Janapada Sampada
नागालैंड की बांस तथा बेंत संस्कृति
नागा कास्केट
आओ घर, नागालैंड
नागालैंड भारत की रंगीन संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। नागालैंड के वन बांस और बेंत के संबंध में समृद्ध हैं। इस प्रकार वे स्वाभाविक रूप से टोकरियाँ बनाने में दक्ष हैं। नागा लोगों में बेंत से सामान बनाने की कला अत्यधिक विकसित है। तथापि यह शिल्प पुरुषों तक सीमित है। सभी नागा पुरुष जानते हैं कि कटे हुए बांस से चटाई कैसे बुनी जाए, जो घरों की दीवारें तथा फर्श बनाने के लिए लकड़ी के अतिरिक्त प्रमुख सामग्री है।धान को सुखाने के लिए बारीकी से बुनी गई चटाइयों का निर्माण बहुत महत्वपूर्ण है।
चटाइयों और टोकरियों दोनों के लिए प्रयोग की जाने वाली सामान्य सामग्री कटा हुआ बांस है। टोकरी और बेंत की अन्य वस्तुएँ बनाने की प्रक्रिया में विभिन्न चरण शामिल हैं।यह वनों से कच्चा माल एकत्रित करने से शुरू होता है, और आवश्यक आकारों की पट्टियाँ बनाने, टोकरी की बुनाई और अंत में परिष्कृत करने के बाद पूरा होता है।ये लोग अब विभिन्न प्रकार की आराम कुर्सियाँ, सोफ़ा, टेबल और शिशुओं के लिए पालने बनाते हैं। टोकरियों के अतिरिक्त नागा लोग बांस से चटाई, कवच तथा विभिन्न प्रकार की टोपियाँ बनाते हैं। ये आकर्षक चुँगा अथवा पेय पीने के कप; लकड़ी पर नक्काशी के साथ बांस के बने मग बनाते हैं। ये कभी-कभी पेंट किए गए शैलीगत फूलों के पैटर्न अथवा आराम से बनाई गई मनुष्य आकृतियों के साथ डिजाइन किए जाते हैं जिससे वस्तुओं के स्वरूप तथा बनावट में अत्यधिक आकर्षण आता है। नागालैंड में बांस का पाइप लोकप्रिय है। सामान्य रूप से यह सही कहा गया है कि नागा लोग अपना जीवन “बांस के एक पालने में शुरू करते हैं और बांस के कफन में समाप्त करते हैं।” “बांस के एक उपवन के साथ मैं हमेशा एक अमीर व्यक्ति हूँ”– खारी गाँव के एक वृद्ध पुरुष ने उचित टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था “मैं अपना घर बांस से बनाता हूँ, बांस के घर में बांस के बर्तन तथा उपकरण प्रयोग करता हूँ, ईंधन के रूप में जला कर सुखाए गए बांस का प्रयोग करता हूँ, बांस की टॉर्च का प्रयोग करता हूँ और बांस के आचार खाता हूँ”। इस चित्रण ने दर्शाया कि उसका इस पौधे से लगाव कितना गहरा है। नागालैंड में पाई जाने वाली बांस की सर्वाधिक महत्वपूर्ण किस्म है Dendroclamus Homiltonii, जिससे टोकरी के काम के लिए सर्वश्रेष्ठ पट्टियाँ निकाली जाती हैं,Bambusa bamboo, घर के निर्माण के लिए सबसे उपयुक्त,Melocana Bamboo Soides, एक नागा घर का फर्श और दीवारें बनाने के लिए उपयुक्त और Bambusa tulda तथा Teinostachyum.
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बेंत
बांस के बारीक टुकड़ों से बनाई गई विभिन्न प्रकार की टोपियाँ, नागालैंड
उकेरे गए लकड़ी के चित्र तथा सिरों के साथ सजाई गई टोकरी, नागालैंड
बेंत प्रचुरता में होने के कारण इसका शिल्प कार्यों में अत्यधिक उपयोग किया जाता है। कठोर टोकरियों के लिए बेंत का प्रयोग किया जाता है। बहुरंगीय नक्काशी वाली कटोरियों, मग तथा पात्रों का सुंदर बेंत शिल्प कार्य सभी जनजातियों द्वारा किया जाता है। अन्य क़िस्मों जैसे पट्टियों में सजावट के अंतर्गत विस्तृत डिजाइन होता है। बेंत के हेलमेट तथा टोपी के फ्रेम बहुतायत में हैं। नागा लोगों के बीच एक बेंत की वर्षा रोधक टोपी भी बनाई जाती है। जुछ जनजातियों के पुरुष लाल रंग से रंगी बेंत की पट्टियों और पीले ऑर्किड की तने को कौड़ियों के साथ मिला कर बहुत आकर्षक नेक-बैंड, बाजूबंद और लेगिंग बुनते हैं। सुंदर बनावट के साथ बेंत की तारों से बुनी गई चटाई का सजावटी महत्व होता है। बेंत का फर्नीचर भी काफी लोकप्रिय है। हार और बाजूबंद भी बेंत से बनाए जाते हैं। बेंत के आभूषण जैसे हैड बैंड, कंगन, लेग-गार्ड आदि शिल्पकारी के अन्य मॉडल हैं। बेंत के फ्रेम में एक मोटे कपड़े से सिलाई करते हुए और शैल तथा मनकों से सजावट करते हुए एक विशिष्ट थैला भी देखा जाता है।
बांस की टोकरी
कोनयक टोकरी, नागालैंड
टोकरी के सबसे पहले उपयोग की कहानी बहुत प्राचीन समय में खो चुकी है। इस शिल्प के उद्गम तथा विकास की आओ कहानी इस प्रकार है: एक बार एक जादूगर था, जिसे चंगकिचांगलंगबा के नाम से जाना जाता था। उसने अपने पूरे जीवन में जादू के खेल दिखाए। जब वह जीवित था वह लोगों को बताता था कि जब वे उसकी मृत्यु के बाद छठे दिन उसकी कब्र खोलेंगे तो उन्हें वहाँ कुछ नया मिलेगा। उसकी मृत्यु के बाद छठे दिन जब उसकी कब्र खोली गई तो यहाँ बेंत से बनाए जाने वाले सामान के सभी डिजाइन तथा पैटर्न पाए गए। लोगों ने इन्हें कॉपी किया और इस पर काम करना शुरू कर दिया।
विभिन्न स्वरूपों तथा आकारों के साथ बहुत सुंदर डिजाइन की टोकरियाँ बहुत से प्रकारों में हैं, जिनका विभिन्न प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जाता है, जैसे फसल तथा अन्य घरेलू वस्तुएँ रखने के लिए पात्र और सामान तथा माल ले जाने के लिए पैकेट। कुछ मिनटों में छोटे अपरिष्कृत डब्बे से बनाई गई टोकरी, जिसमें एक जिंदा मुर्गे को ले जाया जाता है, से ले कर ऐसी टोकरियाँ बनाई जाती हैं जिनमें खेतों से चावल ले जाया जाता है। ढक्कन के साथ एक पैकेट जपा, जो षट्कोणीय आकार की होती है, पूरे राज्य में यात्रा के लिए इसका बहुतायत में प्रयोग किया जाता है। प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति और विभिन्न नक्काशी वाली अन्य प्रकार की टोकरियाँ हैं।
नागालैंड के मोन जिले की टोकरियाँ और पात्र
तंबाकू पात्र, बांस, नागालैंड
सामान्यत: दो प्रकार की टोकरियाँ होती हैं, एक जिसे भंडारण के उद्देश्य से घर में रखा जाता है और दूसरी जिसे दैनिक उपयोग के लिए पीठ पर ले जाया जाता है। अंगमी बांस और बेंत के कार्य की विभिन्न किस्में बनाने में दक्ष हैं। कुछ मिनट में बनाए गए अपरिष्कृत सरल डिजाइन से जटिल पैटर्न, चावल ले जाने अथवा बोतलों में शराब रखने के लिए सावधानी से तैयार कि गई टोकरियों तक सभी स्वरूपों तथा आकार की टोकरियाँ बनाई जाती हैं। यहाँ पेशेवर टोकरी बनाने वाले नहीं होते। प्रत्येक व्यक्ति अपने घरेलू उपयोग के लिए टोकरी बनाता है। एक व्यक्ति बहुत कम समय में अस्थायी उपयोग के लिए अपरिष्कृत खुले-काम वाली टोकरी बना लेगा, और इसका काम होने के बाद इसे फेंक देगा। पूरे नागालैंड में स्थायी उपयोग के लिए टोकरियाँ सामान्यत: एक कुर्सी की बेंत की सीट से मिलती-जुलती चौकोर-विकर्ण पैटर्न अथवा खुले-काम के पैटर्न में विभिन्न आकारों में बुनी जाती हैं। आओ टोकरी शंकु के आकार की होती है, जबकि अंगमी टोकरी बेलनाकार होती है जिसका मुंह इसके आधार से थोड़ा अधिक चौड़ा होता है। शंक्वाकार सामान ले जाने की टोकरियाँ अखि तथा अखा आम हैं और प्रत्येक घर में विकर्णीय पैटर्न वाली सपाट-तले की विभिन्न बड़ी टोकरियाँ होती हैं जिनमें चावल की बियर रखी जाती है। ये टोकरियाँ इतनी सघनता से बुनी जाती हैं कि ये व्यावहारिक रूप से जलरोधी प्रतीत होती हैं। चखेसंग और अंगमी नागा कि सामान ले जाने की टोकरियाँ विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। सिलाई करते समय चांग महिलाओं द्वारा धागों की बोल ले जाने के लिए प्रयुक्त टोकरियाँ भी सुंदर होती हैं। कोनयक टोकरियों को चित्रों तथा बालों से सजाया जाता है।
टोकरी बुनने की तकनीक
सामान्यत: जुलाई से अक्तूबर तक के महीनों में, जब नागा सामान्य आर्थिक कार्यों से थोड़ा मुक्त होते हैं, ये वनों से बांस लाते हैं। सामान्यत: इस प्रयोजन के लिए एक वर्ष पुराना बांस चुना जाता है, परंतु तीन वर्ष से अधिक पुराने बांस नाजुक होने के कारण बिलकुल उपयोग नहीं किए जाते।चयनित बांस को ऐसे स्थान पर दाव से काटा जाता है जहां इंटरनोड लंबे होते हैं। अब बांस से शाखाएँ तथा पत्तियाँ हटाई जाती हैं, यदि कोई हो, और इसके बाद इसे अपेक्षित लंबाई में काटा जाता है। अब प्रत्येक टुकड़े को लगभग एक इंच चौड़ाई के बड़े टुकड़ों में काटा जाता है। बांस को इस प्रकार काटा जाता है कि निचले भाग में कोई जोड़ न रहे और इसके बाद इस हिस्से को दाव से काटा जाता है और अंत में इसे हाथ से तोड़ा जाता है। इसे तोड़ते समय इसके आधार पर बाल बन जाते हैं।
अंगमी बांस की टोकरी, नागालैंड
धागे की टोकरी, चांग जनजाति
तोड़ते समय उस उद्देश्य को भी ध्यान में रखा जाता है जिसके लिए टुकड़ों को लिया गया है। उदाहरण के लिए चटाइयों के मामले में टुकड़े केवल एक इंटरनोड से बनाए जाते हैं, टोकरी के लिए दो इंटरनोड, बड़ी टोकरी के लिए तीन से चार इंटरनोड तैयार की जाने वाली टोकरी के आकार के अनुसार एक साथ तोड़े जाते हैं।
अगला चरण है बड़े टुकड़ों को दाव की सहायता से सुविधाजनक छोटे टुकड़ों में काटना। इनमें से प्रत्येक टुकड़े को एक बाजू और शरीर के बीच रखा जाता है और इसके बाद इसे खड़े बालों वाले स्थान से तोड़ा जाता है। पट्टी की मोटाई हाथ से नियंत्रित की जाती है। अंत में एक टुकड़े से तीन अथवा चार पतली पट्टियाँ बनाई जाती हैं।
ये अंतिम रूप से तैयार पट्टियाँ लगभग 2मिमी मोटाई तथा 1 सेमी चौड़ाई की होती हैं। इन पट्टियों को टोकरी में बुनने से पहले चिकना बनाया जाना होता है। चिकना बनाने का काम एक चाकू अथवा दाव की सहायता से किया जाता है। पट्टी को बाएँ हाथ में पकड़ा जाता है और चाकू को दाएँ हाथ में पकड़ा जाता है। चाकू के काटने वाले किनारे को पट्टी पर दबा कर रखा जाता है जबकि तर्जनी अंगुली को चाकू के नीचे पट्टी के ठीक नीचे रखा जाता है। अब पट्टी को बाएँ हाथ की सहायता से बाहर की ओर किया जाता है जबकि चाकू को पट्टी पर दबा कर रखा जाता है और इसे दाएँ अंगूठे से अंदर की ओर धकेला जाता है।इस प्रक्रिया को दोनों ओर तथा दोनों सिरों पर कई बार दोहराया जाता है। अब पट्टियाँ बुनाई के लिए तैयार हैं। यदि वस्तुओं को रंगा जाना है तो रंगाई इस चरण में की जाती है।
नागालैंड की लोथा टोकरी (एक चौड़े गोल मुख से धीरे-धीरे बांस के छल्ले से सुदृढ़ किए गए नुकीले आधार तक)
अगला चरण है वस्तुओं की बुनाई। कई पट्टियों को एक श्रेणी में फर्श पर व्यवस्थित किया जाता है, और इन्हें सुविधा की दृष्टि से बुनाई से समानता लेते हुए धागा कहा जा सकता है। इसके बाद कपड़े को धागे में भिन्न तरीके से भिन्न तकनीक में गुथा जाता है। चौकोर डिजाइन के मामले में धागा और कपड़ा बारी-बारी से एक दूसरे के ऊपर तथा नीचे से गुजरते हैं जैसा बुने गए कपड़े में होता है। विकर्णीय डिजाइन में प्रत्येक कपड़ा दो अथवा अधिक धागों के ऊपर तथा नीचे से गुजरता है जिससे विभिन्न चौड़ाई तथा रंग समायोजन से विभिन्न प्रकार के प्रभाव बनते हैं। एक और किस्म है षट्कोणीय, जिसमें कपड़ा ऊर्ध्वाधर अथवा क्षैतिज होने के बजाय तीन दिशाओं में किया जाता है जो सघन कार्य छ: बिन्दु स्टार में खुला कार्य षट्कोणीय स्थान बनाता है। ये नागा लोगों में पाए जाने वाले टोकरी की बुनाई के तीन आम पैटर्न हैं। छनाई पंखे बनाने के संबंध में कपड़ा एक धागे के ऊपर जाता है और उसके बाद साथ के दूसरे धागे के नीचे से जाता है और पुन: अगले धागे के ऊपर और उसके बाद चौथे धागे के नीचे से जाता है। इसे दोहराया जाता है।
नागा की सामान ले जाने की टोकरी, बांस की पट्टियों से बनाई गईआधार की बुनाई करने के बाद कपड़े और धागे के मुक्त सिरे टोकरी की सतह बनाने के लिए लम्बवत किए जाते हैं। यह प्रमुख रूप से वस्तु के अपेक्षित आकार पर निर्भर करता है। मुक्त सिरों को बदलने के बाद कपड़ों और धागों को उसी पैटर्न में आपस में गुथा जाता है जैसा आधार के मामले में किया गया है। अब जब अपेक्षित ऊंचाई प्राप्त हो जाती है तब कपड़ों और धागों को नीचे की ओर किया जाता है ताकि एक फोल्डिंग प्रभाव लाया जा सके। उसके बाद सिरों को सतह में लगाया जाता है और शेष सिरों को एक चाकू से काटा जाता है। कुछ मामलों में, उदाहरण के लिए, शंक्वाकार सामान ले जाने की टोकरियों में ऊपरी हिस्से को चौड़ा बनाने के लिए नियमित अंतराल पर अतिरिक्त पट्टियाँ जोड़ी जाती हैं। इस पर एक अतिरिक्त बेंत की पट्टी लगाने से सामान ले जाने की टोकरी की रिम सुदृढ़ हो सकती है। आवरण का और सुदृढीकरण नियमित अंतराल पर आवरण के किनारे पर बांस के टुकड़ों की सहायक छड़ियों को लंबाई में बांध कर किया जा सकता है।
बांस कार्य
पारंपरिक डिजाइन से पेंट की गई बांस की शील्ड
घरेलू उत्पाद
बांस की थाली
बांस की एक सस्ती, हल्की थाली प्रत्येक घर में देखी जाती है। जोड़ों से मुक्त बांस के एक भाग को काटा जाता है और नीचे की ओर तब तक छीला जाता है जब तक यह बहुत पतला नहीं हो जाता। इसके बाद इसे एक ओर काटा जाता है और आग पर गर्म किया जाता है जब तक यह सपाट नहीं हो जाता। इसके बाद प्रत्येक सिरे पर दो टुकड़े किए जाते हैं और इन सिरों को एक पार्सल की तरह ऊपर की ओर मोड़ा जाता है और इसे बेंत के स्थान पर लगाया जाता है।
बांस की तश्तरी
बांस की तश्तरी को नमकीन सेम अथवा गर्म चटनी रखने के लिए भूख बढ़ाने वाले आहार के लिए प्रयोग किया जाता है जिन्हें चावल की बियर पीते हुए खाया जाता है।
अंगमी नागा के बांस के चम्मच
विभिन्न अन्य पहाड़ी जनजातियों की तरह अंगमी नागा बांस से बनाए गए विभिन्न आकार के चम्मचों का प्रयोग करते हैं। 35 मिमी व्यास की बांस की एक कल्म को ऐसा आकार दिया जाता है कि एक जोड़ मध्यपट रह जाए। उस जोड़ से आगे बढ़ने वाले एक मोटे कट को हैंडल बनाने के लिए आकार दिया जाता है और इस कट को सुविधाजनक पकड़ के लिए कल्म के अक्ष से थोड़ा दूर मोड़ा जाता है। जोड़ के निचले भाग और मध्यपट को कोमल गोल स्वरूप देने के लिए दाव से काट कर आकार दिया जाता है।
केडजु
केडजु आओ नागा द्वारा घास तथा सुखी घास को ले जाने के लिए एक दोशाखा होता है। यह बांस का बना होता है और इसका स्वरूप तथा संरचना बहुत रोचक होती है।इसका हैंडल पूर्ण कल्म बांस की लंबाई का होता है और इसकी उँगलियाँ भी बांस की एक कल्म से बनाई जाती हैं।
चांग बांस के मग
चांग लोगों में, जिनमें सौंदर्य बोध अपने पड़ोसियों से अधिक विकसित है, बांस के पेय मग लकड़ी पर नक्काशी के काम से सजाए जाते हैं जिन्हें दोबु थुंग कहा जाता है – दोबु का अर्थ है सजाया हुआ, थुंग का अर्थ है मग – ये मूल रूप से केवल हैड टेकर्स के प्रयोग लिए बनाए गए थे। मग के आवरण पर चित्र उकेरने के लिए और किनारे पर सजावटी पैटर्न बनाने के लिए बनाने वाले को काम करते हुए छोटे अंतरालों के साथ कम से कम तीन घंटे का समय लगता है।
जब से सिर काट कर एकत्रित करने पर रोक लगी इन सजावटी बांस के मगों का प्रयोग केवल अमीर लोगों द्वारा किया जाता है जो इन्हें खरीद सकते हैं, अथवा कोई 15 किग्रा भार की धान की टोकरी के अथवा श्रम के बदले इसे बदलना चाहे। इस प्रकार के पेय मग को बनाने वाला एक मग के बदले में धान के एक पूरे खेत की जुताई मांग सकता है।
शस्त्र
चांग नागा क्रॉसबो
चांग नागा क्रॉसबो बांस, लकड़ी, रेशों तथा हड्डी का बना एक शक्तिशाली शस्त्र होता है। यह एक बांस की मोटी तथा मजबूत बीम से बना होता है, जो मध्य में सिरों से अधिक चौड़ा होता है, जिसे लकड़ी के क्रॉस-बीम में निर्धारित स्थान पर रखा जाता है। लकड़ी के क्रॉस-बीम में ऊपर एक नली होती है जिस पर तीर रखा जाता है। क्रॉस-बीम के पीछे की ओर धनुष को तना हुआ रखने के लिए हड्डी की बनी एक ट्रिगर असेंबली का प्रयोग किया जाता है जबकि रेशों की रस्सी से बने धनुष-तार को ट्रिगर के पीछे के हिस्से से पकड़ कर रखा जाता है।
धनुष को दोनों हाथ क्रॉस-बीम पर रखते हुए इसे नीचे से पकड़ते हुए एक हाथ की दूरी पर रखा जाता है। जब ट्रिगर खींचा जाता है, हुक दबता है जिससे धनुष-तार तेज वेग से तीर को फेंकता है। धनुष को खींचने के लिए काफी ताकत की आवश्यकता होती है चूंकि बांस की बीम काफी मोटी होती है और आसानी से मुड़ती नहीं है।
जनजातीय परिधान सहायक सामग्री
बांस के कंघे
चांग पुरुषों द्वारा बांस की पट्टियों के छोटे सजावटी कंघे लड़कियों को उपहार में देने के लिए बनाए जाते हैं।
कोनयक नागा बेल्ट
कोनयक नागा पुरुष अपनी कमर में एक कसी हुई बेंत की बेल्ट पहनते हैं। इन्हें बेंत के आधे कटे भाग को लगभग सात अथवा आठ घेरों में कमर के चारों और लपेट कर बनाया जाता है। ये बेल्ट वयस्क लोगों द्वारा पहनी जाती है, और एक बार इसे पहने जाने के बाद इसे तब तक हटाया नहीं जाता जब तक व्यक्ति की मृत्यु नहीं हो जाती। यह बेंत लगातार शरीर तथा शरीर के तेल के संपर्क में रहने के कारण सुंदर सुनहरे पीले रंग की बन जाती है।
फिफा
फिफा नागालैंड के अंगमी और आओ नागा पुरुषों द्वारा पहने जाने वाली लेगिंग का एक जोड़ा होता है। यह आस्तीन की तरह होती है, दोनों सिरों पर खुली, जिसका ऊपरी भाग निचले भाग से चौड़ा होता है और इसे घुटने से टखने के बीच के पैर के हिस्से को ढकने के लिए पिंडली के ऊपर पहना जाता है। इसे बेंत की बारीक पट्टियों से एक विकर्णीय बुनाई में बुना जाता है। निचला हिस्सा, जिसमें किनारे पर एक कट होता है, प्राकृतिक रंग की बेंत में बुना जाता है जबकि इसकी लंबाई का लगभग 3/5 वां हिस्सा ऊपरी भाग गहरे लाल रंग में रंगी गई बेंत की पट्टियों से बुना जाता है।फिफा पर सजावटी पैटर्न बनाने के लिए ऑर्किड के तने की चमकीली पीली पट्टियों का प्रयोग किफायत से किया जाता है। रंगीन ऊन के गुच्छों का भी सजावट के रूप में प्रयोग किया जाता है।
मछली पकड़ने के जाल और मछली पकड़ने की टोकरियाँ
लिथुओ
यह नागालैंड में प्रयोग की जाने वाली एक मछली पकड़ने की ट्रे है। इसे एक उथली वर्गाकार टोकरी की तरह बनाया जाता है जिसका आधार एक खुली-विकर्णीय बुनाई में बुना जाता है, जो एक नेट जैसी सतह बनाता है।
आओ नागा एक सजावटी प्रथागत टोपी का प्रयोग करते हैं, जो शंकु के आकार की होती है। यह दो परतों में बनाई जाती है, अंदरूनी परत संरचना बनाती है और बाहरी परत प्रमुख रूप से सजावटी होती है। बाहरी परत बांस अथवा बेंत की रंगी गई पट्टियों से बनाई जाती है, और इसे पीली तथा काली पट्टियों से सजाया जाता है। पीली पट्टियाँ बांस अथवा बेंत की हो सकती हैं, परंतु अधिकतर ये एक ऑर्किड के तने की छाल होती है, जो सूखने पर चमकीली पीली हो जाती है। प्राकृतिक डाई का प्रयोग करके बांस तथा बेंत की लाल तथा काले रंग में रंगाई इन टोपियों का सबसे उल्लेखनीय पहलू है। रंगाई की प्रक्रिया अलग-अलग जनजाति में भिन्न-भिन्न है।
नागा लोग प्रकृति से संगीत प्रेमी होते हैं। नागा लोगों में विभिन्न संगीत वाद्य यंत्रों का प्रयोग बहुत आम रहा है। ये विभिन्न प्रयोजनों के लिए विभिन्न संगीत वाद्य यंत्रों का प्रयोग करते रहे हैं जो बहुत रोचक तथा रिकॉर्ड करने योग्य हैं।
बांस की बांसुरी
नागा बांसुरी पतले बांस से बनाया जाने वाला सबसे सरल वाद्य यंत्रों में से है। यह विभिन्न ट्यून के साथ मधुर आवाज उत्पन्न करती है। ऐसी बांस की बांसुरी बनाने के लिए एक विशेष प्रकार के बांस ‘अनि’ का ही प्रयोग किया जा सकता है। बांस की बांसुरी बनाना बहुत आसान है। बांसुरी बजाना व्यक्तिगत विशेषज्ञता पर निर्भर करता है। पुरुष तथा महिलाएं दोनों इसे बाजा सकते हैं।
इससे मिलता-जुलता एक और प्रकार का संगीत वाद्य यंत्र है जिसे आओ बोली में ‘मलेन’ कहा जाता है, जिसे धान के पौधे के तने से बनाया जाता है। इसे बनाना बांस की बांसुरी बनाने से सरल है। इसकी पूरी लंबाई केवल चार से पाँच इंच होती है और यह एक पेंसिल जितना लंबा होता है। यह केवल फसल कि बुआई के समय बनाया जाता है।
बांस की तुरही
बांस की तुरही के मामले में एक बांस को दो नोड के साथ लगभग 4-5 फुट लंबी भुजा के रूप में काटा जाता है जिसमें एक नोड ऊपरी भाग में और दूसरा केंद्र अथवा मध्य भाग में होता है। तथापि निचले सिरे कोखुला रखा जाता है। मध्य नोड में एक छिद्र एक भालेनुमा ब्लेड से किया जाता है ताकि ध्वनि इस छिद्र से जा सके और टोन जीभ के नियंत्रण में आ सके। पुन: नोड के ऊपरी हिस्से में एक छोटा छिद्र बनाया जाता है और एक छड़ी अथवा अंगुली के आकार का एक छोटा बांस का पाइप इसमें मजबूती से जोड़ा जाना होता है। इस छोटे पाइप को बजाने वाले के होठों पर रखा जाना होता है और उसके बाद जीभ तथा होठों को नियंत्रित करते हुए बांस की तुरही को दोनों हाथों से पकड़ते हुए होठों की ओर दबाते हुए इसे बजाना शुरू किया जाता है।
बांस का माउथ ऑर्गन
बांस का माउथ ऑर्गन नागा लोगों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले सबसे पुराने पारंपरिक संगीत वाद्य यंत्रों में से एक है। यह बांस का बना एक बहुत सरल वाद्य यंत्र है, फिर भी बहुत प्रभावी तथा आकर्षक है। इस संगीत वाद्य यंत्र को बनाने की प्रक्रिया बहुत मुश्किल काम नहीं है। इसकी पूरी लंबाई केवल 6 इंच होती है और इसकी चौड़ाई आधा इंच होती है। इस ऑर्गन को बनाने के लिए एक प्रकार के पतले बांस अनि का प्रयोग किया जाता है चूंकि बांस की यह गुणवत्ता ऐसे वाद्य यंत्रों के लिए सर्वश्रेष्ठ है। यह संगीत वाद्य यंत्र अधिकतर छात्रावास जुकी में बजाया जाता है जहां युवतियाँ सोती हैं। यह लड़कों तथा लड़कियों दोनों के द्वारा बिना किसी रोक के बजाया जा सकता है और इस छोटे वाद्य यंत्र को बजाने के लिए किसी औपचारिक प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं है। इस यंत्र को बजाने वाले इसे बजाते हुए चार अलग-अलग आवाजें निकाल सकते हैं। ये चार आवाजें तारों को खींचने वाली उँगलियों की मुद्रा, होठों के प्रयोग, श्वास और बजाने वाले की जीभ की मुद्रा से निकाली जाती हैं। यह वाद्य यंत्र बनाना बहुत सरल है, और बजाना आसान है, परंतु इसे बजाने में दक्षता प्राप्त करने में बहुत समय लगता है। इसे “अर्द्धरात्रि का संगीत वाद्य यंत्र” भी कहा जाता है।
कप वायलिन
कप वायलिन ऐसे वाद्ययंत्रों में से एक है जिसका प्रयोग आओ के बीच लोकप्रिय है| कप वायलिन बनाने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले मजबूत और पतले बांस का चयन किया जाता है अथवा कभी कभी सीप अथवा करेले का प्रयोग किया जाता है|
इसके अलावा कमान का बजना अपेक्षित होता है| कमान बनाने के लिए दो बातें महत्वपूर्ण हैं| पहला आधे इंच मोटाई का पतला बांस और लगभग एक फुट लम्बा बांस अपेक्षित होता है| दूसरा बांस के रेशे को तेज धार वाले दाव की मदद से पतला किया जाता है| इस रेशे का एक सिरा लकड़ी के एक सिरे से जोड़ा जाता है और इसे चारकोल से साफ किया जाता है| अब कमान प्रयोग के लिए तैयार है|
मौखिक परंपरा के अनुसार यह कहा गया है कि मनुष्य ने वाद्ययंत्र बजाना केंकड़े से सीखा है| जब उसकी दस उंगलियां एक के बाद एक हिलती हैं तो ऐसा लगता है जैसे वो पियानो बजाने वाले की उंगलियां हों जो पियानो बजा रहा हो| इस हलचल से मनुष्य ने वायलिन बजाते समय उंगलियों के प्रयोग को सीखा| पुरुष और महिलाएं दोनों बिना किसी प्रतिबंध के इस वाद्ययंत्र को बजा सकते हैं| इस वाद्ययंत्र को कप वायलिन अथवा मिडनाईट वायलिन कहते हैं क्योंकि इसे मुख्यत: मध्य रात्रि में बजाया जाता है|
शब्दावली:
आओ | नगालैण्ड की एक जनजाति| |
अंगामी | नगालैण्ड की एक जनजाति| |
चुंगा | पीने का कप |
चटनी | एक स्वदेशई सॉस |
दाव | एक चपटे फल वाला चाकू |
कोनयक | नगालैण्ड की एक जनजाति| |