ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
मछुआरे, नाविक तथा सौदागर तीसरी सहस्राब्दी बीसीई में हिंद महासागर की लहरों में यात्रा करते थे जिससे अफ्रीका से पूर्वी एशिया तक की विश्व की सर्वाधिक प्राचीनतम सभ्यताएं एक जटिल संबंध जाल में जुड़ी हुई थीं। इन नेटवर्कों के जरिए आदान-प्रदान की जाने वाली वस्तुओं में अनेक तरह की सामग्री थी-सुगंधित पदार्थ, दवाएं, रंग, मसाले, अनाज, लकड़ी, कपड़े, रत्न, पत्थर और आभूषण धातु तथा पादप और जंतु उत्पाद-इनका परिवहन समुद्री यात्राओं के माध्यम से होता था और हिंदी महासागर क्षेत्र के साथ के बाजारों में इन्हें बेचा जाता था। इनमें शामिल कई वस्तुओं के बहुत से अर्थ थे और विविधतापूर्ण कार्य थे। उदाहरण के लिए मसालों का इस्तेमाल न केवल छौंक और खाद्य परिरक्षण के लिए किया जाता था वरन इनका उपयोग औषध निर्माण और धार्मिक कृत्यों में किया जाता था। इसके अतिरिक्त, हालांकि व्यापार से इन सीमा पर सांस्कृतिक संबंधों को नया आधार मिला, फिर भी यह महासागर धार्मिक संस्कृतियों और विशेषीकृत प्रोद्योगिकियों के आदान-प्रदान का भी मार्ग था। हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, इस्लाम तथा ईसाई धर्म को हिंद महासागर क्षेत्र की सीमाएं सुनिश्चित करने में मदद मिली जिसमें धार्मिक यात्रा और तीर्थ यात्रा के नेटवर्क निर्मित हुए। परंपरागत छोटे जहाज के निर्माण में हिंद महासागर के विभिन्न क्षेत्रों से तख्ताबंदी के कार्य के लिए लकड़ी और सिलाई के लिए नारियल के रेशे का व्यापार और परिवहन निहित था जिससे प्राचीन नौका-निर्माण प्रविधियों का संचारण और परिरक्षण हो सका।
हिंद महासागर से होकर किस प्रकार विनिमय का संचालन किया गया? इस प्रश्न का उत्तर देने में हमें सहायता करने वाले बहुत से स्रोत हैं जो पुरातात्विक साक्ष्य से लेकर अनेक समय के अभिलेख और पाठ्य संदर्भ तक व्याप्त हैं। ऐसे व्यापक विनिमय तथा पारस्परिक क्रिया के उदाहरण हिंद महासागरीय क्षेत्र में बहुतायत में हैं जो तीसरी सहस्त्राब्दी टीसीई के हड़प्पाकालीन युग की मृत्तिका कृति, मनके तथा मुहरें जो अरब प्रायद्वीप के किनारे के स्थलों पर पाए गए हैं, से लेकर 19वीं शताब्दी में समुद्रों की यात्रा करने वाले यूरोपीय नाविकों के विवरण तक व्याप्त हैं। समुद्री नेटवर्कों का एक अन्य पहलू ऐसी दृश्यमान स्थलाकृति से संबंधित है जिससे नाविकों को सीमाचिन्ह मिले और प्राचीन काल की नौवहन दुनिया का निर्धारण हुआ। इस दृश्यमान स्थलाकृति को तटवर्ती संरचनाओं द्वारा अभिलक्षित किया गया जिनमें से कई धार्मिक प्रकृति के थे जिससे एक विशिष्ट समु्द्री वातावरण निर्मित हुआ। उदाहरण के लिए भारत के ओडिशा के तट पर 13वीं शताब्दी का कोणार्क मंदिर, यूरोपीय नाविकों के ‘ब्लैक पैगोडा’ के रूप में ज्ञात था जो पुरी में जगन्नाथ मंदिर ‘व्हाइट पैगोडा’ के विपरीत था। उसी प्रकार, चीन के बौद्ध धर्म अनुयायियों के लिए भारत के तमिल तट पर नागपट्टनम में निर्मित बौद्ध मंदिर फ्रांसीसी ईसाईयों द्वारा विनष्ट किए जाने तक सातवीं से उन्नीसवीं शताब्दियों तक समु्द्री जहाजों के लिए एक प्रमुख सीमाचिन्ह था। दुर्ग अन्य महत्वपूर्ण संरचनाएं थीं जिनसे हिंद महासागर की तटवर्ती सीमा चिन्हित हुई और जिसे लंबी दूरी से देखा जा सकता था। इसके अतिरिक्त कम-से-कम 9वीं शताब्दी के बाद से तटवर्ती क्षेत्रों में बाजारों का उल्लेख है जो किलाबंद बस्तियों में अवस्थित थे।