Kalakosa
फोर्ड फाउंडेशन द्वारा वित्तपोषित अंतर्राष्ट्रीय डुनहुआंग प्रोजेक्ट (आईडीपी) के सहयोग से विश्वव्यापी संस्थाओं में मध्य एशिया के इतिहास के संग्रहणों पर संगोष्ठी के संबंध में संकल्पना नोट
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में 17 से 19 मार्च 2008
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संगोष्ठी फोर्ट फाउंडेशन द्वारा वित्तपोषित प्रोजेक्ट के तहत आयोजित तीन में से आखिरी संगोष्ठी है-‘‘विद्वानों, अध्येतावृत्ति तथा अध्ययनशील संसाधनों को रेशम मार्ग पर एक साथ लाना 2006-2008, भारत-रूस-चीन’’। पहली दो संगोष्ठियां क्रमश: राष्ट्रीय चीन पुस्तकालय में नवंबर 2006 में बीजिंग में तथा अप्रैल, 2007 में सेंट पीटर्सबर्ग में इंस्टीट्यूट ऑफ ओरिएंटल स्टडीज में आयोजित की गईं । अंतिम संगोष्ठी अब 17-19 मार्च, 2008 तक नई दिल्ली में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में आयोजित की जा रही है। इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य रूस, चीन तथा भारत के अब तक उपेक्षित संग्रहणों पर बल दे करके रेशम मार्ग संबंधी छात्रवृत्ति के लिए संसाधनों का निर्माण करना है। इन संगोष्ठियों में इन तीन देशों के विद्वानों के मिलने-जुलने तथा विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए एक उत्कृष्ट अवसर मिलता है। इस परियोजना का लक्ष्य इन सभी तीन देशों के युवा विद्वानों को अन्य दो देशों की यात्रा करने तथा पारस्परिक विद्वतापूर्ण आदान-प्रदान में लाभ के अवसर प्रदान करने हैं। प्रत्येक देश (भारत, चीन तथा रूस) से एक युवा विद्वान उस देश के लिए परियोजना समन्वयक है और तीन संगोष्ठियों के लिए अनुसंधान के विषयों के लिए लंदन में ब्रिटिश लाइब्रेरी में पहले ही एक प्रशिक्षुता की है।
फोर्ड फाउंडेशन प्रोजेक्ट के तहत तीसरी संगोष्टी के लिए शोध का विषय ‘‘मध्य एशिया के इतिहास के उनके पुरातात्विक उद्गम स्थल से उनकी वर्तमान संस्था तक संग्रहण जिसमें एक देश में सभी मध्य एशियाई संग्रहणों पर अथवा किसी संस्थान में एक विलग संग्रहण पर बल दिया गया है। यद्यपि विशवभर की प्रमुख संस्थाओं में महत्वपूर्ण संग्रहणों के बारे में बहुत कुछ ज्ञात है, फिर भी छात्रवृत्ति को लघुतर तथा कम ज्ञात संग्रहणों पर करीबी दृष्टि से लाभ पहुंचेगा। प्रतिभागी उनके संग्रहणों तथा उनके द्वारा किए गए कार्य की मात्रा के महत्व का उल्लेख करेंगे। मौजूदा संगोष्ठी में मध्य एशियाई सामग्री का विस्तारपूर्वक प्रलेखन करने की समस्याओं और कार्यप्रणाली पर चर्चा की जाएगी तथा प्रोजेक्ट के कार्यान्वयन के लिए प्रचालनात्मक ढांचा सुनिश्चित किया जाएगा। संगोष्ठी का मुख्य प्रयोजन मध्य एशियाई विपुल विरासत को विद्वानों हेतु सुलभ करना है। हमें आशा है कि प्रोजेक्ट के परिणामस्वरूप भारत, रूस तथा चीन के विद्वान दीर्घकालिक संबंध बनाएंगे और अपने सुविज्ञ संवाद को जारी रखेंगे।
संगोष्ठी के साथ ही आईजीएनसीए नं. 5, डा. आर. पी. रोड में ‘औरल स्टील और रेशम मार्ग’ पर भी प्रदर्शनी आयोजित करेगा।
संगोष्ठी की विषय-वस्तु
संगोष्ठी की विषय-वस्तु अत्यधिक दिलचस्प है जिसमें शैक्षणिक सुविज्ञता और व्यावसायिक जानकारी दोनों निहित है। मध्य एशिया एक महत्वपूर्ण भौगोलिक स्थिति धारण करती है जिससे होकर नि:संदेह रेशम मार्ग का व्यापार होता था जिससे चीन पश्चिमी देशों के साथ जुड़ा हुआ था। परिणामस्वरूप, यह क्षेत्र भिन्न-भिन्न लोगों और जातियों का मिलन स्थल बन गया और विभिन्न राष्ट्रों के बीच, भारतीय, इरानी, चीनी तथा अन्य के बीच विचारों के पारस्परिक आदान-प्रदान के लिए एक साधन के रूप में कार्य करता था। विभिन्न लोगों तथा धर्मों के मिलन स्थल होने के नाते मध्य एशिया में एक सर्वदेशीय संस्कृति विकसित हुई। बौद्ध धर्म समस्त मध्य एशिया पर एक प्रमुख सभ्यता-प्रसार शक्ति था। 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तथा 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के दौरान मध्य एशिया को पुरातात्विक संपदा विशेषकर तारिम बेजिन की ओर उत्साही यूरोपीय विद्वानों तथा विशेषज्ञों का ध्यान आकृष्ट हुआ। यद्यपि अनेक विद्वानों तथा अन्वेषकों और मिशनरिज ने चीनी तुर्किस्तान, का दौरा किया है, फिर भी हजारों वर्षों की अवधियों में मध्य एशियाई कला तथा पुरातात्विक प्राचीनकालीन वस्तुओं की खोज करने का श्रेय मुख्यतया स्वेन हेडिन, सर औरल स्टीन, ए वन लेकोक, पॉल पेलियट, कोजोल्य तथा ओल्डेनबर्ग और काउंट ओटानी को जाता है। उनमें से कई ने प्राचीन मध्य एशियाई स्थलों की समृद्ध विरासत को प्रकाश में लाने के लिए तीन से चार अभियानों का नेतृत्व किया। उन्होंने विस्मृत मध्य एशियाई प्राचीन वस्तुओं के गौरव के संबंध में भिन्न-भिन्न प्राचीन वस्तुओं और विशाल स्मारकीय अवशेषों के रूप में अमूल्यवान साक्ष्य को खोजने के लिए अनेक खतरों का बहादुरी से सामना किया और श्रमसाध्य मेहनत की। इसका श्रेय मुख्य रूप से सर औरेल स्टीन के प्रयासों को जाता है कि आज ब्रिटिश संग्रहालय, विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय, लंदन और राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली के पास विशाल मात्रा में सर्वाधिक भिन्न-भिन्न मध्य एशियाई सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का गर्वित स्वामित्व है।
हमें मालूम है कि मध्य एशिया के विद्वान-अन्वेषक केवल प्राचीन वस्तुओं की खोज के साथ संतुष्ट नहीं बैठे, उन्होंने वस्तुओं का अध्ययन और वर्गीकरण भी किया है तथा उन्हें प्रशंसनीय तरीके से प्रलेखित किया है।
राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में स्टीन संग्रह अत्यधिक व्यापक और विभिन्नतापूर्ण है। इस संग्रह में 11000 से अधिक वस्तुएं शामिल हैं जो मध्य एशिया की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत पर पर्याप्त प्रकाश डालती है। मध्य एशिया की वस्तुओं की समृद्ध विरासत को विद्वानों के लिए अधिक सुलभ बनाने के लिए वांछनीय है कि विभिन्न देशों में पड़ी प्राचीन वस्तुओं एवं कलात्मक वस्तुओं की विविधिताओं का उनकी मूल अवस्थिति और कालानुक्रमिक क्रम के दृष्टिगत उनके समुचित संदर्भ में अध्ययन किया जाए।
डॉ. राधा बनर्जी सरकार
समन्वयक, आईडीपी, ब्रिटिश लाइब्रेरी, लंदन
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डॉ. राधा बनर्जी सरकार
वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी, ईएपी (केके)
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इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र,
कलाकोश प्रभाग न. 5, डा. राजेंद्र प्रसाद रोड, नई दिल्ली-110001, भारत