शैल कला स्‍थलों का स्‍वामित्‍व

हमें इस तथ्‍य की अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि शैल कला स्‍थलों को प्राकृतिक और मानवीय-दोनों दृष्‍टियों से बहुत सम्‍मान प्राप्‍त है क्‍योंकि ये दृश्‍यमान हैं और अपनी ओर ध्‍यान आकर्षित करते हैं।

इनके महत्‍व से अनजान समाज के लोगों द्वारा इन कला-रूपों को बहुत तेजी से विनष्‍ट किया जा रहा है इसलिए शैल कला स्‍थलों का परिरक्षण भी बहुत आवश्‍यक है। बढ़ती जा रही जनसंख्‍या और पहले के समय के सुदूरवर्ती क्षेत्रों तक पहुँच अब अपेक्षाकृत आसान हो जाने से इन स्‍थलों के प्रति जोखिम बहुत बढ़ गया है। मानवीय कला-ध्‍वंस से न केवल यह पता चलता है कि लोगों में इन स्‍थलों के प्रति संवेदना और ज्ञान का अभाव है बल्‍कि मानवमात्र में इनके प्रति अलगाव के भाव का भी पता चलता है। पर्यटन के बढ़ते जा रहे दबाव के साथ-साथ मौसम की मार से जुड़ी मूलभूत समस्‍याओं और खर-पतवार एवं पशुओं से पड़ने वाले प्रभाव से यह संकेत मिलता है कि भारतीय शैल कला स्‍थलों के संरक्षण एवं प्रबंधन की तत्‍काल आवश्‍यकता है।

हालांकि संरक्षण की जिम्‍मेदारी केन्‍द्र/राज्‍य सरकारों की है लेकिन इसमें स्‍थानीय जनता की भागीदारी की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। सरकारी एजेंसियों को अभी भी देश के सभी शैल कला स्‍थलों की संख्‍या एवं अवस्‍थिति की जानकारी नहीं है और इसीलिए उन्‍हें यह भी पता नहीं है कि इन शैल कला स्‍थलों को किस प्रकार की समस्‍याओं का सामना करना पड़ रहा है। देश में कला संरक्षण के क्षेत्र में प्रागैतिहासिक काल को वरीयता नहीं दी जाती रही है। चूंकि अधिकांश शैल कला स्‍थल जंगलों में हैं इसलिए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय न केवल इस बेशकीमती कला-रूप के संरक्षण में महती भूमिका निभा सकता है बल्‍कि भीतरी इलाकों के अध्‍ययन को सुगम बना सकता है जहां पर कि भविष्‍य में शैल कला के रहस्‍यों का पता लगाने में बनवासी समुदायों से उपयोगी सूत्र हाथ लग सकते हैं। इन समुदायों में प्रचलित शैल कला के अमूर्त पक्षों के अन्‍वेषण, प्रलेखन और संरक्षण के प्रयास भी किए जाएंगे। जब इन स्‍थलों के बारे में व्‍यापक जन समुदाय को ज्ञान करा दिया जाएगा और ये जनता के सामने उजागर हो जाएंगे तथा राष्‍ट्रीय संपदा के रूप में भावी पीढ़ियों के लिए इन्‍हें परिरक्षित किया जाएगा तो भारत की प्रागैतिहासिक शैल कला के मूल्‍यांकन में भारी सुधार आ सकेगा।

इसीलिए इंदिरा गॉंधी राष्‍ट्रीय कला केन्‍द्र भिन्‍न-भिन्‍न शैल कला स्‍थलों से सटे स्‍थानों पर स्‍थानीय समुदायों के लिए कार्यशालाओं और जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है; साथ ही यह केन्‍द्र भिन्‍न-भिन्‍न शैल कला स्‍थलों के परिरक्षण एवं स्‍वामित्‍व की स्‍थिति पर भी नज़र रख रहा है जिससे कि भारतीय शैल कला का एक संरक्षण मेनुअल तैयार किया जा सके।

असम के स्‍थल

स्‍थल का नाम  स्‍वामित्‍व का ब्‍यौरा
चक्रेश्‍वर भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण विभाग द्वारा परिरक्षित
बाघ्रेश्‍वरी सामुदायिक स्‍वामित्‍व
हनुमान शिला सामुदायिक स्‍वामित्‍व
मंगलेश्‍वर सामुदायिक स्‍वामित्‍व
सुपाईदांग सामुदायिक स्‍वामित्‍व
महेश धाम सामुदायिक स्‍वामित्‍व
हाथीशिला सामुदायिक स्‍वामित्‍व
कनाई बारसी राज्‍य पुरातत्‍व विभाग, असम
दीर्घेश्‍वरी राज्‍य पुरातत्‍व विभाग, असम
मयोंग राज्‍य पुरातत्‍व विभाग, असम
दिखदोवा राज्‍य पुरातत्‍व विभाग, असम

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