बुंदेलखंड संस्कृति |
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लक्ष्मीबाई रासो |
अनिश्चित छन्द |
छन्द | कवि | विवरण |
हनूफाल |
गुलाब किशुनेश
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(१४ मात्रा अन्त में गुरु लघु) गुलाब कवि ने इस छंद में १२, १३ तथा १४ मात्रायें प्रयुक्त की हैं। इस छन्द में इन्होंने युद्ध युद्ध स्थल की मारकाट के वीभत्स चित्रण किए हैं। किशुनेश के द्वारा इस छन्द में सर्वत्र १२ मात्राओं तथा गुरु लघु का प्रयोग किया गया है। इन्होंने छन्द की पद संख्या चार रखी है, पर कहीं-कहीं केवल दो रह गई है, तथा कहीं ६ तक पहुँच गई है। इस छन्द द्वारा इन्होंने सेना प्रयाण तथा युद्ध के साधारण वर्णन प्रस्तुत किये हैं। |
माधुरी |
किशुनेश |
इस छन्द में किशुनेश ने प्रत्येक चरण में १६-१६ यति पर ३२ मात्राएँ तथा अंत में गुरु लघु का विधान किया है। यदि इनमें विराम चिह्मों का उचित प्रयोग किया गया होता तो ८,८उ१६ मात्रा क्रम के अनुसार मधुभार छंद के अधिक निकट होता है। किशुनेश ने इस छंद द्वारा युद्ध का साधारण वर्णन किया है |
छन्द
गाडर रायसा |
जोगीदास किशनेश
श्रीधर प्रधान आनंदसिंह, |
जोगीदास ने इसका प्रयोग तीन रुपों में किया है। प्रथम रुप में १२ वर्ण प्रत्येक चरण में रखे गए हैं, जो भुजंगी छन्द जैसा है। दूसरे प्रकार में प्रत्येक चरण में १० वर्ण एवं तीसरे प्रकार के छंद में प्रति चरण ८,८ की यति से चरण रखे गये हैं। इस छंद के द्वारा इस कवि ने सेना प्रयाण तथा युद्ध आदि का वर्णन किया है। शत्रुजीत रासो में किशुनेश ने इसका प्रयोग तीन प्रकार से किया है। प्रथम प्रकार मैं प्रत्येक चरण में १२ वर्ण रखे गये हैं, जो भुजंग प्रयात के अधिक निकट हैं। दूसरे प्रकार में प्रति चरण ११-११ वर्ण हैं। तीसरे प्रकार के छन्द में वर्ण संख्या का कोई निश्चित क्रम नहीं पाया जाता है। इसमें प्रति चरण ८,९ अथवा १० वर्ण रखे गये हैं। इन छन्दों के द्वारा इन्होंने समाचार प्रेषण, सेना प्रयाण , तथा युद्ध के साधरण वर्णन और आश्रयदाता की प्रशंसा का वर्णन किया है। श्रीधर ने भी इस छन्द का कोई निश्चित रुप नहीं रखा। इनके द्वारा प्रयुक्त किये गये इस छन्द में वर्ण संख्या विभिन्न स्थानों पर १०, ११,१२,१३,१५४,१५ तथा १६ पाई जाती है। कुछ उदाहरण निम्नानुसार प्रस्तुत किए जाते हैं- ""यही बात नरनाथ
सुनिकै अनैसी। इस छन्द के द्वारा श्रीधर ने परामर्श, सैन्य-सज्जा, सैन्य प्रयाण तथा युद्धस्थल में मारकाट आदि के वर्णन किये हैं। प्रधान आनन्द सिंह ने "बाघाइट कौ रायसो' में "छन्द' का विविध रुपात्मक प्रयोग किया है। वर्ण क्रम में पूणर्ं स्वछन्दता से काम लिया गया। कुछ छंदों में१८ वर्ण, कुछ में १९ वण्र, कुछ छन्द १७ व १८ वर्ण के मिश्रित पदों वाले, कुछ १६ व १७ वर्ण प्रति चरण वाले, कुछ १७, १८ तथा १९ वर्ण पाये जाते हैं। एक छन्द २० व १७ वर्ण के पदों से युक्त है। दो छंदों में ८, ८ वर्ण प्रति चरण है। तथा एक छद की वर्ण संख्या इस प्रकार है- प्रथम चरण ८, ८
वर्ण उपर्युक्त के अतिरिक्त दो छन्दों का स्वरुप चौपाई के अधिक निकट है। इनमें १६अ१५उ३१ मात्रा प्रति चरण पाई जाती है। एक छनद के चार चरण कुण्डलिया छन्द के अनुसार है, तथा एक छनद हरिगीतिका के अधिक निकट है। प्रधान आनन्दसिंह ने इस छन्द के द्वारा सरदारों की वीरता, सेना की तैयारी, कूच, समाचार प्रेषण, तिथि निर्देश, हथियारों के चलने तथा युद्ध आदि के वर्णन किये हैं। प्रधान कल्याण सिंह के द्वारा प्रयुक्त छन्द में अधिकांश रुप में १२ वण्र प्रति चरण में है। अतः यह छन्द भुजंग प्रयात के अधिक निकट है। परन्तु ऐसे भी बहुत छन्द हैं, जिनमें वर्ण संख्या का कोई क्रम नहीं है। इन छन्दों में वर्ण क्रम ७,८,९,१०,११,१२,१३ तथा१४ तक पाया जाता है। इस छन्द के द्वारा इन्होंने समाचार प्रेषण, सेना प्रयाग, परामर्श तथा युद्ध के वर्णन किये हैं। "मदनेश' के द्वारा प्रयुक्त "छन्द' को पद्धरी, हरिगीतिका, तथा मोतीदास तीन भागों में बांटा जा सकता है। पद्धरी तथा हरिगीतिका छन्दों के अंतर्गत "मदनेश' के इस कोटि के छन्दों का विवरण दिया जा चुका है। मोतीदास छन्द के द्वारा "मदनेश' ने युद्ध के वर्णन प्रस्तुत किये है। "गाडर रायसा' प्रयुक्त इस छन्द में प्रति चरण ८ या ९ वर्ण पाये जाते हैं। इस छन्द द्वारा कवि ने "बनिया' जाति के लोगों के "गाडर' से युद्ध करने के लिये तैयार होने का वर्णन किया।
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:: अनुक्रम :: |
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