Janapada Sampada
मेघालय की बांस तथा बेंत संस्कृति
मेघालय तीन प्राचीन पहाड़ी समुदायों अर्थात ख़ासी, गारो और जयंतिया की मात्रभूमि है। यह अपनी मनोरम सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। प्रकृति ने मनुष्य को मनोवैज्ञानिक रूप से और आध्यात्मिक रूप से प्रभावित किया है। इसने अन्य रोचक रचनात्मक रुझानों को आगे बढ़ाया है जो विशेष रूप से प्रतीकात्मक, धार्मिक और चित्रलेखात्मक हैं। मेघालय में विभिन्न शिल्प पाए जाते हैं और इनमें से महत्वपूर्ण हैं बेंत तथा बांस के कार्य, कलात्मक बुनाई और लकड़ी पर नक्काशी। तथापि यहाँ विभिन्न कठिनाइयाँ हैं। गारो पहाड़ियों से बांस निकालना बहुत कठिन है और इसके लिए इस काम के अच्छे अनुभव वाले व्यक्ति की आवश्यकता होगी। यहाँ परिवहन भी बाधा है। सभी कठिनाइयों में सबसे उल्लेखनीय है काम करने के लिए अपेक्षित आवश्यक पूंजी।
बांस की किस्में:
ख़ासी जाल (वर्षा के पानी में पाई जाने वाली छोटी मछली पकड़ने के लिए प्रयुक्त)
बांस और बेंत शिल्प
बांस जंगल में उगता है और कुछ किस्में विशेष रूप से उगाई जाती हैं। मेघालय बांस की विभिन्न क़िस्मों में समृद्ध है। कुछ किस्में हैं र्य्ङ्ग्ङ्गई, पतली पत्तियों के साथ कठोर तना; तीर-आ, एक प्रकार की जंगली बेंत; सीज शरह, लंबे फैलाव के साथ कठोर तना; ट्र्यलाव, पश्चिमी ख़ासी पहाड़ियों में प्रचलित; स्कोङ्ग, पतला तना और कुछ डाट जैसी छाल; सीज, एक छोटा चिकना तना; सीज लिएह, (एक कोका प्रजाति); ऋ-आईए-न, कम पत्तियों वाला एक पतला बांस; नाम भूमि, बहुत छोटी कोमल टहनियाँ; जपुंग, रदन पौधे के समान; क्डाइट (अक्रा)और सिल्ली, जपुंग के समान; लाना, एक प्रकार का झाड़ू; सीज इओङ्ग, चुँगा और पानी ले जाने के लिए ट्यूब की तरह प्रयुक्त; श्केन, इसका आवरण चिकना होता है; सीज ब्री, इसे एक निम्न गुणवत्ता का बांस माना जाता है; रिमेट और रिफिन, ये बेंत होती हैं; र्य्ङ्ग्ङ्गई, इसका प्रयोग निर्माण के लिए किया जाता है; त्रि-आ, इसका प्रयोग चारदीवारी, खलिहान और दीवारें बनाने के लिए किया जाता है; ट्र्यलाव, यह फैक्टरी में प्रयोग और कागज बनाने के लिए बहुत अच्छा होता है; ऋ-आईए-इन,इसका प्रयोग मोड़ने तथा लपेटने के लिए एक तार के रूप में किया जाता है; क्डाइट, यह घरों की दीवारें बनाने के लिए अच्छा है; बांस की टहनियाँ अथवा लौंग सीज, मसाले बनाने के लिए,उत्तर में देखा जाता है; फूस अथवा उ स्दर और त्य्नृएव, दक्षिण में उगने वाला एक ताड़ जो छप्पर के घरों के लिए अच्छा होता है।
बेंत और बांस शिल्प का राज्य की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान है, जो कृषि के बाद दूसरे स्थान पर है। कारीगर कृषि से समय मिलने पर शिल्प का कार्य करते हैं। बांस तथा बेंत के उत्पाद अधिकतर दो प्रकार के होते हैं नामत: (i) दैनिक उपयोग के लिए आवश्यक तथा औसत गुणवत्ता की वस्तुएँ, जो स्थानीय आवश्यकताओं के लिए अधिक उपयुक्त होती हैं; और (ii) अच्छी गुणवत्ता की वस्तुएँ, सजावटी तथा उपयोगी दोनों, अधिक परिष्कृत बाज़ारों की आवश्यकताओं तथा पसंद को पूरा करने के लिए। ख़ासी लोग बेंत की आकर्षक टोकरियाँ तथा छलनी बनाने के लिए जाने जाते हैं। गारो भी बांस संस्कृति के विभिन्न स्वरूपों में समृद्ध हैं। गारो पहाड़ियों में बांस तथा बेंत प्रचुरता से पाई जाती है। इनमें से कुछ में ख़ासी बांस तथा बेंत से मिलती-जुलती कुछ किस्में भी शामिल हैं। चूंकि बांस के झूंड वन भूमि के एक बड़े हिस्से में होते हैं इसलिए अब अन्य लघु अथवा सहायक मिलें विकसित करने के लिए और कदम उठाए जा सकते हैं। बांस से बनाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के निर्माण तथा शिल्प हैं जैसे विभिन्न प्रकार की टोकरियाँ और चटाई बनाना। अर्द्ध-ऊष्णकटिबंधीय जलवायु परिस्थितियाँ बांस संस्कृति की विशिष्टता है और यह विभिन्न क़िस्मों के बांस के विकास को प्रभावित करती है। टोकरियाँ (जिन्हें स्थानीय रूप से खोक अथवा ठुगी के नाम से जाना जाता है) लोकप्रिय हैं। मेघूम खोक के नाम से जाने जाने वाली कलात्मक टोकरियाँ गारो पहाड़ियों में बनाई जाती हैं, और आदिवासियों द्वारा कपड़ों सहित मूल्यवान वस्तुएँ रखने के लिए इनका प्रयोग किया जाता है।
गारो द्वारा लकड़ी पर नक्काशी का काम भी किया जाता है जिसमें एक अत्यधिक गर्म नुकीली छड़ी से बांस में डिजाइन उकेरे जाते हैं। मेघालय में ख़ासी महिलाएं एक आकर्षक बड़ी गोल टोपी पहनती हैं जो एक वृत्ताकार बांस के ढांचे से बनी होती है जिसका मुख मोटा होता है जो कपड़े से ढका होता है। टोपी के आगे के हिस्से पर किनारे तथा ऊपर की ओर बेंत का एक सुंदर जालीदार डिजाइन बनाया जाता है, पैटर्न में प्रत्येक त्रिकोण पर एक छोटी गोल बूंद लगाई जाती है। चटाइयाँ, मूरह और ख़ासी छाते (जिन्हें स्थानीय रूप से कुरूप के नाम से जाना जाता है) हल्की तथा औसत गुणवत्ता में बनाए जाते हैं।
टोकरियाँ:
क. (खुली बुनाई वाली सामान ले जाने की टोकरी):
(i) ख़ासी सूअर टोकरी:
“सूअर टोकरी”, जैसा कि नाम से पता चलता है, सूअरों को ले जाने के लिए प्रयुक्त एक टोकरी है और इसे ख़ासी पहाड़ियों में प्रयोग करते हुए देखा जाता है। इसका स्थानीय नाम ज्ञात नहीं है। “सूअर ले जाने वाली टोकरी” के बजाय “सूअर पैक करने वाली टोकरी” उस तरीके को अधिक उचित ढंग से व्यक्त करता है जिसमें टोकरी प्रयोग की जाती है। जीवित सूअरों के बाजार तक आसान परिवहन को सुविधाजनक बनाने के लिए टोकरी में रखा जाता है।
इसके चारों पैरों को इसके शरीर के साथ बांधने के बाद सूअर के सिर को पहले अंदर डालते हुए नीचे किया जाता है ताकि इसका थूथना टोकरी के तले में खुले स्थान से बाहर आए और इसका पिछला हिस्सा रिम के ऊपर बाहर आए। सूअर के पिछले पैरों को बांधा जाता है और रिम पर बाइंडिंग पशु को आराम से पकड़ती है परंतु टोकरी के अंदर इसे मजबूती से पकड़ा जाता है।
टोकरी का आकार एक टेस्ट-ट्यूब जैसा होता है, रिम की तरफ जाते हुए व्यास लगातार बढ़ता है। इसे कटे हुए बांस के चौड़े परंतु पतले बाहरी भाग का प्रयोग करके खुली-षट्कोणीय बुनाई में बुना जाता है। इसके घटक काफी चौड़े परंतु पतले होते हैं – 10 मिमी चौड़े और 1 मिमी मोटे। टोकरी का रिम पर व्यास 280 मिमी होता है और इसकी ऊंचाई 510 मिमी होती है। इस टोकरी में अत्यधिक रोचक संरचनात्मक संकल्पना का प्रयोग किया गया है। बुनाई में प्रयुक्त घटकों को कई गुना संख्या में लिया जाता है और यह पूरी टोकरी को अधिक मजबूत बनाने के लिए साथ मिल कर काम करते हैं।
सबसे पहले टोकरी की आंतरिक परत को पूरा किया जाता है और उसके बाद तैयार आंतरिक परत को साँचे के रूप में प्रयोग करते हुए बाहरी परत को इसके ऊपर मजबूती से बुना जाता है। इस टोकरी में दोहराई जाने वाली एक रोचक चीज है वह तरीका जिसमें बांस के कठोर टुकड़ों को घटक में रेशे को तोड़े बिना अत्यधिक मोड़ा जाता है।
ख. (बंद बुनाई सामान ले जाने की टोकरी)
(i) खोह:
खोह मेघालय की ख़ासी जनजाति द्वारा सामान्य-उद्देश्य की ख़रीदारी के लिए प्रयोग की जाने वाली एक अपरिष्कृत बंद-बुनाई टोकरी होती है। इस टोकरी को सिर पर बांधे जाने वाली एक पट्टी से पीठ पर ले जाया जाता है। इसकी रिम का व्यास 420 मिमी होता है और इसके किनारे एक सीधी रेखा में नीचे आते हैं और तले पर एक बिन्दु बनाते हैं। टोकरी की ऊंचाई 620 मिमी है।
किनारे की बुनाई में धागे के घटक दूसरी तरफ आगे बढ़ाए जाने से पहले तले पर अत्यधिक मोड़े जाते हैं। कपड़े के घटक को बांस के कटे हुए बाहरी भाग से बनाया जाता है, जो धागे के घटक की चौड़ाई तथा मोटाई से आधे होते हैं। कपड़े में बांस की बाहरी परत टोकरी की बाहरी सतह के सामने होती है। बांस की चार पट्टियाँ आधार को मजबूत बनाती हैं। रिम का ऊपरी किनारा स्व-सुदृढ़ होता है।
(ii) ख़ासी फल टोकरी:
इस टोकरी का प्रयोग फलों तथा सब्जियों की पैकिंग तथा परिवहन के लिए किया जाता है। इसकी संरचना खोह के समान होती है। इस टोकरी का स्वरूप अणुवृत्त के आकार के गुंबद के समान होता है। इसकी वृत्ताकार रिम का व्यास 350 मिमी होता है और इसकी ऊंचाई 300 मिमी होती है। धागे में बांस के चौड़े बाहरी कटे हुए भाग प्रयोग किए जाते हैं, जो आधार बनाने के लिए रेडियल रूप से परस्पर-व्याप्त होते हैं। कपड़े की कुंडली के पहले कुछ घुमाव अत्यधिक पतले बांस के कटे हुए टुकड़ों से बनाए जाते हैं। बाद के घुमावों में कपड़े के घटकों का प्रयोग किया जाता है जो धागे की चौड़ाई के बराबर चौड़े होते हैं, तथापि इसकी मोटाई कम होती है। रिम स्व-सुदृढ़ होती है।
ग. (उथली सामान ले जाने की टोकरियाँ):
(i) शांग:
शांग मेघालय की जयंतिया जनजाति द्वारा प्रयुक्त एक उथली भंडारण तथा ख़रीदारी-प्रदर्शन टोकरी होती है और यह बांस के कटे हुए टुकड़ों से बनी होती है। इसका आधार वर्गाकार होता है जिसका विकर्ण 240 मिमी होता है और इसके किनारे बाहर फैलते हुए 430 मिमी व्यास की एक वृत्ताकार रिम बनाते हैं। इसकी ऊंचाई 240 मिमी होती है। इसका आधार केंद्र के चारों ओर चार-गुना समरूपता में एक विकर्णीय बुनाई में बुना जाता है। एक कुंडलीनुमा कपड़े का घटक किनारे की बुनाई बनता है जिसमें प्रत्येक किनारे की केंद्रीय रेखा के साथ उलटे क्रम का आड़ा पैटर्न होता है।
(ii) ख़ासी उथली टोकरी:
ख़ासी टोकरी की बुनाई बांस के कटे हुए टुकड़ों से की जाती है और इसकी बुनाई संरचना जयंतिया शांग के समान होती है। इनमें अंतर रिम-सुदृढीकरण और किनारा-सुदृढीकरण संरचना में होता है। वर्गाकार आधार का व्यास 240 मिमी होता है, गोल रिम का व्यास 360 मिमी होता है और इसकी ऊंचाई 230 मिमी होती है। आधार को एक वर्गाकार जोड़ बनाने के लिए, जिस पर टोकरी टिकी होती है, मोड़े गए बांस के एक मोटे टुकड़े से सुदृढ़ किया जाता है। यह बांस का कटा हुआ टुकड़ा 35 मिमी चौड़ा और 4 मिमी मोटा होता है और यह काफी बड़ी चौड़ाई वाले आवरण के बांस से बनाया जाता है। बांस के कटे हुए चौड़े टुकड़ों के आठ किनारा-सुदृढीकरण घटकों को जोड़ से जोड़ा जाता है, चार कोनों में जोड़े जाते हैं और चार प्रत्येक किनारे के केंद्र पर जोड़े जाते हैं। इन पट्टियों को दोनों सिरों से आकार दिया जाता है। एक तुलनात्मक रूप से कठोर बांस में लचीलापन लाने के लिए चौड़ाई अथवा मोटाई कम करने की परिकल्पना ख़ासी और जयंतिया उत्पादों की एक रोचक संरचनात्मक विशेषता है।
घ. (छोटी भंडारण टोकरियाँ):
(i) छोटी ख़ासी भंडारण टोकरियाँ:
मेघालय की ख़ासी जनजाति मूल्यवान तथा अन्य छोटी वस्तुएँ रखने के लिए छोटी दोहरी सतह वाली टोकरियों का प्रयोग करती है। इन टोकरियों का आधार वर्गाकार होता है और इनके किनारे ऊर्ध्वाधर रूप से ऊपर बढ़ते हैं और एक वृत्ताकार रिम बनाते हैं। अंदरूनी परत कटे हुए बांस के चौड़े अंदरूनी भागों के साथ बुनी जाती है। जहां बाहरी परत में बांस के कटे हुए पतले बाहरी भागों का प्रयोग किया जाता है, वहीं दोनों परतों में वर्गाकार आधार बनाने के लिए धागे के घटक परस्पर गूँथ जाते हैं।
इनमें से कुछ टोकरियों को ऊपर से खुला छोड़ा जाता है जबकि अन्य टोकरियों में इसी संरचना में बुने गए ढक्कन होते हैं चूंकि टोकरी में किनारों पर कटे हुए बेंत के टुकड़ों से काज बनाए जाते हैं। यहाँ इस प्रकार की तीन टोकरियों कि चर्चा की गई है।
1. पहली टोकरी में एक ढक्कन होता है और 130 मिमी के विकर्ण तथा 175 मिमी ऊंचाई वाला एक वर्गाकार आधार होता है। पात्र की वृत्ताकार रिम का व्यास 115 मिमी होता है।
2. दूसरी तरह की टोकरी ऐसी ही होती है, जिसका 125 मिमी विकर्ण वाला एक वर्गाकार आधार होता है, जिसकी रिम का व्यास 115 मिमी, और जिसकी ऊंचाई 175 मिमी होती है। इस उत्पाद का ढक्कन नहीं होता परंतु इसकी रिम पर बेंत के कटे हुए टुकड़े से बना एक पाश होता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि इसे ले जाते समय कमर से अथवा भंडारित करते समय एक हुक से लटकाया जा सके।
3. तीसरी टोकरी चौड़ी होती है पर उथली होती है। वर्गाकार आधार का विकर्ण 220 मिमी,रिम का व्यास 210 मिमी और इसकी ऊंचाई 120 मिमी होती है। इस टोकरी में बांस की कील की आकार की पट्टियों से बने पैर होते हैं और पैर के निचले सिरे पर नोड के एक भाग का प्रयोग किया जाता है। चार पैर टोकरी के कोनों में किनारे की बुनाई में डाले जाते हैं।
ड. (बेंत के कुंडलित पात्र):
(i) शिलोंग के बेंत के कुंडलित पात्र:
यह पात्र 205 मिमी व्यास के एक सिलेंडर के स्वरूप का होता है और इसकी ऊंचाई 145 मिमी है। इसका ढक्कन इतने ही व्यास का होता है, जिसकी एक रिम होती है जो ऊपरी भाग पर पात्र के कुछ किनारे को व्याप्त कर लेती है। इस भाग पर कुंडलित रिम का व्यास किनारों से कम होता है, और जोड़ थोड़ा पीछे किया जाता है। इस भाग पर ढक्कन की रिम आती है।
पात्र और रिम दोनों कुंडलित पूर्ण-बेंत घटकों से बनाए जाते हैं। पहले एक मजबूत कुंडली के रूप में कुंडलित एक एकल पूर्ण-बेंत घटक द्वारा एक सपाट वृत्ताकार आधार बनाया जाता है। आधार के केंद्र पर इस घटक को पतला कर दिया जाता है ताकि इसे आसानी से एक छोटी कुंडली में मोड़ा जा सके। बेंत के कटे हुए टुकड़ों की बाइंडिंग पात्र के साथ चलने वाले इस जोड़े के चारों तरफ लपेटते हुए कुंडलीनुमा पूर्ण-बेंत घटक के लगातार घुमावों को पकड़े रखती है। इस बनावट के परिणामस्वरूप एक अत्यधिक कठोर पात्र बनता है और बाइंडिंग द्वारा सतह पर बनी बनावट झुकी हुई रेखाओं का एक पैटर्न बनाती है। ये पात्र एक दूसरे के अंदर डाल कर तीन अथवा चार के सेटों में बेचे जाते हैं।
छ. (बड़ी भंडारण टोकरियाँ):
(i) ख़ासी भंडारण टोकरियाँ:
ख़ासी भंडारण टोकरी एक ढक्कन के साथ आयताकार बॉक्स होता है और यह बांस के कटे हुए टुकड़ों से बुनी जाती है। ख़ासी लोगों द्वारा कपड़े तथा मूल्यवान वस्तुएँ रखने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। इस टोकरी का एक आयताकार आधार होता है, जो लगभग 510 मिमी बाई 300 मिमी का होता है, और इसकी ऊंचाई ढक्कन सहित लगभग 320 मिमी होती है। पात्र और ढक्कन दोनों की एक समान दोहरी-सतह संरचना होती है। ढक्कन पात्र के मुंह को ढकता है। ढक्कन की रिम पर बेंत के कटे हुए टुकड़ों के पाश बांधे जाते हैं और ये पाश ढक्कन को पात्र से जोड़ने वाले काज के रूप में काम करते हैं। बेंत के टुकड़ों की एक कुंडी बनाई जाती है, जिसे बेंत के टुकड़ों की बाइंडिंग से लपेटा जाता है, को टोकरी के सामने ढक्कन की रिम से जोड़ा जाता है और पात्र की किनारे की सतह पर संगत स्थान पर ऐसी ही संरचना का एक रेशा लगाया जाता है। पूर्ण बांस से बनाए गए कीलों के आकार के पैर टोकरी के कोनों में आधार के नीचे किनारे की बुनाई में दिए जाते हैं। ये बुने गए आधार को जमीन से दूर रखते हैं।
बरसाती और टोपी:
क्नुप:
यह मेघालय में प्रयोग की जाने वाली एक ख़ासी बरसाती है। क्नुप का रूप एक खोखले उथले शंकु जैसा होता है, जिसमें आधार की आधी परिधि एक बिन्दु पर समाप्त होते हुए काफी लंबी बनाई जाती है। इसलिए बरसाती की रिम एक विपरीत बूंद जैसी दिखाई देती है। जब इसे पहना जाता है शंकु की वक्राकार सतह सिर पर टिक जाती है, इसकी चोटी सिर के पीछे जाती है और लंबी सतह पीठ को पूरी तरह से ढक लेती है।
छनाई ट्रे तथा पंखे:
(i) शिलोंग के छनाई पंखे:
शिलोंग का छनाई पंखा सरल टोकरी बनाने की तकनीक का प्रयोग करके बनाया जाता है। कटे हुए बाहरी टुकड़ों से बने धागे के घटक पंखे के अक्ष के समानान्तर होते हैं। इन्हें अपेक्षित गहराई प्राप्त करने के लिए पंखे के पिछले हिस्से में ऊर्ध्वाधर रूप से मोड़ा जाता है। केवल ऊर्ध्वाधर सतह, जहां एक सघन विकर्णीय बुनाई होती है,को छोड़ कर पंखे को पाँच-ऊपर-दो नीचे संरचना में बुना जाता है।
चटाई के किनारों को बाहर की ओर बांस की एक मोटी पट्टी और अंदर की ओर एक पतली पट्टी के बीच सैंडविच किया जाता है। पतली पट्टी को दोनों ओर आगे के किनारे पर मोड़ा जाता है और इस प्रकार यह मोटी पट्टी के साथ के किनारे पर समाप्त होता है। आगे के किनारे को चटाई के नीचे शुरू होने वाले तथा समाप्त होने वाले बांस के मोड़े गए टुकड़े के बीच सैंडविच किया जाता है। इस टुकड़े को कोनों पर रिम के ऊपर व्याप्त किया जाता है,जिससे यह अपने स्थान पर बनी रहती है।
(ii) शिलोंग, मेघालय का मिट्टी खोदने का फावड़ा:
मिट्टी खोदने और भवन निर्माण के लिए फावड़ा बनाने हेतु एक अत्यंत सरल तथा मजबूत निर्माण का प्रयोग किया जाता है। एक दूसरे के पास रखी गई तीन बांस की बाहरी पट्टियों, जिनके सिरे एक कोने में फ्रेम के बाहर जाते हैं, को मोड कर संकेंद्रित आयताकार फ्रेम बनाए जाते हैं। इस फ्रेम के अंदर बांस की बाहरी पट्टियों के साथ एक खुली विकर्णीय बुनाई में एक चटाई बुनी जाती है। चटाई की पट्टियों के ये सिरे मरोड़े जाते हैं और रिम के ऊपर मोड़े जाते हैं और रिम की पट्टियों के बीच रखे जाते हैं।
एक बार चटाई तैयार होने के बाद छोटे किनारे को आधे भाग में मोड़ा जाता है ताकि दोनों कोने मिल सके। इनमें से एक कोने की बाहर आती हुई पट्टियों को दूसरे किनारे की रिम में मोड़ा जाता है। छोटे किनारे से बाहर आने वाली पट्टियों को जुड़े हुए किनारे के साथ रखने के लिए मोड़ा जाता है ताकि यह चटाई की बुनाई के नीचे समाप्त हो। एक मरोड़ी गई बांस की रस्सी जोड़ के किनारों को एक स्थान पर एक साथ रखती है। मिट्टी खोदने का फावड़ा मजबूत होता है क्योंकि इसकी रिम में काफी मोटी पट्टियों का प्रयोग किया जाता है और बांस की बाहरी सतह से काटी गई पट्टियों का चटाई में प्रयोग किया जाता है।
विविध उत्पाद:
बांस की पट्टियों से बनाया गया कवच, गारो पहाड़ियाँ, मेघालय
घरेलू उत्पाद:
(i) ख़ासी बांस का कंघा:
ख़ासी कंघा बांस की विभिन्न पट्टियों से जटिल संरचना में बनाया जाता है। अलग-अलग बांस की पट्टियों से विभिन्न बारीक दाँत बनाए जाते हैं। इन दांतों को मोटी पट्टियों के एक जोड़े के बीच सैंडविच रखा जाता है और इस संयोजन को कपास के धागों से मजबूती से जोड़ा जाता है। यह धागा अपेक्षित अंतर लाने के लिए दांतों के बीच से गुजरता है। कंघे के दोनों ओर दो दाँत विशेष रूप से उनके बीच बारीक दांतों के बचाव के लिए बांस की मोटी पट्टियों से बनाए जाते हैं। दांतों को स्थायी रूप से अपने स्थान पर लगाने के लिए बांधने वाले धागे को एक गाढ़े लिसलिसे राल से कोट किया जाता है। दाँत घटक सैंडविच करने वाली बाइंडिंग से नीचे जाते हैं और इन्हें हैंडल बनाने के लिए बांस की दो चौड़ी पट्टियों से कवर किया जाता है। इनके अतिरिक्त हैंडल के ऊपरी किनारे को सुंदर बनाने के लिए बहुत कम व्यास की एक एकल पूर्ण कल्म का प्रयोग किया जाता है।
उत्पाद को पूरा करने के लिए अब पूरा संयोजन सूती धागे से बांधा जा चुका है। परिणामी उत्पाद जटिल डिजाइन वाला परंतु मजबूत तथा उपयोगी तथा एक अत्यधिक साफ निर्माण है।
ख़ासी लोगों द्वारा बनाए जाने वाले एक भिन्न स्वरूप में हैंडल मुलायम लकड़ी से उकेरा जाता है और धागे से बंधे बांस के दांतों के संयोजन को राल का प्रयोग करके हैंडल के निचले हिस्से में एक खांचे में सेट किया जाता है।
(ii) ख़ासी बांस के पाइप:
ख़ासी पाइप एक टहनी से बनाए गए बांस के पाइप तने से जुड़ी एक बांस की कटोरी को शामिल करते हुए एक छोटी संरचना है। कटोरी और तने दोनों की सतहें बाहरी सतह पर एक तीखे औज़ार से उकेरी गई आकृतियों से सजाई जाती हैं।
सतह पर ऐसी ही आकृतियाँ बनाते हुए बांस का एक सिगरेट होल्डर बनाया गया है। इस होल्डर के दो भाग होते हैं जो एक साझा अक्ष से जुड़े होते हैं। सिगरेट को समाविष्ट करने वाला भाग व्यास में मुख्य भाग से बड़ा होता है।
इस पाइप के हाल ही के स्वरूपों में कटोरी के खोखले भाग को पर्याप्त रूप से बड़ा बनाने के बाद कटोरी की आंतरिक सतह पर एक सिरेमिक लाइनिंग शामिल की गई है।
शब्दकोश:
बाजार | बाजार |
खोह | ख़ासी टोकरी |
क्नुप | ख़ासी बरसाती |
मूरह | निम्न स्टूल भंडारण टोकरी |
विनो | पंखा |
छनाई | भूसा निकालने के लिए उछालना (अनाज); इस प्रकार भूसा अलग करना |