Janapada Sampada
पूर्वोत्तर भारत की कला और शिल्प
पूर्वोत्तर भारत में बड़ी संख्या में जनजातियाँ और उप-जनजातियाँ हैं। उनमें शिल्प की बहुत ही मजबूत परम्परागत परम्परा प्राप्त होती है और प्रत्येक जनजाति शिल्पकारी में उत्कृष्ट है: यह उत्कृष्टता इसके सदस्यों द्वारा उत्पादित विभिन्न उत्पादों में दिखाई देती है। पूर्वोत्तर भारत के प्रत्येक राज्य की प्रमुख कला और शिल्प नीचे दिए गए हैं:
अरुणाचल प्रदेश
अरुणाचल प्रदेश की एक जीवंत शिल्प परंपरा है और प्रत्येक जनजाति शिल्पकारी में उत्कृष्ट है और यह उत्कृष्टता इसके सदस्यों द्वारा उत्पादित विभिन्न उत्पादों में दिखाई देती है। इनके शिल्प के कार्यक्षेत्र में निम्नलिखित शामिल है – कालीन बनाना, मुखौटे, पेंट किए गए लकड़ी के पात्र, बांस और बेंत के शिल्प, बुनाई,लकड़ी पर नक्काशी, आभूषण और अन्य विविध शिल्प। इसमें निम्नलिखित शामिल है – हाथ से बने मिट्टी के बर्तन, पीतल की कटाई, चांदी के कार्य आदि। ये लोग बकरी के बालों, हाथीदांत, सूअर के दाँत, एगेट के मनकों, तथा अन्य पत्थरों और पीतल तथा काँच से भी विभिन्न वस्तुएँ बनाते हैं।
असम असम प्रमुख रूप से कृषि आधारित है और यहाँ के लोगों ने विभिन्न प्रकार की कला और शिल्प में उत्कृष्टता प्राप्त की है। इनमें हथकरघा बुनाई, बेंत तथा बांस के कार्य, शीतलपीठ,पीतल तथा कांसा धातु के काम, हाथीदांत, लकड़ी का काम, शोलापीठ, मिट्टी के बर्तन और रेशा शिल्प शामिल है। हथकरघा बुनाई में एंडी, मुगा तथा शहतूत के रेशम की संस्कृति शामिल है।
मणिपुर
मणिपुर ने जनजातीय परंपराओं तथा वैष्णव मत के अपने विशिष्ट मिश्रण के साथ भारतीय संस्कृति की समृद्धि तथा विविधता में योगदान दिया है। मणिपुर के विभिन्न रंगीन शिल्पों में से उनके वस्त्रों, मजबूत कांसे की कटोरियों, बेंत और बांस और स्पंजी ईख की बनी चटाइयों का विशेष उल्लेख किया जाना चाहिए। मणिपुर अपने सोने और सोना चढ़े हुए आभूषण – कानों की बालियों,हार, बाजूबंद और कंगनों के लिए भी प्रसिद्ध है। मणिपुर में तिनकों तथा मिट्टी की सुंदर गुड्डियाँ और खिलौने भी बनाए जाते हैं।
मेघालय
मेघालय को विभिन्न कला तथा शिल्प के लिए जाना जाता है। यहाँ बेंत और बांस का प्रमुख स्थान है। गारो हिल्स में वस्त्रों की कलात्मक बुनाई तथा लकड़ी पर नक्काशी का काम किया जाता है। एंडी रेशम की रेशम बुनाई बहुत प्रसिद्ध है। कालीन की बुनाई, आभूषण, संगीत वाद्य यंत्र यहाँ की अन्य विशेषताएँ हैं। परंतु इस राज्य का अद्वितीय शिल्प है अनानास रेशे की वस्तुएँ जिनमें इसकी पत्तियों से रेशे का प्रयोग विभिन्न प्रकार के नेट, बैग तथा पर्स बनाने के लिए किया जाता है। मेघालय नृत्य तथा संगीत के क्षेत्र में सांस्कृतिक रूप से अत्यंत समृद्ध है। यहाँ किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के नृत्य हैं – नाहकजोत, मस्तिएह, शाद वैट, शादयंती आदि।
मिजोरम
मिज़ो लोगों में बहुत से शिल्पकार और कुशल कारीगर हैं। इनके उल्लेखनीय शिल्प में शामिल हैं – बुनाई, बांस तथा बेंत शिल्प, पाइप, आभूषण और संगीत वाद्य यंत्र। बुनाई मिज़ो संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है। बांस तथा बेंत के काम भी मिजोरम में समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।
नागालैंड
नागालैंड भारत की बहुरंगी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है। नागालैंड की कला और शिल्प में बुनाई, टोकरी बनाना, लकड़ी का काम और आभूषण बनाना आदि शामिल है। नागा लोग शैल, मनकों, पक्षियों के पंखों तथा फूलों का प्रयोग करके विभिन्न उत्पाद बनाते हैं। बुनाई की तरह मिट्टी के बर्तन बनाना पूर्णतया महिलाओं का शिल्प है। नागा लोग पहिये का प्रयोग किए बिना हाथों से मिट्टी के बर्तन बनाते हैं। नागा लोग दैनिक प्रयोग की वस्तुएँ जैसे बर्तन आदि बनाने के अतिरिक्त सामान्यत: धार्मिक विश्वास तथा प्रथाओं से संबंधित लकड़ी पर नक्काशी का काम भी करते हैं।
त्रिपुरा
त्रिपुरा में जनजातीय लोगों की विशाल जनसंख्या है, इसलिए यहाँ विभिन्न प्रकार के शिल्प की परंपरा है। हथकरघा इस राज्य का सबसे महत्वपूर्ण शिल्प है। त्रिपुरा हथकरघा की प्रमुख विशेषता है विभिन्न रंगों में फैली हुई कढ़ाई के साथ ऊर्ध्वाधर तथा क्षैतिज पट्टियाँ। इसके बाद बेंत तथा बांस शिल्प आता है। लोकप्रिय हथकरघा वस्तुएँ हैं बांस की स्क्रीन, लैंप स्टेंड, टेबल मैट, शीतलपट्टी, लकड़ी की नक्काशी, चांदी के आभूषण और यहाँ प्रयोग किए जाने वाले अन्य शिल्प। त्रिपुरा में उपलब्ध कराए जाने वाली पीतल तथा कांसा धातु की वस्तुओं की पहचान सरलता है।