परिचय – मणिपुर

मणिपुर समृद्ध घाटियों की भूमि है जो सुंदर पहाड़ियों और झीलों से घिरी है, यह खुशी तथा आनंद से भरे सौम्य लोगों की भूमि है। कई किंवदंतियाँ हमें मणिपुर के उद्गम के बारे में बताती हैं। एक किंवदंती है कि श्री कृष्ण ने राधा और गोपियों के साथ रास-लीला करते समय शिव जी से निगरानी करने के लिए अनुरोध किया। जब माँ पार्वती ने शिव जी को एक निश्चित स्थान की रक्षा करते हुए देखा तो वे यह देखने के लिए उत्सुक हो गईं कि शिव जी किस चीज की रक्षा कर रहे थे। उनके द्वारा ज़ोर दिए जाने पर शिव जी ने उन्हें रास देखने की अनुमति दे दी। वे श्री कृष्ण के नृत्य से इतनी प्रेममत्त हो गईं कि उन्होंने शिव जी के साथ रास करने का निर्णय किया। शिव जी ने पार्वती जी के साथ नृत्य करने के लिए एक सुंदर तथा एकांत वाले स्थान हेतु ऊपर तथा नीचे के क्षेत्रों में खोज की। उन्होंने मणिपुर को देखा जो पर्वतों से घिरा था, और इसकी सुंदर घाटियां जल की एक परत से ढकी थीं। उन्होंने अपने त्रिशूल से पर्वत श्रेणी पर प्रहार किया जिससे पानी के बाहर आने के लिए मार्ग बन गया। मणिपुर की घाटी का उद्भव हुआ और शिव और पार्वती ने इस पर नृत्य किया। मणिपुर का अर्थ है ‘मणियों की भूमि’। इस पूर्वोत्तर राज्य का वर्णन स्वर्ण भूमि अथवा ‘सुवर्णभू’ के रूप में किया गया था। मणिपुर 1891 में ब्रिटिश राज के अंतर्गत एक रियासत थी। वर्ष 1947 में मणिपुर संविधान अधिनियम के अंतर्गत महाराजा को कार्यकारी प्रमुख बनाते हुए एक लोकतान्त्रिक सरकार स्थापित की गई। इस राज परिवार ने उन्हें एक लंबा शांतिपूर्ण समय दिया जिसमें उन्होंने बिना किसी बाधा के अपनी कलाओं तथा शिल्प को विकसित किया। 21 जनवरी, 1972 को एकीकरण के साथ यह क्षेत्र एक पूर्ण राज्य बन गया। यह राज्य 10 उप-मंडलों के साथ एक एकल जिला क्षेत्र था, जिसे 1969 में मान्यता दी गई थी। अब इस राज्य में छ: जिले हैं जिनके जिला मुख्यालय इम्फ़ाल, उखरुल, तमेनलोंग, सेनापती, चंदेल और चुरचंदपुर में हैं।

भूमि


मणिपुर की आयताकार मनोरम घाटी, जो 22,356 किमी. के क्षेत्र में फैली है, एक पृथक पहाड़ी राज्य है। मणिपुर की जलवायु स्वस्थ और स्वास्थ्यप्रद है। वर्षा घाटी में लगभग 149 सेमी. से पश्चिमी पहाड़ियों में लगभग 380 सेमी. के बीच है। घाटी में कृषि योग्य क्षेत्र मिट्टी तथा गाद से भरपूर है और इस प्रकार यह सिद्ध करता है कि यह पूर्ण घाटी क्षेत्र कभी एक झील था और धीरे-धीरे पहाड़ियों से आने वाली धाराओं तथा नदियों से इसमें गाद जमा हो गई। पहाड़ी क्षेत्र प्रमुख रूप से निचली पहाड़ियों में बाद की मिट्टी और उच्च क्षेत्र में भूरे वन प्रकार की मिट्टी वाली प्रीटरशियरी स्लेटों तथा शेल से बने हैं। भौगोलिक पृथकीकरण और पहुँच न होने के कारण उपमहाद्वीप में मणिपुर राजनैतिक उलटफेर से लगभग अप्रभावित रहा।तथापि इससे इस भूमि में भारतीय संस्कृति का प्रवाह प्रभावित नहीं हुआ।  

राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 67% क्षेत्र में प्राकृतिक वनस्पति है। इस क्षेत्र को जीवों तथा वनस्पति की अद्भुत प्रजातियों का वरदान मिला है। पर्वत श्रेणी की ऊंचाई के अनुसार वन उष्णकटिबंधीय से सबएल्पाइन तक हैं। आर्द्र वन, शीतोष्ण वन और देवदार के वन समुद्र के स्तर से 900-2700 मीटर ऊपर पाए जाते हैं और इनमें दुर्लभ तथा स्थानिक पादप तथा जन्तु जीवन पाया जाता है। मणिपुर में मिट्टी में अथवा पेड़ों तथा झाड़ियों पर बढ़ने वाला प्राकृतिक वास अपनी सुंदरता तथा रंगों को फैलाते हुए आँखों को स्तब्ध कर देता है जो इतनी प्रचुर मात्रा में उन्हें देखने की आदि नहीं होती। यहाँ ऑर्किड की 500 किस्में पाई जाती हैं, जो मणिपुर में उगती हैं और इनमें से 472 को चिह्नित किया गया है।


हूकलॉक लंगूर, धीमा लोरिस, क्लाउडेड तेंदुआ, चितकबरा लिनशेङ्ग, ट्रेगोपन, चार अलग-अलग प्रकार के हॉर्नबिल आदि मणिपुर की समृद्ध प्राकृतिक विरासत का केवल एक भाग है। तथापि सर्वाधिक अद्वितीय है ‘संगई – नाचने वाला हिरण’। लोकतक झील में तैरती हुई वनस्पति में इस स्थानिक हिरण के छोटे झुंड पाए जाते हैं।   

लोग:

मणिपुर वह स्थान है जहां समय के साथ कई प्रकारकी सभ्यताएं व संस्कृतियाँ मिलीं जो अंत में एक दूसरे में घुल-मिल गई। यहाँ का भूभाग दो भिन्न क्षेत्रों में बंटा है – घाटी और आस-पास के पहाड़ी क्षेत्र। यहाँ की प्रमुख जनसंख्या मणिपुरी लोगों की है जिन्हें मैती के नाम से जाना जाता है। वे परखङ्ग्बा के वंशज होने का दावा करते हैं जिसने मणिपुर पर शासन किया और जिसके पास अपने आकार को एक सीधी पूंछ वाले साँप में बदलने की शक्ति थी। मणिपुर की पहाड़ियों में निवास करने वाली 29 जनजातियों को नागा और कुकी में विभाजित किया जा सकता है। नागा समूह और कुकी लोगों के बीच एक स्पष्ट वर्गीकरण करना संभव नहीं है – महत्वपूर्ण नागा समूह हैं तंगखुल,कुबुईस तथा माओजेमेइस,लियांगमेई, मारम, थंगल, मरिंग, अनल, मोयोन लोगों को भी नागा समूह के अंतर्गत शामिल किया जाता है।

मैती, जिन्हें लोकप्रिय रूप से मणिपुरी के रूप में जाना जाता है, एक अलग समूह है जिनकी अपनी स्वयं की पहचान है। मैती शब्द ‘मी’– पुरुष और ‘तेई’– अलग से व्युत्पन्न हुआ है। मैती समाज का इतिहास, उनकी प्रथाएँ, परंपराएँ, धार्मिक विश्वास, कला, संस्कृति तथा समृद्ध साहित्य उनकी पुरानी पाण्डुलिपियों जैसे ‘लेइतक लेईखरोल’ में दिया गया है। मैती लोग मणिपुरी भाषा बोलते हैं जो कुकी चिन समूह में आती है। इन्हें सात अंतर्विवाही समूहों में विभाजित किया गया है जिन्हें स्थानीय रूप से ‘सलाई’ कहा जाता है। मैती लोगों की सामान्य विशिष्टताएँ हैं मोंगोलोइड लोगों जैसी छोटी आँखें, गोरा रंग, अल्पविकसित दाढ़ी आदि। ये सामान्यत: पूर्ण विकसित अंगों के साथ पतले होते हैं। इनमें पुरुषों की ऊंचाई 5’7” से अधिक नहीं होती और महिलाएं उनके पुरुषों की तुलना में औसतन 4” छोटी होती हैं।

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सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत: 

इनका समाज पितृवंशीय है परंतु महिलाएं अधिकतर श्रम का भार उठाती हैं। महिलाएं आय अर्जन की ज़िम्मेदारी बांटती हैं और इन्हें केवल घर के कामों तक सीमित नहीं रखा जाता। इनका घर सही मायने में एक सामाजिक इकाई होता है और परिवार के मुखिया को कुछ धार्मिक कर्तव्य पूरे करने होते हैं। इनके परिवारों में पुरुष, उसकी पत्नी और अविवाहित बच्चे होते हैं। ये दोनों प्रकार के विवाह करते हैं अर्थात पारंपरिक एवं घर से भागकर दोनों। वचनबद्धता/पारम्परिक विवाह में लड़के का पिता व्यय का भुगतान करता है। विवाह के बाद लड़का अपनी पत्नी के साथ गाँव में एक अलग घर में बस जाता है। तथापि सबसे छोटा बेटा अपने पिता के घर रुकता है और इस घर का वारिस होता है। बाकी सभी बच्चे शेष संपत्ति में बंटवारा करते हैं। वे किसी भी स्थान से विवाह कर सकते हैं चाहे वह गाँव से बाहर हो परंतु उन्हें गोत्रांतर विवाह का पालन करना होता है। 

गोत्रांतर विवाह के उल्लंघन को अच्छा नहीं माना जाता है और यह लगभग वर्जित है। यद्यपि एकल विवाह सामान्य नियम है, चूंकि इनमें महिलाएं पुरुषों से अधिक हैं, परंतु इनमें बहुविवाह भी असामान्य नहीं है। ये लोग प्रकृति से फूलों को पसंद करने वाले होते हैं जिनसे वे स्वयं को खूबसूरती से सजाते हैं। इनके परिधान सरल परंतु रुचिकर होते हैं। महिलाएं सुंदरता से रंगीन लंबी पट्टीदार स्कर्ट, ब्लाउज और सफ़ेद चद्दर पहनती हैं और पुरुष सफ़ेद धोती और चद्दर और समारोहों में एक पगड़ी पहनते हैं।


मणिपुर के लोगों में गीतों के सौंदर्य तथा लय-ताल के साथ प्रदर्शन कला के लिए एक अंतर्निहित प्रेम होता है। इनकी समृद्ध संस्कृति तथा परंपरा इनके हथकरघा, रुचिकर कपड़ों और हस्तशिल्प की बारीक कारीगरी में भी दिखाई देती है। इन लोगों में बुनाई महिलाओं की एक पारंपरिक कला है और इसके लिए इन्हें आसानी से बाजार उपलब्ध हो जाता है। ये लोग अत्यधिक संवेदनशील होते हैं और कलाओं के प्रति अंतर्निहित प्रेम के साथ उनके जीवन का अद्वितीय पैटर्न उनके नृत्य तथा संगीत में दिखाई देता है।इनके नृत्य, चाहे वे लोक नृत्य हों अथवा शास्त्रीय नृत्य हो अथवा आधुनिक नृत्य हो, धार्मिक प्रकृति के होते हैं।  

अर्थव्यवस्था:

कृषि यहाँ के लोगों का प्रमुख रोजगार है। पहाड़ियों की कुल काम करने वाली जनसंख्या के लगभग 88% लोग और घाटी में काम करने वाली जनसंख्या के लगभग 60% लोग पूरी तरह से कृषि और इससे संबंधित कार्यों जैसे पशुपालन, मछलीपालन और वानिकी पर निर्भर हैं।

ऐसा इसलिए संभव होता है क्योंकि नदियों से जलोढ़ मिट्टी का निक्षेप घाटी की मृदा को उपजाऊ बनाता है, और पहाड़ियों में बड़ी संख्या में बहने वाली धाराएँ सिंचाई सुनिश्चित करती हैं। प्रमुख खाद्य चावल है और कम मात्रा में उगाए जाने वाली वस्तुएँ हैं तंबाकू, गन्ना, सरसों आदि।

बुनाई उद्योग अच्छी तरह से विकसित है और प्रत्येक घर में एक करघा है और यहाँ की महिलाएं विशिष्ट रूप से अद्वितीय स्थानीय डिज़ाइन तैयार करने में व्यस्त रहती हैं। हथकरघा उद्योग मणिपुर में सबसे बड़ा कुटीर उद्योग है और यहाँ से अंतिम रूप से तैयार की गई वस्तुएँ प्राय: निर्यात की जाती हैं।

त्योहार:

मणिपुरी शायद ही कोई ऐसा त्योहार मनाते हैं जिसके साथ नृत्य, संगीत और गाना न हो। उनका लाई हराओबा त्योहार बहुत ही रुचिकर नृत्य नाटक है जिसमें पुजारी (माइबा) और पुजारिनें (माइबी) जीवन के सृजन को दर्शाते हैं। यह मार्च-अप्रैल के दौरान लगभग 10-15 दिनों के लिए देवताओं और देवियों के गाँव के मंदिरों के सामने मनाया जाता है और पूरा गाँव इसमें भाग लेता है। देवताओं और देवियों के सामने आनंद मनाने का यह त्योहार उनके बीच पूर्व-वैष्णव संस्कृति का एक उदाहरण है। लाई हराओबा त्योहार में नृत्य का तांडव तथा लास्य पहलू खंबा (भगवान शिव के अवतार),थोईबी (पार्वती का अवतार) नृत्य में संयमित तथा नाजुक भाव-भंगिमाओं के साथ मनोरम पोशाकों में प्रस्तुत किया जाता है।

होली मणिपुरी लोगों के सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है और इसे बंगाल में स्वामी चैतन्य के जन्म से संबंधित बसंत पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। होली के त्योहार के दौरान युवा लोग और अन्य सभी संगीतकारों के समूहों के साथ बाहर आते हैं और एक जुलूस के रूप में मंदिरों में जाते हैं और एक-दूसरे पर रंगीन पानी छिड़कते हैं। इस त्योहार के दौरान लड़के और लड़कियां थाबल चौबा नृत्य में भाग लेते हैं।

हाथ में करताल ले कर संयुक्त भक्ति गान (संकीर्तन चोलम) और इसके साथ मृदंग के साथ शरीर को संचालित करना भी मणिपुर में प्रसिद्ध एक और अत्यंत लोकप्रिय त्योहार है।
पुंग चोलम अथवा करताल चोलम संकीर्तन चोलम का एक भाग है और पुरुषों का एक समूह प्रदर्शन होता है। धोती, पगड़ी पहने ड्रमवादक शरीर के कोमल तथा सुंदर संचालन के साथ ड्रम तथा करताल की लय पर यह नृत्य शुरू करते हैं और जैसे वे धीरे-धीरे गति पकड़ते हैं वे अपने ड्रम के साथ उत्तेजक करतब करते हैं।


“रास लीला, जो मणिपुरी शास्त्रीय नृत्य का प्रतीक है, को राधा और कृष्ण के अलौकिक तथा अनंत प्रेम पर रचा गया है जैसा कि हिन्दू ग्रन्थों में दर्शाया गया है और यह कृष्ण और राधा के भव्य और पारलौकिक प्रेम तथा गोपियों के भगवान के प्रति समर्पण को दर्शाता है”। यह सामयिक नृत्य-नाटक पूरी तरह से शास्त्रीय नृत्य शैली में बसंत पूर्णिमा, शरत पूर्णिमा और कार्तिक पूर्णिमा के दौरान मंदिर के प्रांगण में किया जाता है। इसमें नृतकों की नृत्य मुद्राएँ सुंदर तथा अत्यधिक शैलीगत होती हैं। नृतकों की पोशाकों की सुंदरता नृत्य की शोभा को और बढ़ाती हैं।

रुचि के स्थान:

सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान जो दर्शनीय हैं वे हैं मणिपुर के पूर्व शासक के शाही महल के साथ स्थित एक वैष्णव मंदिर गोविंदजी मंदिर। अन्य दर्शनीय स्थान हैं युद्ध समाधि स्थल, ख्वाइरामबंद बाजार, शहीद मीनार, मणिपुर राज्य संग्रहालय, मणिपुर जन्तु उद्यान, लंगथाबल,खोंघमपट ऑर्किडेरियम


पूर्वोत्तर भारत की ताजे पानी की सबसे बड़ी झील मणिपुर में स्थित है। इसे लोकतक झील और सेन्द्रा द्वीप कहा जाता है। लोकतक की पश्चिमी सीमा पर यह झील फुबाला है। विश्व का एकमात्र तैरता हुआ राष्ट्रीय उद्यान है केईबुल लमजाओ राष्ट्रीय उद्यान जो लोकतक झील पर स्थित है। यह मणिपुर के नाचने वाले हिरण संगई का अंतिम प्राकृतिक वास है।