क्षेत्र संपदा

इतिहास के क्रम में, कुछ क्षेत्र/प्रदेश भारत के सभी हिस्सों के लोगों को आकर्षित करने वाले सांस्कृतिक केंद्रों में विकसित हो गए हैं। ये केंद्र अभिसरण और विकिरण के स्थान हैं, जहाँ अपकेंद्रीय और अभिकेंद्रीय बल स्पष्ट हैं। एक मंदिर या मस्जिद अक्‍सर भौतिक या वैचारिक केंद्र होता है। अब तक उनका या तो कालक्रम, इतिहास, धर्म या अर्थशास्त्र के दृष्टिकोण से एक रेखीय घटना के रूप में अध्ययन किया गया है, न कि समग्रता के दृष्टिकोण से जिसमें से रचनात्मक कलात्मक गतिविधि की बहुलता उत्‍पन्‍न होती है। क्षेत्रीय संस्कृतियों के अध्ययन के लिए एक प्रतिमान प्रदान करने के लिए यहाँ क्षेत्र का उपयोग व्यापक अर्थों में किया जाता है जो विशिष्ट है लेकिन सीमित नहीं हैं। अत: क्षेत्र संपदा में न केवल एक विशिष्ट इकाई, जैसे विशिष्ट स्थान या मंदिर, बल्कि लोगों पर इसका प्रभाव और पवित्र केंद्र के भक्तिपूर्ण, कलात्मक, भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक पहलुओं पर संपूर्ण प्रभाव और कौन से कारक इसके नवीकरण और निरंतरता के रूप में कार्य करते हैं, के अध्‍ययन की परिकल्‍पना की गई है।

इस कार्यक्रम के तहत पूर्व में दो प्रमुख परियोजनाएं शुरू की गई थीं: