Janapada Sampada
लोक परंपरा
लोक परंपरा कार्यक्रम के तहत संस्कृति के संदर्भात्मक पहलुओं पर अनुसंधान और प्रलेखन का कार्य किया जाता है जिसमें शामिल हैं:-
- जीवन-शैली अध्ययन और जीविका के पैटर्न
- पारिस्थितिकी और विकास के सांस्कृतिक आयाम
- पहचान के सांस्कृतिक आयाम
- संसाधन प्रबंधन और पांडित्य परंपरा
- लोक साहित्य, निष्पादन और धार्मिक कृत्य के अध्ययन
- पुराणों तथा मौखिक परंपराओं की विरासत
- पारिस्थितिकी-सांस्कृतिक तथा सामाजिक-आर्थिक दृष्टिकोण से समुदायों की कलात्मक परिपाटियां
- भारत की परंपराओं और सम्मिश्रित संस्कृतियों का संगम
इसमें समुदाय के भौतिक स्थान अथवा पर्यावास का अध्ययन शामिल है अर्थात् जल, भूमि, चट्टानों, मिट्टी, खनिज, वनस्पति तथा उर्जा के स्रोतों के संदर्भ में मानचित्रण जिसके साथ वार्षिक चक्र में पारिस्थिति तंत्र में इन सभी तत्वों की अन्योन्यक्रिया शामिल है। शुरूआती वर्षों में पश्चिमी बंगाल तथा उड़ीसा के संथालों, उड़ीसा के भुइयान्स और पाइक, मणिपुर के मिएतिएस, नागालैंड के अंगमी, मध्य हिमालय के गुज्जर, लददाख के चंग्पा, हिमाचल प्रदेश के गद्दी, राजस्थान के बाजरा उगाने वाले समुदाय, कर्नाटक के विश्वकर्मा तथा वनवासी और तमिलनाडु के मुक्कुवार के संबंध में अध्ययन किए गए हैं।
इस कार्यक्रम के अंतर्गत प्रभाग की प्रमुख परियोजनाएं हैं:
- धान उगाने वाली संस्कृतियाँ
- रामायण और महाभारत की जीवित परंपराएं
- अमूर्त सांस्कृतिक विरासत
- भारत की यहूदी सांस्कृतिक विरासत >
- विश्वककर्मा की विश्वरदृष्टि
- परंपराओं और सम्मिश्रित संस्कृतियों का संगम
- नदी की संस्कृति
- जल संस्कृति-भारत के अनुपम जल ज्ञान और सांस्कृतिक परंपरा का प्रलेखन