Janapada Sampada
उल्लिखित संदर्भ-ग्रंथ सूची-बांस तथा बेंत
- सराफ डी. एन. इन द जर्नी ऑफ क्राफ्ट डेवलपमेंट, 1941-1994 (द पैनोरमा क्राफ्टस इन स्टेट्स) संपर्क (प्रकाशन विभाग), नई दिल्ली, 1991
यह पुस्तक भारत के अन्य राज्यों के साथ-साथ पूर्वोत्तर भारत के सात सिस्टर स्टेट में प्रयोग में लाए जाने वाले सभी शिल्पों के बारे में संक्षिप्त किंतु उपयोगी जानकारी प्रदान करती है। इस पुस्तक में सात राज्यों के परिपेक्ष्य में शिल्प के विकास की विवेचना की गई है।
- पांचानी चंद्रशेखर, अरूणाचल प्रदेश, रिलीजन, कल्चर एंड सोसाइटी, कोणार्क पब्लिशर्स प्रा. लि. नई दिल्ली, 1989
इस पुस्तक में एक अध्याय ऐसा है जिसमें अरूणाचल प्रदेश में बेंत तथा बांस की संस्कृति पर प्रकाश डाला गया है। इसमें टोकरी बनाने तथा इसके विभिन्न उत्पादों और बेंत के उत्पादों के बारे में सूचना दी गई है।
- द आर्ट्स एंड क्राफ्टस ऑफ नागालैंड, नागा इंस्टीट्यूट ऑफ कल्चर, नागालैंड सरकार, कोहिमा, 1968
इस पुस्तक में बांस की कारीगरी का अध्ययन करने का प्रयास किया गया है; इसके बाद बांस की कारीगरी के इतिहास, टोकरी बुनने की तकनीक बताई गई है और इसमें नागालैंड के शिल्पों की उत्कृष्ट प्रकृति का निदर्शन भी किया गया है।
- डा. हुसैन माजिद, इनसाइक्लोपीडिया ऑफ इंडिया, नागालैंड, रीमा पब्लिकेशंस, नई दिल्ली, 1994
नागालैंड से संबंधित इस खंड के एक अध्याय में इस क्षेत्र में विशेषकर काष्ठ और बेंत की कारीगरी पर चर्चा की गई है। इस अध्याय में बेंत तथा बांस के शिल्पों की विभिन्न विविधताओं तथा प्रयुक्त तकनीक को उजागर किया गया है।
- बारेह एच., इनसाइक्लोपीडिया ऑफ इंडिया, मेघालय, खंड XXII, रीमा पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली, 1994
यहां एक आलेख में मेघालय में बांस की संस्कृति के बारे में जानकारी दी गई है। इसमें यहां उगाए जाने वाले बांस के भिन्न–भिन्न किस्मों का भी उल्लेख किया गया है।
- डा. बोरा डी. के., डा. डी. के. द्वारह, श्री बी. पॉल, इम्पैक्ट ऑफ अर्वेनाइजेशन इन अरूणाचल प्रदेश, सीरिज-1, (डोपारिजो), अनुसंधान निदेशालय, अरूणाचल प्रदेश, ईटानगर, 1997
इस पुस्तक में उत्तर-पूर्व भारत के इस पहाड़ी राज्य में शहरीकरण के प्रभाव की अत्यंत सुविज्ञता के साथ विवेचना की गई है। इसके विशेषीकृत अध्ययन का विषय दोपैरिजो (अरूणाचल प्रदेश में एक स्थान) है। इसमें एक आलेख ऐसा है जिसमें डोपैरिजो के परंपरागत बांस और बेंत की गाडि़यों पर शहरीकरण के प्रतिघात की अत्यधिक दिलचस्प जानकारी दी गई है।
- डा. दास ए. के, ट्राइबल आर्ट एंड क्राफ्टस, अगम कला प्रकाशन, दिल्ली, 1979
यह पुस्तक अरूणाचल प्रदेश तथा टोकरी-बनाने की जनजातीय कारीगरी, प्रयुक्त किए जाने वाले धातु के औजारों, करंडशिल्प की तकनीक (तकनीकी रूप से विवेचित), टोकरियों के विभिन्न आकारों और रूपों तथा निदर्शनों सहित इसके सामाजिक-धार्मिक महत्व पर संकेंद्रित है।
- बहादुर मुतुआ, केन एंड बंबू क्राफ्टस ऑफ मणिपुर, मुटुआ म्युजियम, इम्फाल 1994
मणिपुर के इस पुस्तक का मुख्य केंद्र-बिंदु होने की वजह से, यहां के बांस तथा बेंत की कारीगरी के समस्त दायरे पर एक क्रमबद्ध अध्ययन किया गया है। यह बहुत अच्छा निदर्शन प्रदान करती है तथा इसमें समग्र रूप से इतिहास, संस्कृति, तैयारी तथा तकनीक, टोकरियों के विभिन्न प्रकारों, जाल, छतरियों, हेडगियर, तथा आभूषणों, वाद्य-यंत्रों, कुलदेवताओं, मूर्तियों, चित्रों इत्यादि का उल्लेख है।
- रंजन एम. पी, नीलम अय्यर, घनश्याम पांडया, बंबू एंड केन क्राफ्टस ऑफ नॉर्थ ईस्ट इंडिया, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन
उत्कृष्ट और विस्तृत निदर्शनों के साथ उत्तर-पूर्व भारत की बांस तथा बेंत की कारीगरी के बारे में जानकारी प्रदान करने वाली पुस्तक में बांस की वास्तुकला, फर्नीचर, बांस के बर्तनों, टोकरियों, थैलियों, फटकने वाली तश्तरियों, पंखों, मछली के फंदों, रेन शील्डों, हेडगियर बांस के ठाट के उत्पादों तथा विविध उत्पादों के संबंध में अत्यधिक विस्तृत तथा उपयोगी फुटेज हैं।
- नाथ टी.के, बंबू केन एंड असम, स्पांशर्स: इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया, स्मॉल इंडस्ट्रिज डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया, गुवाहाटी, असम
इस पुस्तक में अनन्य रूप से असम में बांस तथा बेंत की कारीगरी का उल्लेख है। इसके इतिहास, भौगोलिक पूर्वापेक्षाओं, इसकी वृद्धि के लिए अनुकूल जलवायु दशाओं, इसकी विशेषताओं, असम में पाए जाने वाले इसके विभिन्न किस्मों पर किया जा रहा शोध व्यापक और विस्तृत है। इसमें असम में बांस तथा बेंत की कारीगरी के भविष्य पर भी बल दिया गया है।
- पैकिनटीन ई.एच. सेलेक्टेड हैंडिक्राफ्टस ऑफ असम, सेंशस ऑफ इंडिया, खंड-III, असम, भाग VII-ए, 1961
भारत की जनगणना रिपोर्ट 1961, खंड-III के अध्याय VII में असम के बेंत और बांस की कारीगरी का उल्लेख है। इसमें इस कारीगरी में प्रयुक्त किए जाने वाले उपकरणों और औजारों तथा निकट भविष्य में इस कारीगरी के विकास की गुंजाइश के साथ इसके इतिहास तथा उत्पत्ति, उत्पादों और विनिर्माण प्रक्रिया (25 से 30 सचित्र उदाहरणों सहित) के बारे में जानकारी दी गई है।
- ब्रिगेडियर वर्गीस सी.जी. वी.एस.एम. (सेवानिवृत्त), आर. एल. थनझावना एमसीएस (सेवानिवृत्त), द हिस्ट्री ऑफ द मिजो, खंड-II, विकास पब्लिशिंग हाउस प्रा. लि. दिल्ली, 1997
इस पुस्तक के परिशिष्ट (3) में बांस, विशाल घास के बारे में जानकारी दी गई है। यह जानकारी 1982 के नेशनल ज्योग्राफिक मैगेजिन में लुई मार्डेन द्वारा प्रकाशित आलेखों तथा द टाइम्स ऑफ इंडिया में एम. कृष्णन द्वारा प्रकाशित कंट्री नोट बुक के उद्धरणों पर आधारित है।
- हैंडिक्राफ्टस ऑफ इंडिया, अखिल भारतीय शिल्प बोर्ड, उत्पादन मंत्रालय, भारत सरकार, प्रकाशन प्रभाग, नई दिल्ली
इस पुस्तक में भारत में हस्तशिल्पों के सचित्र उदाहरण हैं। इस पुस्तक में बांस तथा बेंत के उत्पादों जैसे कि रेन हैट, असम की चाय की टोकरियों के चित्र देखे जा सकते हैं। सभी सचित्र उदाहरण रंगीन हैं और प्रत्येक उदाहरण के नीचे दिए गए अनुशीर्षक (कैप्शन) से प्रत्येक उत्पाद के बारे में उपयोगी जानकारी प्राप्त होती है।
- चट्टोपाध्याय कमलादेवी, द ग्लोरी ऑफ इंडियन हैंडिक्राफ्टस, इंडियन बुक कंपनी, नई दिल्ली, 1976
इस पुस्तक में एक आलेख में करंडशिल्प,चटाई की बुनाई, बांस तथा बेंत की कारीगरी पर बल दिया गया है जिसमें असम, त्रिपुरा और मणिपुर के बांस और बेंत शिल्पों पर अधिक जोर दिया गया है।
- चट्टोपाध्याय कमलादेवी, इंडियन हैंडिक्राफ्टस, एलाइड पब्लिशर्स, नई दिल्ली, 1963
इस पुस्तक में सचित्र उदाहरणों सहित एक आलेख है जिससे करंडशिल्प कला तथा सरल शब्दों में इसकी तकनीकों को उजागर किया गया है। इसमें बांस तथा इसके बहुत से इस्तेमालों को भी समझने का प्रयास किया गया है।
- भवनानी इनाक्षी, फोक एंड ट्राइबल डिजाइंस ऑफ इंडिया, डी. बी. तारापोरवाला संस एंड कं. प्रा. लि. मुंबई, 1974
इस पुस्तक में एक आलेख है जिससे जनजातीय तथा लोक दोनों करंडशिल्प पर बल दिया गया है। लोक करंडशिल्प में, असम का संदर्भ दिया जा रहा है और जनजातीय करंडशिल्प में, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड तथा अरूणाचल प्रदेश का संदर्भ प्राप्त किया जा सकता है।
- अब्राहम टी. एम. हैंडिक्राफ्टस इन इंडिया, ग्राफिक्स कोलंबिया, नई दिल्ली, 1964
इस पुस्तक में करंडशिल्प पर एक आलेख प्राप्त किया जा सकता है। इस आलेख में कुछ सचित्र उदाहरणों के साथ असम तथा बंगाल के संबंध में टोकरी की बुनाई, बेंत की चटाई तथा बांस पर चर्चा की गई है।
- पराशर दुष्यंत, डी. हारा प्रसाद, द बर्ड मिस्ट्री ऑफ जटिंगा, कोणार्क पब्लिशर्स प्रा. लि. दिल्ली, 1994
इस पुस्तक में एनसी पहाडि़यों (असम) के लोगों के दैनिक जीवन, उनकी संस्कृति, सामाजिक जीवन, प्राकृतिक दृश्य की खूबसूरती, बांस के वनों के उत्कृष्ट सचित्र उदाहरणों के साथ-साथ प्रकृति के रहस्यमयी तरीकों-जटिंग पक्षी का रहस्य जिससे विश्वभर के शोधकर्ताओं और पक्षी विज्ञानियों की कल्पना आकृष्ट हुई-के बारे में गहन जानकारी मिलती है।
- सिंह प्रकाश, नागालैंड, नेशनल बुक ट्रस्ट, भारत, नई दिल्ली, 1972
इस पुस्तक में नागालैंड के हस्तशिल्पों पर बल देते हुए नागा संस्कृति पर एक आलेख है। यहां नागालैंड में जनजातीय विशिष्ट टोकरी निर्माण का भी उल्लेख किया गया है। इस आलेख में बांस के विभिन्न उपयोग को भी जगह मिली है।
- ओलानिया एन. एस, इनसाइक्लोपीडिया ऑफ इंडिया, अरूणाचल प्रदेश, खंड-32, रीमा पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली, 1994
इस विश्वकोश के इस खंड में एक आलेख है जिसमें अरूणाचल प्रदेश की जनजातियों की बेंत और बांस कारीगरी पर बल दिया गया है। इसमें करंडशिल्प, बांस की वास्तुकला, संस्पेंशन ब्रिज और बेंत के फर्नीचर पर चर्चा की गई है।