Adi Drishya Department
शैल कला का सर्वेक्षण, प्रायोगिक अध्ययन और स्थली प्रलेखन
इंदिरा गॉंधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के संपर्क-विस्तार कार्यक्रम के हिस्से के रूप में और शोधार्थियों को इस उभरते हुए विषय पर काम करने हेतु प्रोत्साहित करने के साथ-साथ वैश्विक परिदृय में शैल कला शोध की स्थिति के बारे में उन्हें सूचित रखने की दृष्टि से अनेक सर्वेक्षण एवं प्रायोगिक अध्ययन कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस नए विषय को बहुत गंभीरता से लेने क्योंकि यह विषय मानव की आदि-दृष्टि से सीधे तौर पर जुड़ा है और संभवत: मानव-मात्र का पहला रचनात्मक कार्य है, के लिए भारतीय शोधार्थियों को प्रेरित करने के विचार से भी ये कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
इंदिरा गॉंधी राष्ट्रीय कला केन्द्र ने अपने ‘आदि-दृश्य’ कार्यक्रम के अंतर्गत शैल कला स्थलों/डेटा का राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षण करने के लिए स्थली प्रलेखन का काम शुरू किया है क्योंकि ये स्थल अन्यथा मानवीय बर्बरता और मानव के नियंत्रण से परे प्राकृतिक कारकों से नष्ट हो रहे हैं। वर्तमान पीढ़ी के लिए और भावी पीढ़ियों के लिए शैल कला के महत्व को समझते हुए भारत के अलग-अलग राज्यों में जहां शैल कलाओं का जमघट है, स्थली प्रलेखन की योजना बनाई गई है।
स्थली प्रलेखन का यह कार्य संबंधित क्षेत्रों/संभागों की संस्थाओं और स्थानीय विशेषज्ञों के सहयोग से किया जा रहा है। डेटा संग्रहण का काम राष्ट्रीय पर एक समान प्रारूप में किया जा रहा है। इस प्रक्रिया में अति विशाल डेटाबेस संकलित हो गया है। हजारों चित्रों को पहले ही डिजिटाइज कर दिया गया है।
अभी तक प्रलेखन का काम निम्नलिखित राज्यों में शुरू किया जा चुका है:
ओडिशा में प्रलेखन कार्य चार जिलों- बारगढ़, झारसूगुडा, सुनेरगढ़ और संभलपुर में पूरा कर लिया गया है। इन चार जिलों में सात शैल कला स्थलों और पांच गांवों का प्रलेखन किया गया। ओडिशा के रायगडा जिले में पन्द्रह गांवों का प्रलेखन किया गया है। मध्य प्रदेश में प्रलेखन कार्य तीन जिलों- भोपाल, रायसेन और सीहोर में पूरा कर लिया गया। प्रलेखन कार्य आठ शैल कला स्थलों तथा तीन गांवों में किया गया। उत्तराखंड में प्रलेखन कार्य दो जिलों- अलमोड़ा और नैनीताल में किया गया। यहां के पन्द्रह शैल कला स्थलों और तीन गांवों का प्रलेखन किया गया है। जम्मू एवं कश्मीर में प्रलेखन कार्य लद्दाख क्षेत्र के दो जिलों- लेह तथा करगिल में किया गया। यहां पर तैंतीस शैल कला स्थलों और एक गांव का प्रलेखन किया गया। छत्तीसगढ़ में प्रलेखन कार्य रायगढ़ जिले में किया गया। यहां के दस शैल कला स्थलों और तीन गांवों का प्रलेखन किया गया। झारखण्ड में प्रलेखन कार्य दो जिलों- हजारीबाग और चतरा में किया गया । यहां के आठ शैल कला स्थलों तथा दो गांवों का प्रलेखन किया गया। कर्नाटक में प्रलेखन कार्य बेलारी जिले में पूरा कर लिया गया है। यहां के तेरह शैल कला स्थलों और पांच गांवों का प्रलेखन किया गया। राजस्थान में प्रलेखन कार्य बूँदी जिले में पूरा कर लिया गया है। यहां के पच्चीस शैल कला स्थलों और पांच गांवों का प्रलेखन किया गया। आंध्र प्रदेश में प्रलेखन कार्य हैदराबाद, मेडक, महबूबनगर, वारंगल, अनंतपुर, कुडप्पा, करनूल और खम्मम जिलों में शुरू किया गया था। यहां के तेरह शैल कला स्थलों और चार गांवों का प्रलेखन किया गया। तमिलनाडु में कृष्णागिरि, डिंडीगुल और धरमपुरी जिलों में प्रलेखन कार्य शुरू किया गया था। यहां के इक्कीस शैल कला स्थलों और दस गांवों का प्रलेखन किया गया।
इस परियोजना का प्रमुख उद्देश्य यह है कि मूलपाठीय और प्रासंगिक वीडियो, फोटो प्रलेखन तैयार किए जाएं और पुरातात्विक शोध के लिए भीतरी इलाकों के लोगों के साथ इस बारे में चर्चा-संपर्क किया जाए; साथ ही संगत लोककथाओं एवं प्राकृतिक और मानव-निर्मित विशिष्टियों के प्रलेखन के आधार पर शैल कला भूदृश्य का जैव-सांस्कृतिक मानचित्र, एक मानसिक एवं पारिस्थितकी एटलस तैयार किया जाए।