“तिब्‍बती साहित्‍य और कला में बौद्ध पुन:सृष्टि पर सातवां अंतर्राष्‍ट्रीय अलेक्‍जेंडर सीसोमा डी कोरोस परिसंवाद”

इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय कला केंद्र और हंगेरियन सूचना और सांस्‍कृतिक केंद्र द्वारा संयुक्‍त रूप से आयोजित

(4-5 सितंबर, 2014)
स्‍थल: आईजीएनसीए, नई दिल्‍ली

संकल्‍पना नोट

एशियाई साहित्‍य और कला में बौद्ध पुन: सृष्टियां

विख्‍यात हंगेरियन विद्वान और तिब्‍बती शास्‍त्र के पिता अलेक्‍जेंडर सीसोमा डी कोरोस (1784-1842) की 170वीं पुण्‍य तिथि के स्‍मरण में इंदिरा गांधी कला केंद्र, नई दिल्‍ली में 4‍ सितंबर 2014 तक 7वां अंतर्राष्‍ट्रीय परिसंवाद आयोजित किया जाएगा। विशेषकर अलेक्‍जेंडर सीसोमा डी कोरोस की तिब्‍बती पांडुलिपियों तथा काष्‍ठचित्र के संग्रहण के दृष्टिगत तिब्‍बती और बौद्ध अध्‍ययनों के क्षेत्र में नए शोध और हाल के विकासक्रमों की प्रस्‍तुति की जानी है तथा इन पर चर्चा की जानी है।

बौद्ध संस्‍कृति का एशियाई क्षेत्र में प्रसार दिलचस्‍प है। चूंकि भारतीय भाषाओं में मूल पाठ 13वीं शताब्‍दी के बाद बौद्ध धर्म के पतन के उपरांत लुप्‍त हो गए, इसलिए महायान बौद्ध संस्‍कृति में त्रिपिटक का अनुवाद थेरावाद-बौद्ध संस्‍कृतियों की तुलना में इंडिक-बौद्ध सामग्रियों का वृहत्‍तर दायरा संप्रेषित करता है। एशिया में बौद्ध ज्ञान के प्रत्‍येक क्षेत्रीय नेटवर्क द्वारा विशुद्ध ज्ञान की इसकी खोज के साथ एक वास्तविक दार्शनिक परंपरा के तौर पर सांस्‍कृतिक प्रथा को जटिल बौद्ध परंपरा के साथ समग्र रूप से  एकीकृत करते हुए अपने खुद के पाठ और टीके  शामिल किए गए हैं।

बौद्ध सूत्रों, तंत्रों तथा उनकी व्‍यापक टीकाओं का संस्‍कृत से अनुवाद किया गया और तिब्‍बत में घटित वृहत परिशोधन से वे अद्वितीय साहित्‍य बन गए। वे मूलरूपों तथा गहन और परिशुद्ध विचारधार के सौंदर्य से पुन: सृष्टिमय हो गए जिसमें तिब्‍बती विद्वानों द्वारा सर्वदा नवीन उर्जावान अभिव्‍यक्ति की उत्‍पत्ति हुई।

एशियाई बौद्ध साहित्‍यों तथा कलाओं में ये पुन:सृष्टि कई रूप, दार्शनिक प्रबंध तथा भारतीय मूल पाठों पर टीकाएं, भारतीय कार्यगति की शैली में गीत (टिब. मगूर), नाटकों और नृत्‍य नाटको, चिकित्‍सीय तथा ज्‍योतिषीय पाठ इत्‍यादि और कला और वास्‍तुकला में सामग्रीगत अभिव्‍यक्तियों का रूप लेते हैं। इस स्‍मारक सीसोमा डी कोरोस परिसंवाद के लिए आमंत्रित प्रतिनिधिमंडलों से अनुरोध किया जाता है कि वे तिब्‍बत, मंगोलिया, चीन, जापान तथा अन्‍य स्थलों में सृजित बौद्ध साहित्‍य तथा कलाओं में ऐसी पुन: सृष्टि के सुविज्ञ विशुद्ध उदाहरणों को अपने अध्‍ययन क्षेत्र में प्रस्‍तुत करें। विशेषतौर पर अलेक्‍जेंडर सीसोमा डी कोरोज की तिब्‍बती पांडुलिपियों तथा काष्‍ठचित्रों के संग्रहण को ध्‍यान में रखते हुए तिब्‍बती तथा बौद्ध अध्‍ययनों के क्षेत्र में केवल अनुसंधानों और हाल के विकासक्रमों को प्रस्‍तुत किया जाना है, इन पर केन्द्रित होकर तथा चर्चा की जानी है।

परिसंवाद का लक्ष्‍य है:-

  1. निम्‍नलिखित की पुन: सृष्टि के संबंध में सीसोमा डी कोरोज की रचनाओं के संदर्भों में स्‍वदेशी तिब्‍बती साहित्‍य के विकास का पता लगाना है
    1. दार्शनि‍क कल्‍पनाएं

      तार्किक प्रणालियां

      जीटर-मा साहित्‍य के रूप में

      भारत में बौद्ध धर्म के इतिहास

      कला और वास्‍तुकला

      धार्मिक अनुष्‍ठान और परिपाटियां

      लोक परंपराएं

  2. चीन, मंगोलिया तथा जापान के साहित्‍यों की पुन:सृष्टि के साथ स्‍वदेशी तिब्‍बती साहित्‍य और कलाओं के विकास की तुलना करना।

संपर्क सूत्र

डॉ. राधा बनर्जी सरकार
परिसंवाद के संयोजक तथा प्रभारी, पूर्वी एशियाई कार्यक्रम, कलाकोश प्रभाग
इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय कला केंद्र, 1, सी. वी. मेस, जनपथ, नई दिल्‍ली-110001
rbsarkar@gmail.com,
+ 91 2338 8211

डॉ. अजय कुमार मिश्रा
सहायक संयोजक परिसंवाद तथा सहायक प्रोफेसर, कलाकोश प्रभाग
इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय कला केंद्र, 1, सी. वी. मेस, जनपथ, नई दिल्‍ली-110001
akm67111@rediffmail.com
+ 91 2338 8224

डॉ. किशोर कुमार त्रिपाठी
सहायक संयोजक परिसंवाद तथा सहायक प्रोफेसर, कलाकोश प्रभाग
इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय कला केंद्र 1, सी. वी. मेस, जनपथ, नई दिल्‍ली-110001
kkumar.aum@gmail.com
+91 2338 8224

 

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