भील जनजाति
गोंड जनजाति
चित्र देखें
गोंड अथवा कोईतुरे के सांस्कृतिक मूल आधार
कोईतुरे अथवा गोंड जैविक रूप से प्रकृति से जुड़े हैं। उनके सभी देव प्रकृति के सभी रूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं। सभी देवताओं में से महानतम देवता बड़ादेव को साज वृक्ष द्वारा निरूपित किया जाता है। ठाकुर देव पाकड़ी वृक्ष से जुड़े हुए हैं। गोंड लोग अलौकिक शक्तियों में विश्वास करते हैं। उनके संरक्षक आत्माएं, देवगण तथा देवियां हैं जो उन्हें नुकसान से बचाते हैं। उनके गीत, नृत्य रूप, पौराणिक गाथाएं तथा किवदंतियां, लोककथाएं, रीति-रिवाज तथा धार्मिक कृत्य प्रकृति के साथ घनिष्ठ संबंध को प्रतिबिंबित करते हैं और वे सभी अंतर-संबद्ध हैं। एक की समझ से सभी अन्यों की समझ आती है। उदाहरण के लिए कर्म नृत्य कर्म देव, देवता से जुड़ा हुआ है जिन्हें कर्मवृत्त द्वारा निरूपित किया जाता है।
गोंड लोग स्वयं को उत्सवों के दौरान किए जाने वाले विविध प्रकार के नृत्यों से अभिव्यक्त करते हैं जैसे कि सइला, रीना तथा दादरिया आदि। सइला नृत्य पहले कभी तलवारों के साथ किया जाता था। अब तलवारों के स्थान पर छडि़यों का इस्तेमाल किया जाता है। दादरिया गीत दूल्हे के आगमन पर और तब गाया जाता है जब दुल्हन दूल्हे के साथ रवाना होती है। किंतु कर्मा वर्ष के किसी भी समय किया जा सकता है। जब कोई अतिथि आता है तो परिवार इकट्ठा हो जाता है और वे सभी एक साथ कर्मा नृत्य करते हैं। कर्मा गीतों के विषय प्राय: जीवन से जुड़े होते हैं। लालपुर गांव (माण्डला जिला) में अनेक पेशेवर समूह गुदूग, टिमकी, नगाड़ा जैसे वाद्ययंत्रों के साथ कर्म नृत्य करते हैं। शेख गुलाब, मंडल जिले के एक विद्वान तथा नृत्य अदाकार ने कुछ दशक पूर्व गोंड के मौखिक कथाओं-पौराणिक कहानियों, किंवदंतियों, लोककथाओं तथा गीतों का प्रलेखन करना तथा नर्तकियों को प्रशिक्षित करना शुरू किया। अब उनके एक शिष्य लालता राम मारावी ने उनके कार्य को आगे जारी रखा है।
गोंड की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान है, अनेक गीतों तथा मौखिक कथाओं में बुआई और कटाई को भी लिखा गया है जिनमें कृषक समुदाय की खुशी, पीड़ा, आशंका तथा उल्लास को अभिव्यक्त किया गया है।
गोंडवानी तथा रामायणी जैसी मौखिक कथाएं समुदाय को एकजुट रखती हैं। गोंड की उत्पत्ति की पौराणिक गाथाओं में महानतम देव बड़ादेव का वृतांत है जिन्होंने धरती तथा इस पर प्रत्येक जीव-जंतु की सृष्टि की। विभिन्न वृक्षों से गोंड राजाओं की उत्पत्ति के बारे में पौराणिक गाथाएं प्रचलित हैं विशेषकर महुआ, पुष्पों तथा फल जो गोंड के जीवन के अभिन्न भाग हैं।
गोंड लोगों की अनेक शाखाएं हैं जिनमें से प्रत्येक की उत्पत्ति की अपनी कहानी है। उनका कहना है कि परधान सात गोंड भाईयों में से सबसे छोटे भाई से उत्पन्न हुए जो बड़ादेव के अनुदेश पर पुजारी तथा कथावाचक बन गए। आज परधानों को अपनी कथाओं के माध्यम से सांस्कृतिक परंपरा जीवंत रखने का कार्य सौंपा गया है।
गोंड लोगों के घरों को विवाह तथा अन्य उत्सवों के मौकों के दौरान डिगना तथा भित्ति चित्र से सजाया जाता है। गोंड अपने घरों की भीतरी तथा बाहरी दीवारों को डिगना से रंगते हैं जो परंपरागत ज्यामितीय पैटर्न है जबकि भित्ति चित्र पशुओं, पक्षियों तथा फूलों के चित्रों की रचना है। वानस्पतिक तथा खनिज रंजकों जैसे पुष्प, पत्तियां, चिकनी मिट्टी, पत्थर, चावल, हल्दी का प्रयोग रंग के लिए किया जाता है। ब्रश हस्तनिर्मित होता है जो नीम अथवा बबूल की टहनी तथा फटे-चिथड़े वस्त्र से बनाया जाता है।
रचनात्मक अभिव्यक्ति का एक अन्य रूप गुदना अथवा टैटू होता है। सूर्य, चंद्र, पक्षियों तथा विभिन्न तत्वों के चित्र शरीर के भागों में इस विश्वास के साथ बनाए जाते हैं कि गुदना धारण करने वाला व्यक्ति इसे परलोक ले जाता है।
वर्तमान में ऐसे अनेक कलाकार हैं जो गोंड जीवन शैली की चित्रकारियों के माध्यम से इन परंपराओं में रूचि उत्पन्न कर रहे हैं। अधिकांशत: ये कलाकार गोंड परधान से हैं जो गोंड समुदाय की एक शाखा है। जंगढ सिंह श्याम प्रथम गोंड परधान कलाकार थे और गोंड चित्रकारी की वर्तमान शैली को अब जंगढ कलाम कहा जाता है।
यह कलाकार के दृष्टिकोण से गोंड की सांस्कृतिक परंपरा का पता लगाने का एक प्रयास है क्योंकि इसमें गोंड के जीवन के विभिन्न पहलुओं-उनके देवी-देवताओं, उनके नृत्य के रूप, प्रकृति के साथ संबंध, पौराणिक गाथाओं तथा लोक कहावत आदि को समाहित किया गया है।
वीडियो क्लिप
- परधान
- भित्ति चित्र
- उत्पत्ति संबंधी पौराणिक कथा
- दादरिया तथा गीत के बारे में राम बाई
- भित्ति चित्र के बारे में प्रसाद कुसुराम
- गोंडी के घर के भीतर
- ठाकुरदेव स्थान
- पटन की काष्ठ शिल्प
- पटन की मिट्टी की मूर्ति
- पटन की बांस शिल्प
- पटन की काष्ठ शिल्प
- कर्म नृत्य्
- कर्म के बारे में लखनलाल
- सइला नृत्य
- संगीतमय संसार के बारे में लखनलाल
- मंगीबाई अपने समूह के बारे में
- गुदना के बारे में मीनाबाई
- त्वचा पर गोदना करने के बारे में मीनाबाई
- गोंड चित्रकारी के बारे में कपिल तिवारी
- जंगढ की नर्मदा के बारे में शम्पा शाह
- राम बाई तथा बहनों द्वारा कर्मा गीत
- कर्मा गीत का अर्थ
- गोंडवानी के बारे में डा. चौरसिया
- शेख गुलाब के बारे में डा. चौरसिया
पटन कलाकारों के वीडियो क्लिप