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अनंतसूत्र
An Initiative of Ministry of Culture on the Occasion of 75th Republic Day
अटूट धागे, एक नई सुबह की आवाज़ …..
इंद्रधनुषी, अनगिनत प्रतिमानों के विविध रूपों के ज़रिये,
एक ऐसा ताना-बाना बुनते हैं,
जो हमारे जीवन में रोज़ रंग भर जाते हैं ।
विस्तृत परिधि में फैले अपरिमित वस्त्र,
जो कर्मठ महिलाओं को दिव्यता प्रदान करते हैं तब,
जब वे काम के लिए अपनी कमर कसती हैं,
बच्चों और परिवार के साथ काम करती हैं,
या, खेतों में काम करती हैं।
ये अनंत सूत्र,
गाँव और शहर में,
विद्यालय और कार्यालय में ,
शादी और उत्सव में,
और, एक से दूसरे दिन के बीच,
शाश्वत सम्बन्ध का निर्माण करते हैं।
संघर्षों से जन्मे ये अनंत धागे,
अनेक रूपों में विविध कहानियाँ कहते हैं।
गणतंत्र दिवस 2024 :
साड़ी – छः गज़ की असीमित प्रेरणा, जो फैशन की दुनिया को भारत का कालातीत उपहार है। यह एक उत्कृष्ट एवं सुरुचिपूर्ण परिधान हैं जिसमें किसी सिलाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है और इसकी लोकप्रियता कभी कम नहीं होती है । एक ऐसी परिधान जिनमें निहित हैं हमारे कुशल हस्त-शिल्पियों द्वारा बुनी गई हमारी विविधता की अनगिनत कहानियाँ।
आइए इस गणतंत्र दिवस के अवसर पर, हम सब आनंद लें कर्तव्य पथ पर लगी, हमारे देश के हर कोने का प्रतिनिधित्व करने वाली साड़ियों, और बुनावटों की एक अटूट शृंखला के लयात्मक प्रदर्शन का। इस पथ के दोनों तरफ, पहली बार, देश के सभी भागों से लायी गयी लगभग 1900 साड़ियों और बुनावटों को, जो कि लकड़ी के ऊँचे फ्रेम्स पर सुरुचिपूर्ण तरीके से आपके समक्ष प्रदर्शित किया गया है।
हमने समूचे भारत के इस सबसे प्राचीन जीवंत परिधान के साथ-साथ, भारत के बुनाई, कढ़ाई, छपाई, और बंधेज तकनीकों को आपके सम्मुख लाने का प्रयास किया है।
आइए, उन बुनकरों और कलाकारों की कला का उत्सव मनाएं, जिन्होंने सदियों पुरानी हमारी हथकरघा परंपरा को जीवित रखते हुए, अपनी कलात्मक रुचि और लगन को ताने-बाने में ढालकर, अपने अथक प्रयास से इन उत्कृष्ट परिधानों का निर्माण किया है।
सुंदर ब्रोकेड, कलात्मक कांजीवरम, उत्कृष्ट जामदानी, बारीक बलूचरी, प्रभावशाली हिमरस और तनछुई, लुभावने पटोला और इकत, तरंगित पैठणी के साथ-साथ उत्तर-पूर्व, कश्मीर और हिमाचल की आकर्षक और नयनाभिराम पारंपरिक बुनाई का आनंद लें। तेलंगाना से तेलियारूमाल या तमिलनाडु से सुंगड़ी, शांतिनिकेतन से बाटिक, या राजस्थान से सांगानेरी, डाबू ब्लॉक प्रिंट। मणिपुर से मोरंगफी, छत्तीसगढ़ से कोसा, विदर्भ से पेशवरी, या निराली किन्नर जैसे कुछ अद्भुत वस्त्र भी देखे जा सकते हैं।
केंद्रीय कोष्ठकों में, लखनऊ की उत्कृष्ट कढ़ाई वाली चिकनकारी, कर्नाटक की कसूती और लंबानी, सिंधी कढ़ाई, पारसी गारा, बंगाल की कांथा और गुजरात की सूफ़ का आनंद लें। बिहार की सुजनी और कश्मीर से तिल्ला और कशीदा को भी देखा जा सकता है।
आइए, एक कलात्मक अभिव्यक्ति के रूप में साड़ी का अभिनन्दन करें, जो चिर पुरातन भी है और नित नूतन भी, और जो भारत की मातृ-शक्ति का वन्दन है।