बेंत के बारे में

बेंत अथवा रतन कुछ अनुगामी अथवा चढ़ते हुए ताड़ के लंबे, पतले तने होते हैं। उन्हें इस तथ्य के बावजूद कि वे शायद लकड़ी के बाद सबसे महत्वपूर्ण वन उत्पाद हैं, एक गौण वन उत्पाद माना जाता है। ये प्रमुख रूप से जीनस कैलेमस के ताड़ परिवार से संबंधित हैं। जीनस कैलेमस की लगभग 390 प्रजातियाँ हैं जो उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के सदाबहार वनों में पाई जाती हैं जिनमें से 30 प्रजातियाँ भारत में पाई जाती हैं जो प्रमुख रूप से हिमालय, असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और अंडमान में पाई जाती हैं।

आर्द्र, उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनों में बेंत सामान्यत: उनके ऊपर कुछ ऊंचे पेड़ों के साथ अभेद्य झाड़ियाँ बनाती हैं। कुछ तने सीधे खड़े होते हैं, परंतु अधिकतर विशिष्ट रूप से झुके हुए अथवा चढ़ते हुए होते हैं और 200 मीटर अथवा अधिक लंबाई के हो सकते हैं। बेंत सामान्यत: बेलनाकार और समान मोटाई की, ठोस, पुआल जैसे पीले रंग से भूरे रंग की होती हैं और ये अधिकतर काँटेदार पत्तियों के आवरण में होती हैं। इसका व्यास विभिन्न प्रजातियों में 3 मिमी. से लगभग 60 मिमी. के बीच होता है। इंटरनोड विभिन्न प्रजातियों में और एक ही प्रजाति के विभिन्न पौधों में लंबाई और मोटाई में भिन्न-भिन्न होते हैं। तनों का केंद्रीय भाग, जो कोमल तथा स्पंजी होता है, मोटे रेशों का बना होता है। इसकी सतह सिलिका के निक्षेप के कारण थोड़ी कठोर चिकनी और चमकदार होती है।

बेंत विघटित पत्तियों द्वारा रेतीली दोमट मिट्टी और धरण मिट्टी के समान भागों से से बनी खाद से सर्वश्रेष्ठ तरीके से उगती है। इन्हें एक गर्म, नम जलवायु और अत्यधिक पानी की आवश्यकता होती है। बेंत हल्के वनों में जल धाराओं और ताजे पानी की दलदल के किनारों के साथ भली-भांति सूखी हुई मृदा में प्राकृतिक रूप से उगती है। इसलिए बारहमासी जल धाराओं और दलदलों के आस-पास के क्षेत्र इसकी खेती के लिए प्रयोग किए जा सकते हैं।

बेंत को जड़ में पके हुए तनों को काट कर और उन्हें सहायक पेड़ों के ऊपर से नीचे खींच कर एकत्रित किया जाता है। कोमल सिरों वाले हिस्सों को हटा दिया जाता है। खोल को एक चॉपर से अथवा उन्हें वन में पेड़ों के तनों के साथ घसीट कर हटाया जाता है। उन्हें काटने के बाद सूरज की रोशनी में अथवा आग पर सुखाया जाता है। बेंत को यदि काटने के बाद शीघ्र उचित ढंग से सुखाया न जाए तो ये तेजी से खराब होने लगती है। विभिन्न भारतीय बेंतों को परिपक्वता तक पहुँचने में लगने वाला समय निश्चित नहीं है, सामान्यत: यह लगभग 5 वर्ष होता है। पहले कुछ वर्षों में बेंत का विकास बहुत धीमा होता है, जैसा सभी ताड़ के साथ होता है। पहले-पहले ये सीधी खड़ी होती है और छोटी होती है और बाद में ये ऊपर चढ़ना अथवा लटकना शुरू हो जाती है। एक जड़ से एक अथवा विभिन्न टहनियाँ निकल सकती हैं। पहली फसल की गुणवत्ता बहुत अच्छी नहीं होती, परंतु बाद की फसलें बेहतर गुणवत्ता की होती हैं।

बेंत की फसल काटने का सबसे अच्छा मौसम नवंबर से मार्च तक होता है। गुच्छों को नुकसान पहुंचाने अथवा उनको खत्म होने से बचाने के लिए यह सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। बेंत की मोटी क़िस्मों को चार मीटर की मानक लंबाई में काटा जाता है। पतली बेंत को छ: मीटर की लंबाई में काटा जाता है, जिन्हें बाद में मोड़ा जाता है और आसान परिवहन के लिए बंडलों में बांधा जाता है। अच्छी गुणवत्ता की बेंत प्राप्त करने के लिए कटाई के बाद इन्हें उचित ढंग से संसाधित किया जाना अनिवार्य है। आयातित मलेशियाई बेंत अपने अच्छे रंग, चिकनाई, लचीलेपन और टिकाऊपन के कारण प्राय: भारतीय बेंत से बेहतर गुणवत्ता की होती है।

पूर्वोत्तर क्षेत्र में उगाई जाने वाली सभी बेंत पहाड़ी के ढलान पर उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों से प्राकृतिक रूप से उगाई गई बेंत होती है। अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर और मिजोरम जैसे स्थानों पर प्राकृतिक रूप से उगाई गई बेंत प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।

मनुष्य ने सदियों से बेंत का प्रयोग किया है। उनकी कठोरता, मजबूती, लचीलेपन और लोच ने उन्हें विभिन्न प्रयोजनों के लिए उपयोगी बनाया है। पूर्ण बेंत का प्रयोग फर्नीचर, टोपियों, टोकरियों, चलने वाली छड़ी और मछली पकड़ने की छड़ी बनाने के लिए किया जाता है। कुछ क्षेत्रों में झूलते हुए पुल पूरी तरह से बेंत से बनाए जाते हैं। केन के कटे हुए हिस्सों का प्रयोग टोकरी बनाने, रेटनिंग फर्नीचर बनाने और बड़े पैमाने पर बांधने तथा बाइंडिंग के लिए किया जाता है।