Janapada Sampada
मिजोरम की बांस तथा बेंत संस्कृति
मिजोरम विभिन्न शिल्पों में उत्कृष्ट शिल्पकारों तथा कुशल कारीगरों की भूमि है। बांस तथा बेंत से संबंधित शिल्प राज्य और यहाँ के लोगों के लिए आय का एक बड़ा स्रोत हैं। सींक के कार्य और बेंत संबंधी वस्तुओं के निर्माण में मिज़ो लोगों की दक्षता सर्वज्ञात है। बांस और बेंत के विभिन्न व्यावसायिक शिल्पों तथा फर्नीचर वस्तुओं को बनाने में विविध उपयोग हैं। यहाँ तक कि उनके घर भी सामान्यत: बांस की दीवारों तथा फ़र्श और छप्परे की छतों से बनाए जाते हैं। जहां महिलाएं बुनाई में उत्कृष्टता रखती हैं वहीं पुरुष बेंत तथा बांस के कार्य में विशेषज्ञ होते हैं। ये बेंत की सुंदर टोपियाँ और असाधारण रूप से सुंदर टोकरियाँ बनाते हैं। पारंपरिक मिज़ो टोपी इसकी कारीगरी के लिए जानी जाती है। ऐसा लगता है कि यह टोपी सूती धागे जैसे बारीक बांस से बनाई गई है। इनके विशिष्ट टोप अथवा टोपियों के अतिरिक्त घरेलू टोकरियाँ गूँथे हुए बांस से बनाई जाती हैं और इन्हें मोटी बेंत, जो अत्यधिक कठोर तथा टिकाऊ होती है, से सुदृढ़ बनाया जाता है। काम को कुछ रंग तथा पैटर्न देने के लिए धुएँ से बेंत को चमकीले महोगनी रंग में रंगा जाता है।
एक विशिष्ट मिज़ो टोकरी रिम पर चौड़ी होती है और तले पर पतली होती है। आग जलाने की लकड़ियाँ, जल, धान, चावल और सब्जियाँ ले जाने के लिए टोकरियाँ होती हैं। आभूषण, कपड़े और अन्य मूल्यवान वस्तुएँ भंडारित करने के लिए पत्तियों तथा घास के साथ बेंत और बांस की टोकरियाँ भी बनाई जाती हैं।इनसे बनाई जाने वाली अन्य वस्तुओं में कुर्सियाँ, सोफ़ा, टेबल, बांस की स्क्रीन और पिंजरे, छाते के हैंडल, बुनने की सिलाई और टोपियाँ शामिल हैं। तीन जिलों – आइज़ोल, लुंगलेई और चिंप्तुईपुई (साइलहा) में स्थित हस्तशिल्प केन्द्रों में सभी प्रकार की पारंपरिक टोकरियाँ और सजावट के सामान बनाए जाते हैं। लुयांग्मुयल, आइज़ोल के हस्तशिल्प केन्द्रों में विशिष्ट मिज़ो बेंत टोपियाँ बनाई जाती हैं।
पारंपरिक आभूषणों में भी बांस का प्रयोग किया जाता है। उत्सवों में मिज़ो महिलाएं बांस के एक बैंड की टोपी पहनती हैं जिसमें तोते के पंख लगे होते हैं, जिसके सिरे लटकन से सजाए जाते हैं। बांस के अन्य उत्पादों में मछली तथा जानवर पकड़ने के जाल, वर्षा से बचने के लिए बांस की टोपी जो इसके ऊपरी भाग पर एक सपाट पतली परत के साथ देखी जाती है, जपी, शंकु, गोल बॉक्स और वस्तुओं, फसलों तथा अन्य चीजों के संग्रह तथा पात्रों के रूप में अन्य सामग्री शामिल है। इसलिए इनमें से विभिन्न वस्तुएँ ग्रामीण शिल्पकारों को नियमित अथवा अनियमित रूप से उपलब्ध कराई जाती हैं। ये मुख्य रूप से सिर के भार, सामान ले जाने की टोकरियों, पिंजरों, मछली पकड़ने के नेट आदि रखने के लिए बॉडी पेनियर का काम करते हैं। ये विभिन्न आकारों के होते हैं और पतले अथवा सपाट (जैसे चावल छानने के पंखे) से चौड़े होते हैं, रिम से आधार के अनुपात में लंबे आकार और परंपरिक आकार बनाए रखे जाते हैं। टोकरा अथवा शंकु बड़े भार को समाविष्ट करते हैं जबकि अन्य टोकरियाँ अधिक भार के लिए उपयुक्त नहीं होती।
मिज़ो पुरुष और महिलाएं दोनों पक्के तंबाकू पीने वाले होते हैं। ये अपने स्थानीय रूप से बनाए गए पाइपों से प्रेम करते हैं। महिलाओं का पाइप एक छोटे हुक्के जैसा होता है, जो हाथ में पकड़े जाने और ले जाए जाने के लिए पर्याप्त छोटा होता है। पुरुषों का पाइप पश्चिमी प्रकार का होता है। इन्हें बांस और खरपतवार से बनाया जाता है। चयनित, तैयार बांस उपलब्ध कराने और निर्यात के लिए पाइपों पर नक्काशी करने का उचित प्रशिक्षण दिए जाने पर मिज़ो शिल्पकार पर्याप्त संभावना के साथ एक नई श्रृंखला प्रस्तुत कर सकते हैं।
जहां तक मिज़ो पहाड़ियों में बांस का संबंध है यह बड़ी मात्रा में उपलब्ध है परंतु वर्तमान में इसका अधिकतम उपयोग नहीं किया गया है। तथापि ऐसा प्रतीत होता है कि गठित प्राधिकरणों ने मिजोरम में बेंत की टोपियों तथा बेंत की टोकरियों, बांस की कुर्सियों, टेबलों, रैक, तिजोरियाँ आदि और बांस के स्क्रीन पिंजरों तथा छाते के हैंडलों की कताई तथा बुनाई के लिए बेहतर व्यावसायिक व्यापार लाने की व्यवहार्यता की परिकल्पना की है।
मिजोरम की लुशाई जनजाति द्वारा बनाए जाने वाले घरों के निर्माण में बांस तथा लकड़ी का प्रमुखता से उपयोग किया जाता है। अधिकतर घर ढलानों पर बनाए जाते हैं और इन्हें निरपवाद रूप से विभिन्न लंबाइयों के लकड़ी के खंभों का सहारा दिया जाता है ताकि घर सड़क के स्तर के साथ क्षैतिज रूप से संतुलित रहे। इन खंभों पर क्रॉस बीम बांधी जाती हैं और इन बीम पर लंबे ठोस बांस रखे जाते हैं। उसके बाद बांस के फ्रेम पर बांस की चटाई रखी जाती है, जो घर का फर्श बनती है। घर की दीवारें भी बाहरी खंभों से बांधी गई बांस की चटाई से बनाई जाती हैं। छत में ठोस और कटे हुए बांस के फ्रेम लगाए जाते हैं और इन्हें मोटे छप्पर और कुछ अन्य प्रकार की पत्तियों से ढका जाता है। बेंत का प्रयोग सामान्यत: जोड़ों को बांधे रखने के लिए किया जाता है और कुछ मामलों में लोहे की कीलों का भी प्रयोग किया जाता है। जहां घर का फर्श भूतल से काफी ऊपर है घर के फर्श और भूमि के बीच के स्थान में लकड़ी के लट्ठे से बनी एक सीढ़ी रखी जाती है। दरवाजे और खिड़कियाँ सामान्यत: बांस की चटाई की बनाई जाती हैं और इन्हें दीवार के साथ बांधा जाता है। यह ध्यान दिया जाए कि कुछ मामलों में फर्श, दरवाजे और खिड़कियाँ लकड़ी के तख्तों से बनाए जाते हैं, जबकि अन्य मामलों में इनके बजाय बांस के कटे हुए टुकड़ों का प्रयोग किया जाता है।
घर का आंतरिक हिस्सा एक एकल आयताकार संरचना होती है। इसे बांस की चटाई से बनी स्क्रीन से अथवा बांस अथवा लकड़ी के फ्रेम के साथ एक कपड़ा लगा कर सुविधानुसार कमरों में विभाजित किया जाता है। जिन घरों में विवाहित और अविवाहित लोग साथ रहते हैं वहाँ उपर्युक्त विवरण के अनुसार सोने के लिए पृथक कमरे बनाए जाते हैं। अंगीठी हमेशा घर के एक कोने में होती है, सामान्यत: आगे की मंजिल के पास। यह मिट्टी और पत्थरों की बनाई जाती है और ऊपर उठे हुए खंभों से समर्थित तल से 2-3 फुट ऊपर बनाई जाती है। आग के स्थान के ऊपर बांस का एक फ्रेम लटकाया जाता है जिसे खाना पकाने में प्रयुक्त विभिन्न चीजें जैसे सूखी मिर्च, सूखी मछली, नमक आदि रखने के लिए लटका हुआ रखा जाता है।
बेंत से बना सामान
जनजातियों में बेंत से सामान बनाना एक बारीक काम है। ये बेंत के मुलायम रेशों से नक्काशी और निशानियाँ बनाने में दक्ष होते हैं। ढक्कन वाली और बिना ढक्कन वाली, चिकनी सतह वाली, मजबूत तले वाली, मुख से आधार तक कोमल सतह वाली तथा अंडाकार, वर्गाकार, समतल संरचनाओं में बनाई गई, काटने, मोड़ने तथा प्रविष्ट कराने में उल्लेखनीय कौशल दर्शाने वाली टोकरियाँ देखी जाती हैं।ये विभिन्न प्रयोजनों में काम आती हैं जैसे पिंजरे, पात्र, विभिन्न सामान रखने के लिए टोकरियाँ आदि।
बांस की टोकरी (इसमें जूट की पट्टियाँ लगी हैं), आइज़ोल, मिजोरम
टोकरियों के मॉडल (स्थानीय नाम)
टोकरियों के मॉडल (स्थानीय नाम)
i) दावरव्न
ii) एम्पाइ, एमपिंग, त्लमेन।
iii) पाईकाव्ङ्ग: यह बांस की कटी हुई पट्टियों से बनी टोकरी है।
iv) हनाम
v) न्घव्ङ्ग्कवल
vi) थ्लंगरा
vii) कोह अथवा फव्ङ्ग
viii) पाइह-पर (दावरव्न, हनाम, न्घव्ङ्ग्कवल, पाइह-पर टोकरों के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं).
ix) थुल अथवा थुलते: इनका प्रयोग घर पर और बाहर मूल्यवान वस्तुएँ रखने के लिए किया जाता है।
x) हेरहसव्प: यह बांस का स्टूल होता है।
xi) अरबव्म: यह सामान्यत: नेट की होती है और मुर्गियों को ले जाने की टोकरी होती है।
xii) ठुत्त्लेंग अथवा ठुत्थ्लेंग: यह बांस की कुर्सी होती है; इसके चार पैर होते हैं।
xiii) बोनतोंग: यह रंगीन धागे को रखने के लिए एक सजावटी टोकरी होती है।
xiv) बव्म्रंग: इसकी रिम खोखली तथा वृत्ताकार होती है और यह यू-आकार की होती है।
xv) आइयाव्त:यह मछली अथवा केकड़े को पकड़ने का जाल होता है। अधिकतर मामलों में इसमें विभिन्न प्रकार की जंगली बेंत का प्रयोग किया जाता है। बारीक बेंत नक्काशी, निशानी और अन्य शिल्प कार्य में उपयोगी होती है और यह बांस की संरचना में एक सुंदर सामंजस्य लाती है।
क. खुली बुनाई वाली सामान ले जाने की टोकरी
पाईकाव्ङ्ग एक खुली बुनाई वाली समान ले जाने की टोकरी होती है जो मिजोरम की लुशाई जनजाति द्वारा बनाई तथा प्रयोग की जाती है। महिलाएं सामान्यत: इस टोकरी को आग जलाने की लकड़ी, बांस की पानी की ट्यूबों आदि को ले जाने के जैसे कठोर कामों में प्रयोग करती हैं। पूरी तरह से बांस के कटे हुए बाहरी हिस्से से बनाई गई यह टोकरी सिर पर एक पट्टी से बांधते हुए पीठ पर ले जाई जाती है।इसमें प्रयुक्त बांस की क़िस्मों के स्थानीय नाम हैं रावनल, रावठिंग अथवा फुलरूया। इस टोकरी की बनावट बहुत मजबूत होती है जो ऊर्ध्वाधर भार को सहन कर सकती है। यह निर्माण पैटर्न के कारण और इस तथ्य के कारण होता है कि बांस की काफी मोटी पट्टियों का प्रयोग किया जाता है।
पाईकाव्ङ्ग का आधार वर्गाकार होता है जहां इसका व्यास 230 मिमी होता है और जहां से यह धीरे-धीरे रिम पर जा कर 390 मिमी व्यास के वृत्त में बदल जाती है। इस टोकरी की ऊंचाई 390 मिमी है। इस टोकरी को बनाने वाले शिल्पकार द्वारा ऊंचाई एक हाथ माप कर अनुमानित की जाती है जिसे लुशाई में तव्ङ्ग्खत कहा जाता है। इसके प्रमुख घटक वे हैं जो टोकरी का आधार, किनारे तथा रिम बनाते हैं। इस टोकरी को एक गुथी हुई सिर-पट्टी से ले जाया जाता है।
(ii) एमसिन:
एमसिन संरचना में पाइक्वाङ्ग से काफी मिलती-जुलती होती है। वास्तव में यह उपयोगी टोकरी का एक सजावटी स्वरूप है। लुशाई महिलाएं इस टोकरी को ख़रीदारी अथवा सामान खेतों में ले जाने के लिए प्रयोग करती हैं। यह हल्के कामों के लिए प्रयोग की जाती है। युवतियाँ शाम को बाजार जाते समय इस टोकरी को साथ ले जाने में गर्व महसूस करती हैं।इसे सिर पर एक पट्टी के साथ पीठ पर रख कर ले जाया जाता है।
एमसिन का आधार वर्गाकार होता है जिसका विकर्ण 225 मिमी, रिम का व्यास 370 मिमी और इसकी ऊंचाई 370 मिमी होती है। इसके मुख्य घटक पाईकाव्ङ्ग की चौड़ाई तथा मोटाई के लगभग एक-तिहाई होते हैं परंतु अधिक घटकों का प्रयोग किया जाता है। रिम को छोड़ कर शेष संरचना पाईकावांग के समान होती है।
ख. बंद बुनाई टोकरी
(i) पाइएम:
पाइएम मिजोरम के लुशाई द्वारा अनाज तथा अन्य खेत उत्पाद ले जाने के लिए प्रयुक्त सामान ले जाने की एक बंद बुनाई वाली टोकरी है। लुशाई में एम शब्द का अर्थ है “टोकरी” और पाई का अर्थ है “बिना छेद के”। इस टोकरी को एमपाई भी कहा जाता है। लुशाई महिलाएं इस टोकरी को ख़रीदारी के लिए भी प्रयोग करती हैं। इसे स्थानीय रूप से रावनल नाम से जानी जाने वाली किस्म के बांस के कटे हुए बाहरी भागों से बनाया जाता है। रिम-सुदृढीकरण घटक में; आधार के पास किनारे की बुनाई के कपड़े के घटकों; रिम पर बाइंडिंग में; और टोकरी के कोनों के सुदृढीकरण के लिए बेंत के कटे हुए टुकड़ों का प्रयोग किया जाता है। इसमें प्रयोग किए जाने वाली बेंत की किस्म को स्थानीय रूप से मिटपेरह कहा जाता है।
इस टोकरी का आधार वर्गाकार होता है जिसके विकर्णों का माप 200 मिमी होता है और टोकरी का अनुप्रस्थ काट एक धीमे बदलाव से गुजरता है जब तक यह 410 मिमी के व्यास की एक सटीक वृत्ताकार रिम तक नहीं पहुँच जाता। इसकी ऊंचाई लगभग 430 मिमी है। बेंत से बने सभी घटकों को टोकरी में प्रयोग करने से पहले गहरा लाल-भूरा रंग आने तक गर्म किया जाता है।
(ii) त्लमेन:
त्लमेन एक लुशाई उत्पाद है जो पाइएम से बड़ा होता है, जो पुरुषों द्वारा खेतों में उगाई गई चीजें लाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस टोकरी का आधार वर्गाकार होता है और इसकी रिम वृत्ताकार होती है।
वर्गाकार आधार का विकर्ण 210 मिमी होता है और इसके किनारे अत्यधिक बाहर निकलते हुए 520 मिमी व्यास की रिम बनाते हैं। टोकरी की ऊंचाई 520 मिमी है। इसकी संरचना और बनाने की पद्धति पाइएम के समान है।
(iii) दावरव्न:
दावरव्न लुशाई लोगों द्वारा भंडारण और खेत से उगाई गई चीजें लाने के लिए प्रयोग की जाने वाली एक और बंद बुनाई वाली सामान ले जाने की टोकरी है। यह टोकरी दो आकारों में बनाई जाती है, पुरुषों का आकार और महिलाओं का आकार।
यह वर्गाकार आधार तथा वृत्ताकार रिम वाली एक संकरी टोकरी होती है। वर्गाकार आधार का विकर्ण 190 मिमी का होता है; रिम का व्यास 420 मिमी और इसकी ऊंचाई 740 मिमी होती है। इसकी संरचना और बनाने की पद्धति पाइएम के समान ही है, बस एकमात्र अंतर है कि इसमें धागे तथा कपड़े के घटकों के लिए कठोर पट्टियों का प्रयोग किया जाता है।
ग. छोटी भंडारण टोकरियाँ
फव्ङ्ग:
फव्ङ्ग स्वत: सुदृढ़ वर्गाकार रिम वाली एक उथली, वर्गाकार आधार वाली टोकरी होती है और मिजोरम की लुशाई जनजाति द्वारा प्रयोग की जाती है। वर्गाकार आधार और वर्गाकार रिम दोनों का विकर्ण 400 मिमी और टोकरी की ऊंचाई 160 मिमी होती है। टोकरी की बुनाई घटकों के दो परस्पर लंबवत सेट को 2-ऊपर-2-नीचे की विकर्णीय संरचना अथवा 3-ऊपर-3-नीचे की विकर्णीय संरचना में गूँथते हुए विकर्णीय-बुनाई पद्धति से की जाती है। कुछ मामलों में वर्गाकार आधार के कोनों को बेंत के कटे हुए टुकड़ों की बाइंडिंग द्वारा सुदृढ़ किया जाता है।
लुशाई लोगों द्वारा ऐसी ही संरचना की छोटी टोकरियाँ लॉयन-लूप वार्प को बनाने के लिए धागा रखने हेतु बनाई जाती हैं। इन्हें फव्ङ्ग-ते-लाइवेल कहा जाता है। “फव्ङ्ग” का अर्थ ऊपर उल्लिखित वर्गाकार आधार वाली टोकरी से है जबकि “ते” का अर्थ है “छोटा” और “लाइवेल” का अर्थ है टोकरी में प्रयुक्त विकर्णीय-बुनाई वाली संरचना द्वारा सृजित “सकेंद्रीय वर्गाकार पैटर्न”।
घ. भंडारण पात्र
थुल:
मिज़ो लोग थुल नामक एक टोकरी का प्रयोग करते हैं। यद्यपि ये टोकरियाँ सामान ले जाने वाली टोकरियों के आकार की होती हैं, परंतु इनकी संरचना दोहरी-सतह वाली होती है और इनके वर्गाकार आधार के कोनों पर पैर होते हैं। एक अर्द्ध-गोलाकार गुंबद अथवा एक बेंत जैसे आकार का एक ढक्कन टोकरी के मुख को ढकता है।
मिजोरम की स्टूल:
मिज़ो स्टूल बेंत के दो छल्लों, जिन्हें छल्लों की परिधि के चारों ओर स्थित बांस की ऊर्ध्वाधर पट्टियों की एक श्रेणी से अलग रखा जाता है, से बना एक छोटा सिलेंडर होता है। इन पट्टियों के दोनों किनारे इस प्रकार बनाए जाते हैं कि ये चूल बनाते हैं,जिन्हें दोनों छल्लों में दिए गए संगत छिद्रों में मजबूती से डाला जाता है। सीट सतह ऊपरी छल्लों पर फैलाई गई कच्ची छाल की बनी होती है और इसे समानान्तर रूप से ऊर्ध्वाधर बाँसों द्वारा अपने स्थान पर रखा जाता है। बेंत के छल्लों को एक झुके हुए कट द्वारा मुक्त सिरों को अतिव्याप्त करके आकार में रखा जाता है, जिन्हें इसके बाद चमड़े की पट्टी से बांधा जाता है। बेंत और बांस का स्थानीय नाम क्रमश: मिटपेरह और फुलरूआ है।
इस स्टूल की सबसे आकर्षक विशेषता है वह तरीका जिससे छल्ले बनाए जाते हैं। मिज़ो शिल्पकारों ने बेंत को मोड़ने का एक अनोखा तरीका खोजा है। चूंकि ताजा काटी गई बेंत काफी लचीली होती है इसलिए बेंत को चयनित व्यास के बेलनाकार खंभे के चारों ओर एक मजबूत कुंडलीनुमा आकार में लपेटा जाता है और इसे सूर्य की गर्मी में तपने के लिए छोड़ दिया जाता है। बेंत को साँचे से हटाए जाने से पहले तीन अथवा चार दिन के लिए सूर्य की रोशनी में रखा जाता है और अपेक्षित आकार के छल्ले बनाने के लिए काटा जाता है।
टुइउम:
टुइउम लगभग 100 मिमी से 140 मिमी व्यास और 450 से 600 मिमी की इंटरनोड लंबाई वाले एक बांस से बनाया जाता है। 900 से 1200 मिमी लंबी एक पानी की ट्यूब बनाने के लिए दो इंटरनोड प्रयोग किए जाते हैं और एक नोडल वॉल आधार बनाती है। इंटरनोड के बीच नोडल वॉल को लुमेन से जोड़ने के लिए भेदा जाता है। द्रव को उड़ेलना सुविधाजनक बनाने के लिए ऊपर के खुले किनारे की आधी परिधि को एक कोण पर काटा जाता है। ट्यूब का भार कम करने, इसे टूटने से बचाने और इंटरनोडल वॉल के माध्यम से वाष्पीकरण द्वारा पानी को ठंडा रखने के लिए बांस की बाहरी परत हटाई जाती है और नोड हटाए जाते हैं।
थ्लंगरा:
थ्लंगरा मिजोरम की लुशाई जनजाति द्वारा प्रयुक्त एक छनाई ट्रे है। त्रिकोणीय थ्लंगरा के लिए ऐसे निर्माण कौशल की आवश्यकता होती है जो केवल कुछ शिल्पकारों के पास है। भार को प्रभावित करने के लिए रावठिंग बांस की पतली पट्टियों की प्रतिरोधकता के कारण इसका प्रयोग किया जाता है। समद्विबाहु थ्लंगरा को प्रयोग करते समय इसकी समान भुजाओं को हाथ में पकड़ा जाता है।
ऐसी टोकरियाँ होती हैं जिनका प्रयोग मच्छलियों को भंडारित करने के लिए किया जाता है। ये या तो मछली पकड़ने वालों द्वारा अपने हाथों में पकड़ी जाती है अथवा उनकी कमर पर एक बेल्ट से बांधी जाती है।
पाइकुर
मिज़ो पाइकुर मुख पर एक शंक्वाकार नुकीले वाल्व के साथ एक बोतल के आकार की संरचना है। इसमें भी मछली केवल बोतल में प्रवेश कर सकती है। मछलियों को आवश्यकता होने पर नुकीले शंकु को हटा कर एकत्रित किया जा सकता है।
लुखुम
लुखुम पारंपरिक टीपी होती है जो आम तौर पर लुशाई पुरुषों द्वारा पहनी जाती है। इसका आकार एक नुकीली टोपी की तरह होता है और यह प्रयोग में नहीं होने पर भी अपना आकार बनाए रखती है। यह दो परतों में बनाई जाती है, जिनमें से प्रत्येक खुली-षट्कोणीय बुनाई में बुनी गई बांस की पट्टियों से बनाई जाती है। अंदरूनी परत सामान्यत: बाहरी परत से कठोर होती है और इसे ऊपर कातते हुए पहले बुना जाता है। यह टोपी उच्च स्तर की कारीगरी से बहुत सावधानी से बनाई जाती है। तथापि हाल ही के रुझान के अनुसार टोपियाँ अधिक कठोर बनाई जाने लगी हैं और परतों के बीच में ताड़ की पत्तियों का स्थान कागज अथवा प्लास्टिक ने लिया है।
बांस की बच्चों के खेलने की बंदूक:
बांस की बच्चों की खेलने की बंदूक स्थानीय शिल्पकारों द्वारा बच्चों के लिए बनाया गया एक रोचक खिलौना है। एक छोटे व्यास वाले बांस को नली की तरह प्रयोग किया जाता है। जब पट्टी को अपने स्थान पर वापस लिया जाता है और छोड़ा जाता है तो यह ट्यूब के अंदर रखी एक छोटी गोली को फेंक सकता है। गोली छोड़ने को नियंत्रित करने के लिए एक देशी ट्रिगर यंत्र दिया जाता है।
ये यंत्र संभवत: स्थानीय रूप से प्रयोग किए जाने वाले अनगिनत पक्षी तथा पशु जालों से विकसित हुए हैं। इनमें से अधिकतर जालों में शिकार द्वारा ट्रिगर को छूने पर जाल को स्प्रिंग करने के लिए बांस की पत्तियों की लोचदार विशिष्टता का प्रयोग किया जाता है।
(i) वाइबेल
मिजोरम की लुशाई जनजाति वाइबेल नामक एक बांस का पाइप बनाती है। इसमें प्रयुक्त बांस की प्रजाति को स्थानीय रूप से तुरसिंग कहा जाता है। यह 50 मिमी तक के व्यास का एक ठोस बांस होता है और यह काफी मजबूत होता है, चूंकि इसे छोड़े जाने पर यह टूटता नहीं है। कटोरी को आकार देने के लिए एक नोड सहित कल्म के एक हिस्से का प्रयोग किया जाता है। कटोरी के खाली भाग को एक छोटे से छिद्र में नोड के माध्यम से निकलवा कर केंद्र में डाला जाता है। बांस का तना नोड के नीचे बनाए गए खाली स्थान में प्रवेश करने के लिए आकार दिए गए शाखा भाग से गुजरता है। नीचे के छिद्र को सुखाई गई लौकी के एक टुकड़े से सील किया जाता है। स्थानीय रूप से उगाए गए तंबाकू का प्रयोग किया जाता है और इस पाइप का प्रयोग केवल पुरुष करते हैं। जबकि लुशाई महिलाएं टुइबुर नामक पाइप का प्रयोग करती हैं।
(ii) टुइबुर
टुइबुर बांस और मिट्टी के एक रोचक संयोजन से बनाया जाता है। इसमें पाँच भाग होते हैं जो एक दूसरे के साथ मजबूती से बंधे जोड़ों में संबंधित घटकों से जुड़े होते हैं। पानी के पात्र और केंद्रीय घटक के बीच के जोड़ को ताड़ के रेशे से बने गूँथे हुए एक बारीक बैंड द्वारा कवर तथा सुदृढ़ किया जाता है। केंद्रीय घटक ठोस होता है और एक र्हिज़ोमे के भाग से इसे आकार दिया जाता है।
शस्त्र
साइरावखेर
साइरावखेर मिजोरम की लुशाई जनजाति द्वारा बनाए जाने वाला एक धनुष होता है और इसका प्रयोग पक्षियों तथा छोटे जानवरों का शिकार करने में किया जाता है। सामान्य धनुष के विपरीत इससे तीरों के स्थान पर मिट्टी की गोलियां दागी जाती हैं। यह बांस की एक चौड़ी पट्टी से बनी एक मजबूत बीम से बना होता है, जिसे एक बांस के बारीक टुकड़े से बने धनुष के तार द्वारा तनाव के साथ मुड़ी हुई स्थिति में रखा जाता है। बीम रावठिंग बांस की बनी होती है जबकि धनुष की तार साइरिल बांस से बनी होती है। धनुष को चलाने के लिए कुछ कौशल की आवश्यकता होती है, चूंकि गोली के बीम को छूए बिना निकलने के लिए इसे एक ओर थोड़ा झुकाना पड़ता है।
दावरव्न | लुशाई टोकरी |
फव्ङ्ग | लुशाई टोकरी |
हुककह | पानी से गुजरती हुई एक लंबी ट्यूब के साथ पूर्वी तंबाकू पाइप। |
जपी | बरसात टोपी। |
लुखुम | पारंपरिक टोपी जिसे आम तौर पर लुशाई पुरुषों द्वारा पहना जाता है। |
पाइएम | लुशाई टोकरी |
पाइकुर | मछली पकड़ने की टोकरी |
टोकरा | एक गधे द्वारा ले जाए जाने वाली एक बड़ी टोकरी; अथवा वाहक के सिर पर एक तार से लपेटा हुआ और पीछे की ओर शरीर से लटकाया गया भार। |
गोली | पदार्थ का छोटा गोल टुकड़ा; छोटी गोली। |
साइरावखेर | लुशाई जनजाति द्वारा बनाए जाने वाला धनुष |
चूल | लकड़ी के छेद में फिट होने वाले आकार के प्रक्षेपण। |
थ्लंगरा | छनाई ट्रे |
टुइबुर | मिज़ो महिलाओं द्वारा प्रयुक्त बांस का पाइप। |
वाइबेल | मिजोरम के पुरुषों द्वारा प्रयुक्त बांस का पाइप। |
सींक का काम | फर्नीचर अथवा टोकरियाँ बनाने के लिए परस्पर गूँथी हुई पतली बेंत। |