Janapada Sampada
आदिवासी कलाकारों के साथ 8 जुलाई से 23 जुलाई, 2008 तक एनिमेशन कार्यशाला
एनिमेशन का महत्व संप्रेषण के एक माध्यम के रूप में तेजी से बढ़ रहा है। मानव अन्योन्यक्रिया तथा संप्रेषण के सभी संभावित क्षेत्रों में एनिमेशन का इस्तेमाल अभिव्यक्ति के एक शक्तिशाली माध्यम के रूप में किया जाता है। यह विभिन्न तरह की नातेदारियों को व्यवस्थित करने के लिए कार्य करने हेतु डिजायनों के रूप में समागम सेट की रचनात्मक रूप से प्रोसेसिंग के लिए गहन और व्यापक अंतर्वस्तु का श्रृंखला समूह बनाकर हरेक जगह लोगों की अनुभूतियों का विस्तार करने के लिए धरती पर जीवन के लिए अत्यावश्यक बन गया है। श्रव्य दृश्य संप्रेषण सूचना एककों के सेटों की स्वतंत्रतापूर्वक चयनित विकास पैटर्नों के अंतरनिर्भर सर्किट के रूप में बारीकी से जांच करता है। संबद्ध विषयवस्तुओं को प्रकरणों के रूप में क्रमबद्ध रूप से दृश्यबद्ध किया जाना होता है और विश्लेषित निष्कर्षों को न केवल भौतिक और सामग्रीगत वृद्धि के तरीकों एवं साधनों वरन सामूहिक सहअस्तित्व के स्थापित और अनुकूलित मापदंडों को दर्शाने के लिए अनुप्राणित किया जाता है। हमारे अनुप्रयुक्त मानवतावाद को घेरने वाले प्रवाहमान क्रमों को बढ़ाने तथा समृद्ध करने के लिए वास्तविकता निर्माण के बारे में कथांशों को तथ्यात्मक ढांचों में दिखाया जाता है।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) जनजातियों के रचनात्मक कार्यकलाप के सभी संभावित आयामों का अन्वेषण करने के लिए भारत के जनजातीय समुदायों के साथ कार्य करता रहा है। आईजीएनसीए ने भारत के लोक तथा आदिवासी कलाकारों की हस्तकला को समझने के लिए कार्यशालाएं आयोजित की हैं। इस दिशा में गोंड, संथाल, ओरांव, नागाओं (सभी नागा समूह) कोम, मिशमिस (इदु, डिगास तथा मिजु), रथ्व भील तथा भील, मिथिला चित्रकारों, कंठवा कारीगरों, फुकरी कशीदाकारी कलाकारों, जादू पटुआ कलाकारों, वारली इत्यादि के रचनात्मक कार्यकलाप को प्रलेखित, विश्लेषित तथा लोकप्रियकृत किया गया है। इन कलात्मक गतिविधियों को जीवंत और सतत कार्यकलाप बनाने के प्रयास किए गए हैं।
जनजातीय तथा लोक कलाकारों तथा संबद्ध लोगों को प्रतिस्पर्धात्मक बाजार जगत तथा कारोबारों के सभी संभावित आयामों में प्रतिस्पर्धा करने के लिए समान अवसर मिलना चाहिए। एनिमेशन ऐसा ही एक क्षेत्र है। इसके दृष्टिगत, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र आदिवासी कला ट्रस्ट के सहयोग से पूर्वोत्तर, झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के जनजातीय तथा लोक कलाकारों के पास एक 15-दिवसीय एनिमेशन कार्यशाला आयोजित करता रहा है। कार्यशाला 8 जुलाई 2008 को शुरू हुई और यह आईजीएनसीए के नए भवन में 23 जुलाई, 2008 तक जारी रहेगी।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन, अहमदाबाद के पेशेवर कलाकार तथा अन्य स्वतंत्र विशेषज्ञ इस कार्यशाला में घनिष्ठ रूप से जुड़े रहे हैं। अनेक पेशेवरों, विद्वानों तथा कथाकारों को पर्यवेक्षकों के रूप में आमंत्रित किया गया है और कार्यशाला को उन सभी से निरंतर उत्साहवर्धक अभ्युक्तियां मिल रही हैं। श्री शेखर मुखर्जी, समन्वयक, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन के एनिमेशन और डिजाइन विभाग कार्यशाला की प्रगति का मूल्यांकन करने तथा एक विशेष व्याख्यान देने के लिए श्री मुखर्जी 16 जुलाई, 2008 को व्यक्तिगत रूप से आए। कार्यशाला के कलाकारों के साथ रूबरू होने के बाद श्री मुखर्जी ने अपनी अधिकतम खुशी जाहिर की और भविष्य में आईजीएनसीए तथा आदिवासी की कला ट्रस्ट के साथ एनिमेशन पर सहयोगी प्रोजेक्टों पर कार्य करने का वादा किया।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डा. के. के. चक्रवर्ती, ने आदिवासी तथा लोक कलाकारों और पेशेवर एनिमेटर के साथ बातचीत की और कला के रूपों की बेहतरी के लिए ऐसे कार्यकलाप करने का वादा किया। डा. चक्रवर्ती ने अपने संबोधन में कहा, ‘‘कार्यशाला का प्रयोजन एनिमेशन फिल्मों के लिए आईजीएनसीए के विशाल मानव जातीय संग्रह का इस्तेमाल करना तथा भारत के जनजातीय और लोक समुदाय के पास जाना है ताकि वे इस बात को समझ सकें कि केंद्र उनसे लिए गए अथवा अर्जित उद्देश्यों एवं विचारों का किस प्रकार उपयोग करता रहा है।’’ उन्होंने विकास के साधन के तौर पर लोगों के स्थानीय संसाधन का इस्तेमाल करने के लिए सरकार के अन्य विभागों तथा सेवा क्षेत्रों एवं गैर-सरकारी संगठनों, कलाकार समूहों तथा सामाजिक एनिमेटर का एक साझा प्लैटफार्म होने की आवश्यकता पर भी बल दिया।’’ डा. चक्रवर्ती ने कहा, ‘‘सुंदरता तथा उपयोगिता को लोक तथा जनजातीय रचनात्मकता में एक साथ देखा जा सकता है जिनका इस्तेमाल निश्चित रूप से विकास के सांस्कृतिक संकेतकों के रूप में किया जा सकता है।’’ उन्होंने निष्कर्ष के तौर पर कहा।
प्रतिभागियों अर्थात दिमासा, नागा, कुकी, मीयटिज, मिथिला कलाकारों, गोंडों, संथालों तथा चाय बागान के करारबद्ध आदिवासियों ने अपनी मौजूदा लोकशिक्षा से तीन लिपियां विकसित कीं और तदनुसार 3 छोटी एनिमेशन फिल्म बनाने के संबंध में कार्य शुरू किया। इस कार्यशाला में करीब 15 आईजीएनसीए भी भागीदारी करते आ रहे हैं।
विशेषज्ञ व्यक्तियों ने कहा कि हालांकि कहा जाता है कि प्रथम एनिमेशन फिल्म 1894 में बनाई गई थी किंतु विश्व भर की गुहा तथा शिला चित्रकारी के साक्ष्यों से संकेत मिलता है कि 5000 वर्ष से अधिक पूर्व में इस प्रविधि की जनजातीय लोगों को अच्छी तरह से जानकारी थी। एक शिला पेंटिंग में उदाहरणार्थ, एक बिजोन को आठ पैरों के साथ दर्शाया गया है। पुन: कहीं की भी शिला कला-भारत के भीमबेटका या स्पेन या जर्मनी या विश्व के कहीं के अलितमारा-के सभी संकेत, चित्र और विषय-वस्तुएं मर्मभेदी और गत्यात्मक हैं। वे स्थिर नहीं हैं। ऐसी गत्यात्मकता एनिमेशन का मूल तत्व है। एनिमेशन के लिए भाषा भी बड़ी बाधा नहीं है। वे सुज्ञात एनिमेशन फिल्में होती हैं जिनमें कोई भी संवाद नहीं होता है। सर्वश्रेष्ठ एनिमेशन प्रौद्योगिकी के प्रर्वतक ने भारत, एशिया के अन्य भागों तथा तीसरे विश्व के देशों की यात्रा करने के बाद ही अपने परम सूत्र प्राप्त किए। सांस्कृतिक पैटर्नों की विविधताओं, लोगों के शोषण तथा कई अन्य कारकों ने उन्हें विभिन्न क्रम के एनिमेशन का सृजन करने के लिए प्रभावित किया और तदनुसार, एनिमेशन के क्षेत्र में एक नई शुरूआत का सूत्रपात हुआ।
सुश्री तारा डगलस, इस कार्यशाला के मुख्य एनिमेशन विशेषज्ञ व्यक्ति नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन, अहमदाबाद से मुख्य रूप से एनिमेशन विशेषज्ञों के साथ असाधारण कार्य करती रही हैं। आईजीएनसीए को प्रतिभागियों तथा आगंतुकों से मिल रही प्रतिष्ठा तथा प्रशंसा इस कार्यशाला की सफलता के संकेतक हैं। लिपि, प्रतिभागियों, स्टोरी बोर्ड, स्केच, गीत तथा कथा, चित्रकारी, कलात्मक वस्तुएं, स्केच और एनिमेशन इस कार्यशाला की सब कुछ, आगंतुकों को एक अनोखा अनुभव प्रदान करता है।