार होता है। दलपति राव रायसा में कुछ स्थानों पर इस अलंकार का प्रयोग किया गया है। एक छन्द देखिये-

"सीता सी सीता लसत राम राम अवतार।
रात सिंध तिन के प्रथम प्रगटौ राज कुंबार।।''

"करहिया कौ रायसौ' में अलंकार सौन्दर्य नहीं है। या तो कवि इस ओर से उदासीन रहा है, या कवि को अलंकार शास्र का प्रचुर ज्ञान नहीं रहा होगा। इस सम्बन्ध में डॉ. टीकमसिंह तोमर का निम्नलिखित मत है-" यदि यह कहा जाये कि इस कवि को अलंकार शास्र का लेश मात्र भी ज्ञान नहीं था, तो इसमें अत्युक्ति न होगी।' फिर भी गुलाब कवि के इस काव्य ग्रन्थ में थोड़ा बहुत परम्परागत रुप में अलंकार चित्रण देखने को मिल जाता है। इस रचना में अनुप्रास, उपमा, उत्प्रेक्षा लोकोक्ति एवं सन्देह अलंकारों का साधारण प्रयोग किया गया है।

शत्रुजीत रासो में उपमा, उत्प्रेक्षा, रुपक, अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश तथा प्रतीप आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।

उपमा

युद्ध के वर्णनों में कवि द्वारा अनूठी उपमायें प्रस्तुत की गई हैं। उदाहरण-

"जहाँ टूटै तरवार गिरें छूटकें कटार।
वीर बगरौ बहार पतझार के समान।।'

उत्प्रेक्षा

युद्ध के विकराल वर्णनों एवं प्रकृति चित्रणों में कवि ने इस अलंकार को प्रयुक्त किया है। उदाहरण-

"चले वांन गोला मचौ घोर घाई।
मनौ राम रावन्न कीनि लराई।।
किले तै घलै वीर तोपै उताली।
मनै कोपियौ काल कन्या कराली।।

रुपक

शत्रुजीत रासो में कवि ने रुपक अलंकार में षड्ॠतु वर्णन किया है। निम्नलिखित एक छन्द में वर्षा का रुपक प्रस्तुत किया गया है- उदाहरण

"जहां घन लौ घुमड दल उमड़ अनी पै जुरै,
तड़पा तड़प कड़ौ कईक कृपान।
रहै मानौ पौन घेरे छूट धुरवा धुरानफ
जहां त्यागौ तन हंस श्रोन वरषा लगी है, 
जगी चात्रक लौ बंदीजन करत बखान।।" आदि

अनुप्रास

युद्ध के विकराल एवं वीभत्स वर्णनों का इस अलंकार में अच्छा चित्रण किया गया है। उदाहरण -

-जहाँ जूट जूट जात जोर जबर जमातन के,
छूट छूट गिरत धरा पै बिन प्रान।" आदि
पुनरुक्ति-
"जहाँ ढार ढार मुंड मुंड डार धौरिन,
तै मार मार भाषत है मही पै मरदान।' आदि
प्रतोप 

उदाहरण-

" जटित जाहर जीन पोस बिछाइ बैठौ भूप है।
नहिं काम की छवि काम की अभिराम रुप अनूप है।।'

""पारीछत रायसा' में उपमा, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास, रुपक तथा स्नदेह आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है। प्रत्येक अलंकार का उदाहरण आगे प्रस्तुत किया जा रहा है-

उपमा

"रि#ीर चौंर गजढाल पै कंचन फूल अनूप।
रवि ससि सन गुर सौ भजैं उपमा अनूप।।'

उत्प्रेक्षा

"घंट घोर धुनि ह्मवै रही, सुन्दर सीसन धार।
मानो छन मिल बैठिकैं, बिज्जुल करत विहार।।'

अनुप्रास-छेकानुप्रास, वृत्यानुप्रास तथा लाटानुप्रास के लक्षण निम्नांकित छन्द में देखने योग्य हैं-
"चपल चलाकी चंचला की गति छीन लेत,
छहर छलंगत छिकारे होत लाज कै।
पुरयन पात के गातन समैट फिरै,
थाप दियै जात है समान पछ्छ राज कै।।
लोट पोट नैन कुलटान के लजावत हैं,
जरकस जीनस जराउ धरै साज कै।
अंगन उमंग गिरवरन अलंघन है, 
छेंकन कुरंगन तुरंग महाराज के।।'

रुपक वर्षा के एक रुपक में "श्रीधर' ने युद्ध की विकरालता का चित्रण निम्न प्रकार किया है-

धर परस बुन्द गोली समान।
वन्दीजन चात्रक करत गान।।
वगपंत परीछत सुजस छाहि,
वरखोस रुप रन यौं मचाइ।।'

संदेह निम्नांकित उदाहरण में महाराजा पारीछत के ऐश्वर्य का वर्णन इस अलंकार के माध्याम से देखिए-

कैघों बाड़वागिन की प्रगटी प्रचंड ज्वार,
केधों ए दवागिन की उलहत साखा है।
कैधों जठरागिन मंदागिन मिली हैं, आइ,
कैंधों अस्ट मूरत इकट्ठा आन राखा है।।
कैधों जुरहोरी ज्वार छाये है पहारन पै,
लगत गढ़ोहिन कौं काल कैसे नाखा है।
बाघाइट गंध्रप के जरत अवास कैधों,
कैधों पारीछत भूप के प्रताप के पताखा हैं।।'

उपर्युक्त छन्द में बाघाट के दीवान गन्धर्व सिंह के जलते हुए महलों को देखकर कवि ने विभिन्न प्रकार के सन्देह किये हैं।
"बाघाइट कौ राइसौ' में अनुप्रास, वक्रोक्ति, उत्प्रेक्षा तथा उपमा के कुछ प्रयोग देखने को मिलते हैं।

अनुप्रास ""सिव सुत कौ सुमरहिं सदा, संकट हरहिं कुबुद्ध।
धन दाता वे हैं सदा, और देत हैं बुद्धि।।'
उपर्युक्त दोहे में सिव सुत तथा सुमिरिहि सदा में छेकानुप्रास है।
वक्रोति वक्ता के अभिप्रेत आशय से भिन्न की कल्पना होने पर वक्रोक्ति अलंकार होता है। इसमें उक्ति में बांकपन विशेष होता है, कभी-कभी तो कंठ की ध्वनि से भी दूसरा अर्थ निकलता है। उदाहरण

""ताकारन हम आजु लौ, उनको भलौ विचार।
बांह गहे की जाज कौ, बड़े करें निरधार।।''

(दनिया नरेश महाराज पारीछत के पिता ने ओरछा के महेन्द्र महाराजा विक्रमजीत का स्वयं राजतिलक किया था। इसलिए वे विक्रमाजीत के प्रति ऐसा कह रहे हैं कि - उसी कारण से ही तोहम आज तक उनकी भलाई देखते रहे हैं, क्योंकि आश्रय तथा अभयदान देने के वचन का निर्वाह बड़े ही करते हैं)।

उत्प्रेक्ष्ज्ञा
""तोप घलै जब होइ अवाज।
परहि मनौं भादव की गाज।।''

उपर्युक्त उदाहरण में तोप चलने की आवाज से भादों की गाज गिरने की उत्प्रेक्षा की जा रही है।

उपमा 
""घली समसेरें सिरोहीं भई तेगन मार।
चमक जाती बीजुरी सी कौन सकैहि निहारि।।''

उपर्युक्त छन्द में शमशेर व तलवार की चमक की समता बिजली की चमक से की जा रही है।

"कल्याण सिंह कुड़रा' कृत "झाँसी कौ राइसौ' में भी अलंकार चित्रण अत्यन्त साधारण कोटि का है।केवल उपमा, उत्प्रेक्षा व अनुप्रास अलंकारों के साधारण से प्रयोग देखने को मिलते हैं।

उपमा
""घटा सी उठी रैन जब सैन धाई।''
यहाँ पर सेना के चलने से उठे धूल समूह की समानता काली मेघ घटा से की गई है।

उत्प्रेक्षा
""गोरा तिलंगा असवार हेर।
गल गाजत है जनु ढिले सेर।।''

अनुप्रास ""चलत तमंचा तेग किच कराल जहाँ,
गुरज गुमानी गिरै गाज के समान।''

यद्यपि "मदनेश' जी ने अलंकार सृष्टि की तरफ बिल्कुल ध्यान ही नहीं दिया है तथापि कुछ स्थल ऐसे हैं जहाँ उत्प्रेक्षा, उपमा, अनुप्रास, उदाहरण आदि अलंकारों के दर्शन हो जाते हैं। कवि की यह रचना प्रौढ़ है एवं भाव पक्ष के साथ-साथ कवि में कलापक्ष को सुन्दर बनाने की क्षमता भी दिखलाई पड़ती है। इस धरा के अन्य कवियों की भाँति यह कवि भी अलंकारों के प्रति उदासीन ही रहा। यहाँ कुछ अलंकारों के उदाहरण दिये जा रहे हें।

उपमा
""तन कुन्दन चंपक सौ मुलाम। मृगनयनी शुक नासिकी बाम।।''

उपर्युक्त छन्द में झाँसी के भुंजरियों के मेले के वर्णन में स्रियों की शोभा और सजावट का वण्रन किया गया है। शरीर को स्वर्ण और चंपक के समान तथा नेत्रों की मृग एवं नाक की तोते से उपमा दी गई है।

उत्प्रेक्षा
युद्ध के वर्णनों में प्रकृति सम्बन्धी वर्णन करते समय कवि ने उत्प्रेक्षा अलंकारों का प्रयोग किया है। उदाहरण-

"६उत रिपुदल सेना उमड़ आई। चहु ओर मनो घन धटा छाई।
बरछिन की माल चमंक रही। सोउ दामिन मनौं दमंक रही।।''

अनुप्रास
इस धारा के कवियों को अनुप्रास अलंकार की योजना में विशेष सफलता प्राप्त हुई। पह्माकर जैसे कवि अनुप्रास सौन्दर्य के लिए सर्व प्रसिद्ध हैं।

इस कवि ने भी कहीं कहीं इस अलंकार का बहुत अच्छा चित्रण किया है। निम्नांकित छनद में दोस्तखाँ तोपची द्वारा न्त्थे खाँ की फौज के एक हाथी पर तोप के गोले के प्रहार का वर्णन देखिए-

""तब तक तानै बान लीनी है मिलाय ताय,
झांक झुक जानें आग दीनी जो भड़ाक है।
घोर घहरात भहरात लौ लपक्की तब,
तमकी तड़ित सी सो तड़की तड़ाक है।
"मदन' महीप जहाँ बैठो गढ़ ओड़ी कौ सो,
ता गजगरे पै गोला गड़पौ गड़ाक है।
मारी है दीमान जानें जारै है निशान हेरौ,
पर्वत समान पील पटकौ पड़ाक है।।''

उपर्युक्त छन्द में अनुप्रास के वृत्य, छेका आदि भेदों के साथ ही छन्द में आन्तरिक एवं अत्यानुप्रासों की छटा भी दृष्टव्य है। दोस्त खाँ तोपची का झुककर झाँकना, निशाना ताकना, लौ का लपकना तोप का तड़ाक से तड़कना, हाथी के गले पर गोले का गड़ाक से गड़पना और हाथी का पड़ाक से पटकना आदि में अनुप्रास बड़ी स्वाभाविकता से आ गये हैं। छन्द पर अलंकारों का आरोप नहीं है।

उपर्युक्त अलंकारों के अतिरिक्त उदाहरण अलंकार एवं सन्देह अलंकार भी एकाध स्थल पर देखने को मिलता है।

उपलब्ध "कटक' एवं "हास्य रासो' ग्रन्थों में अलंकार चित्रण बहुत साधारण कोटि का पाया जाता है। कतिपय स्थलों पर उपमा, उत्प्रेक्षा, रुपक एवं अनुप्रास के उदाहरण देखने को मिलते हैं।

उपर्युक्त सभी रासो काव्यों में अलंकार योजना प्राचीन परम्परानुसार ही दिखलाई पड़ती है।

 

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Content prepared by Mr. Ajay Kumar

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