रुहेलखण्ड |
Rohilkhand |
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रुहेलखण्ड के लोक गीत |
मानव सभ्यता के विकास के क्रम में जिन विभिन्न कलाओं का जन्म हुआ, उनमें संगीत भी एक था।लेकिन संगीत गीतों के अभाव में अधूरा था। अत: मनुष्य ने संगीत को पूर्णता प्रदान करने के लिए गीतों की रचना प्रारम्भ की। भाषा शास्रीय आधार पर गीतों के दो वर्ग हुए प्रथम वर्ग ऐसे गीतों का था,जो व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध थे तथा सर्वमान्य भाषा में लिखे जाते थे। दूसरे प्रकार का वर्ग ऐसे गीतों का था, जो किसी स्थान विशेष की क्षेत्रीय भाषा में रचे गए और सर्वमान्य भाषा शास्रीय नियमों पर आधारित नहीं थे। इस प्रकार के गीत लोक गीत कहे जाते थे। हमारे देश में लोक गीतों की परम्परा आरम्भ से वर्तमान तक यथा रुप में विद्यमान है। भारतवर्ष के विभिन्न भागों के अपने पृथक -पृथक लोकगीत हैं , जो स्थानीय भाषा में रचित हैं। यह गीत विभिन्न अवसरों तथा विषयों पर आधारित हैं। लोक गीतों के बारे में एक रुचिकर तथ्य यह है कि इनमें अधिकांश गीत परम्परागत हैं। रुहेलखण्ड क्षेत्र में भी असंख्य लोकगीत प्रचलित हैं। यह लोक गीत यहाँ की स्थानीय क्षेत्रीय भाषा (अवधी और ब्रज भाषा का मिश्रण) में रचित और आज भी यहाँ के गाँवों में इन गीतों को सुना जा सकता है। इन गीतों को अग्रलिखित वर्गों में विभक्त कर सकते हैं -- i )
होली के गीत |
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Content Prepared by Dr. Rajeev Pandey
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