सिंहासन बतीसी (द्वात्रींशत्पुत्तलिका) |
Sinhasan Battisi |
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तारावती
वह चाहता था कि हर वDत उसका चेहरा उसके सामने रहे। वह नई रानी को दरबार में भी अपने बगल में बिठाने लगा। उसके सामने कोई भी कुछ बोलने का साहस नहीं करता, मगर उसके पीठ पीछे सब उसका उपहास करते। राजा के महामन्त्री को यह बात बुरी लगी। उसने एकांत में राजा से कहा कि सब उसकी इस की आलोचना करते हैं। अगर वह हर पल नई रानी का चेहरा देखता रहना चाहता है तो उसकी अच्छी-सी तस्वीर बनवाकर राजसिंहासन के सामने रखवा दे। चूँकि इस राज्य में राजा के अकेले बैठने की परम्परा रही है, इसलिए उसका रानी को दरबार में अपने साथ लाना अशोभनीय है। चित्रकार ने पूरी शालीनता से उसे विश्वास दिलाने की कोशिश की कि प्रकृति ने उसे सूक्ष्म दृष्टि दी है जिससे उसे छिपी हुई बात भी पता चल जाती है। तिल उसी का एक प्रमाण है और उसने तिल को खूबसूरती बढाने के लिए दिखाने की कोशिश की है। राजा को उसकी बात का ज़रा भी विश्वास नहीं हुआ। उसने जल्लादों को बुलाकर तत्काल घने जंगल में जाकर उसकी गर्दन उड़ा देने का हुक्म दिया तथा कहा कि उसकी आँखें निकालकर दरबार में उसके सामने पेश करें। महामन्त्री को पता था कि चित्रकार की बातें सच हैं। उसने रास्ते में उन जल्लादों को धन का लोभ देकर चित्रकार को मुक्त करवा लिया तथा उन्हें किसी हिरण को मारकर उसकी आँखे निकाल लेने को कहा ताकि राजा के विश्वास हो जाए कि कलाकार को खत्म कर दिया गया है। चित्रकार को लेकर महामन्त्री अपने भवन ले आया तथा चित्रकार वेश बदलकर उसी के साथ रहने लगा। कुछ दिनों बाद राजा का पुत्र शिकार खेलने गया, तो एक शेर उसके पीछे पड़ गया। राजकुमार जान बचाने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गया। तभी उसकी नज़र पेड़ पर पहले से मौजूद एक भालू पर पड़ी। भालू से जब वह भयभीत हुआ तो भालू ने उससे निश्चिन्त रहने को कहा। भालू ने कहा कि वह भी उसी की तरह शेर से डरकर पेड़ पर चढ़ा हुआ है और शेर के जाने की प्रतीक्षा कर रहा है। शेर भूखा था और उन दोनों पर आँख जमाकर उस पेड़ के नीचे बैठा था। राजकुमार को बैठे-बैठे नींद आने लगी और जगे रहना उसे मुश्किल दिख पड़ा। भालू ने अपनी ओर उसे बुला दिया एक घनी शाखा पर कुछ देर सो लेने को कहा। भालू ने कहा कि जब वह सोकर उठ जाएगा तो वह जागकर रखवाली करेगा और भालू सोएगा जब राजकुमार सो गया तो शेर ने भालू को फुसलाने की कोशिश की। उसने कहा कि वह और भालू वन्य प्राणी हैं, इसलिए दोनों को एक दूसरे का भला सोचना चाहिए। मनुष्य कभी भी वन्य प्राणियों का दोस्त नहीं हो सकता। उसने भालू से राजकुमार को गिरा देने को कहा जिससे कि वह उसे अपना ग्रास बना सके। मगर भालू ने उसकी बात नहीं मानी तथा कहा कि वह विश्वासघात नहीं कर सकता। शेर मन मसोसकर रह गया। चार घंटों की नींद पूरी करने के बाद जब राजकुमार जागा, तो भालू की बारी आई और वह सो गया। शेर ने अब राजकुमार को फुसलाने की कोशिश की। उसने कहा कि क्यों वह भालू के लिए दुख भोग रहा है। वह अगर भालू को गिरा देता हो तो शेर की भूख मिट जाएगी और वह आराम से राजमहल लौट जाएगा। राजकुमार उसकी बातों में आ गया। उसने धक्का देकर भालू को गिराने की कोशिश की। मगर भालू न जाने कैसे जाग गया और राजकुमार को विश्वासघाती कहकर खूब धिक्कारा। राजकुमार की अन्तरात्मा ने उसे इतना कोसा कि वह गूंगा हो गया। जब शेर भूख के मारे जंगल में अन्य शिकार की खोज में निकल गया तो वह राजमहल पहुँचा। किसी को भी उसके गूंगा होने की बात समझ में नहीं आई। कई बड़े वैद्य आए, मगर राजकुमार का रोग किसी की समझ में नहीं आया। आखिरकार महामन्त्री के घर छिपा हुआ वह कलाकार वैद्य का रुप धरकर राजकुमार के पास आया। उसने गूंगे राजकुमार के चेहरे का भाव पढ़कर सब कुछ जान लिया। उसने राजकुमार को संकेत की भाषा में पूछ कि क्या आत्मग्लानि से पीड़ित होकर वह अपनी वाणी खो चुका है, तो राजकुमार फूट-फूट कर रो पड़ा।
रोने से उस पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ा और उसकी खोई वाणी लौट आई। राजा को
बड़ा आश्चर्य हुआ कि उसने राजकुमार के चेहरे को देखकर सच्चाई कैसे जान ली तो चित्रकार ने जवाब दिया कि जिस तरह कलाकार ने उनकी रानी की जाँघ का तिल देख लिया था। राजा तुरन्त समझ गया कि वह वही कलाकार था जिसके वध की उसने आज्ञा दी थी। वह चित्रकार से अपनी भूल की माफी माँगने लगा तथा ढेर सारे इनाम देकर उसे सम्मानित किया।
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Content prepared by Sunil Jha
© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र
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