Janapada Sampada
बड़ी घास बांस के बारे में
बांस विश्व के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली ऊंची बारहमासी घास होती है। यह अनंत काल से आश्चर्यजनक रूप से मानव की विविध आवश्यकताओं को पूरा करने में सफल रहा है, जिनमें दीवारों, फर्श, रिज पोल, दरवाजों और खिड़कियों सहित पूर्ण आवास और यहाँ तक कि सोने के लिए चारपाई और पूरे देश में दैनिक उपयोग की कई कार्यात्मक वस्तुएँ शामिल हैं। बांस की उपयोगिता केवल मानव की आवश्यकताओं तक सीमित नहीं है बल्कि उसके वातावरण के लिए भी है। यह मृदा को समृद्ध बनाता है, भूमि को तीव्र बाढ़ और भूकंप के झटकों से बचाते हुए बांधता है। यह मनुष्य को काम करने के उपकरण, संगीत बजाने के यंत्र, खेलने के लिए खिलौने और लड़ने के लिए शस्त्र देता है और लिखने के लिए कागज प्रदान करता है।
यह घास यूरोप और अंटार्कटिका को छोड़ कर प्रत्येक महाद्वीप में प्राकृतिक रूप से उगती है, परंतु दक्षिण एशिया में प्रचुर मात्रा में होती है। पूरे विश्व में बांस की लगभग 255 किस्में हैं। इनमें से 57 किस्में भारत में पाई जाती हैं।पूर्वोत्तर राज्यों में इन 57 क़िस्मों में से 44 किस्में पाई जाती हैं। ये पौधों, मैदानी घास के आकार से ले कर 120 फुट ऊंचाई तथा एक फुट मोटाई तक की होती है।.
कोई भी अन्य जीवित वस्तु इतनी ऊंची तथा इतनी तेजी से नहीं बढ़ती। कई घासों की तरह बांस का मुख्य भाग (रिजोम) भूमि के अंदर होता है और ऊंचे, लकड़ी के, भव्य कल्म अपनी पंख जैसी पत्तियों के साथ क्रमिक टहनियों के रूप में बाहर होते हैं जो प्रति वर्ष नए बनते हैं। बांस मानसून वनों में बहुत अधिक बढ़ते हैं जहां वे अपने अधिकतम विकसित रूप को प्राप्त कर सकते हैं। वर्षा के समान वितरण (पूरे वर्ष 200-300 मिमी. वर्षा) के साथ गर्म तथा नम जलवायु बांस के विकास के लिए आदर्श है। बांस की एक विशिष्टता है। इसके अधिकतर फूल इसी की प्रजाति के अन्य पौधों की तुलना में 30, 60 अथवा 120 वर्ष तक के लंबे अंतराल में खिलते हैं, एक ही समय पर वे विश्व में जहां भी होंगे फूलों के रूप में खिल जाएंगे और झुंड में बीजों में प्रस्फुटित हो जाएंगे।
बांस के अंकुर को नियोजित वनस्पति में पूर्ण विकसित रूप तथा परिपक्वता तक पहुँचने में लगभग 5-10 वर्ष लगते हैं। बांस का वनस्पति जीवन लंबा और मौसमी रूप से पुन: भरे जाने वाला होता है और इसके कल्म प्रतिवर्ष नए आते हैं। बांस दो प्रमुख वर्गों में आते हैं –सिंपोडियल अथवा गुच्छों के प्रकार के बांस और मोनोपोडियल अथवा रनर प्रकार के बांस। सभी बांस भूमिगत तनों रिजोम से ऊपर आते हैं जो ऊपर टहनियाँ उगाता है,गुच्छों के प्रकार के एक वृत्त में बाहर की ओर सममित रूप से बढ़ते हैं, जबकि रनर प्रकार के बांस अपनी रिजोम को सभी दिशाओं में भेजते हैं और यहाँ-वहाँ नए गुच्छे फेंकते जाते हैं। गुच्छों के प्रकार के बांस सामान्यत: उष्णकटिबंधीय होते हैं और रनर बांस शीतोष्ण जोन के पौधे होते हैं। बांस में लेगीनिन (प्रमुख लकड़ी का पदार्थ), वसा और मोम होता है जो इसका मुख्य भाग होता है। पेक्टोज़ रंग करने की सामग्री होती है। बांस छिद्रयुक्त होता है और इसके छिद्र इसकी लंबाई के साथ-साथ नजदीक सीधे तथा नियमित श्रेणी में होते हैं। इसके बीज सीधे होते हैं; केवल नोड में बीज होते हैं। ये छिद्र पूरी लंबाई में केशिका ट्यूबें बना लेते हैं; हरियाली की स्थिति में ये ट्यूबें रस से भर जाती हैं, और सूखी स्थिति में हवा से भर जाती हैं। इसलिए एक पूरी तरह से परिपक्व बांस सुखाए जाने पर आकार में संकुचित नहीं होता। जबकि एक हरा बांस अपनी परिधि में 10% संकुचित हो जाता है। बांस का अंदर का हिस्सा खाली होता है और इसमें हवा भरी होती है। विभिन्न क़िस्मों में इंटरनोड की लंबाई और खाली स्थान की लंबाई भिन्न-भिन्न होती है। इंटरनोड में खाली स्थान और सतह पर छिद्रों में हवा के कारण बांस हरित और सूखी दोनों स्थितियों में पानी में तैरता है। बांस स्पष्ट रूप से अम्लीय,लवणीय तथा क्षारीय मृदा में नहीं पाए जाते। बांस चूना पत्थर और जलजमाव के साथ मिश्रित भारी मिट्टी से बचते हैं। बांस को निम्न लागत के घरों, हस्तशिल्प और सजावट के सामानों के लिए वर्गाकार, आयताकार और त्रिकोण आकार में उगाया जा सकता है।