Kalakosa

कलासमालोचना श्रृंखला

ks_032

जहाँ कला मूल-शास्त्र कार्यक्रम प्राथमिक पाठों के अनुसंधान और प्रकाशन को संगठित करता है, वहीं कला समालोचना कार्यक्रम माध्यमिक सामग्री की व्याख्या और विश्लेषण संबंधी प्रकाशनों से संबंध रखता है। इन्हें उत्कृष्ट कला आलोचना माना जाता है। शृंखला, ऐसे प्रख्यात विद्वानों के महत्वपूर्ण पाठ और रचनाओं के संस्करणों से समृद्ध है जिन्होंने मूलभूत अवधारणाओं पर विचार किया, चिरस्थायी स्रोतों की पहचान की और विविध परम्पराओं के सान्निध्य में संचार सेतुओं का निर्माण किया। उनकी रचनाएँ समकालीन प्रासंगिकता और मान्यता रखती हैं, क्योंकि वे मूल और व्यापक प्रत्यक्ष-ज्ञान की खोज में निमग्न हैं। ये विद्वत्तापूर्ण सार्थक रचनाएँ अक्सर सुगम नहीं होतीं, चूँकि या तो उनका मुद्रण बंद हो चुका होता है या उनके अंग्रेज़ी अनुवाद उपलब्ध नहीं होते।

कला समालोचना शृंखला में, केंद्र ने किफ़ायती दामों पर प्रकाशनों के माध्यम से, इन अमूल्य योगदानों को प्रकाश में लाने का प्रयास किया है। कार्यक्रम का प्रवर्तन चुनिंदा लेखकों और रचनाओं के पुनःसंपादित पुनर्मुद्रण तथा अनुवादों द्वारा किया गया है।

कला समालोचना कार्यक्रम के अंतर्गत अध्ययन के विविध क्षेत्रों में अमूल्य योगदान देने वाले लब्ध प्रतिष्ठ विद्वानों के चयनित पत्रों के प्रकाशन पर भी ज़ोर दिया गया है। जहाँ उनकी रचनाएँ उनकी विद्वत्ता को प्रतिबिंबित करती हैं, वहीं उनकी व्यक्तिगत टिप्पणियाँ, उन रचनाओं के पीछे छिपी विचार-प्रक्रिया को निर्धारित करने में मदद करती हैं। वे विद्वानों की आत्मगत भावनाओं, उनके प्रभाव, उनके सिद्धांतों और विचारधाराओं को प्रकट करती हैं। अब तक आनंद के. कुमारस्वामी, रोमेन रोलैंड और हजारीप्रसाद द्विवेदी (हिन्दी में) के पत्रों को प्रकाशित किया गया है।