कलातत्वकोश

ktk001 कलातत्वकोश, भारतीय कलाओं की मौलिक संकल्पनाओं का कोश है। विभिन्न विद्वानों के साथ परामर्श करके लगभग 250 संकल्पनापरक शब्दों की सूची बनाई गई है। इन शब्दों के चयन का मानदंड, उनकी व्यापकता और उनके अंतरविषयक स्वरूप के सर्वेक्षण पर आधारित था। किसी क्षेत्र विशेष तक सीमित शब्दों को इसमें स्थान नहीं दिया गया है।

किसी संकल्पना के विकास की गवेषणा, उसके अति सूक्ष्म स्तर से लेकर कलाओं के मूर्त क्षेत्रों के स्तर तक पहुंचने की पात्रता के संदर्भ में की जाती है। प्रत्येक संकल्पना का अन्वेषण अनेक विषयों और मूल ग्रंथों के माध्यम से किया जाता है। विभिन्न क्षेत्रों में उसका प्रयोग और प्रसार तलाशा जाता है। उदाहरण के लिए, ‘ब्रह्मण’ जैसी सबसे अमूर्त आध्यात्मिक संकल्पना का प्रयोग कला के मूर्त क्षेत्रों में वास्तुशिल्प में, मूर्तिकला अथवा रंगमंच के संदर्भ में ‘ब्रह्मस्थान’ के रूप में और ‘ब्रह्मसूत्र’ के रूप में किया जाता है।

इसमें केन्द्रीयता और व्यापकता की संकल्पना ही मूल आधार है और साथ ही ऊर्ध्वता का सिद्धांत भी। इस प्रकार के विश्लेषण से व्युत्पत्ति विषयक विकास और ऐतिहासिक निरंतरता के साथ-साथ क्षैतिज अंतर्विषयी अंतर्संबद्धता का पता लगाया जा सकता है। इन शब्दों को कतिपय निश्चित व्यापक तार्किक अथवा शब्दार्थगत वर्गों के अनुसार समूहबद्ध किया गया। अनुसंधान प्रक्रिया इस शब्दकोश के लिए अपनाई गई प्रक्रिया में संस्कृत, प्राकृत और पाली भाषाओं में मूल स्रोत सामग्री की छानबीन की जाती है। प्रमुख ग्रंथों का अनुशीलन किया जाता है और शब्द विशेष के प्रासंगिक उद्धरणों को खोज निकाला जाता है। ये उद्धरण अंग्रेजी अनुवाद के साथ संस्कृत में (देवनागरी और रोमन लिपियों-दोनों में) एक कार्ड पर लिखे जाते हैं और उनके विभिन्न अर्थों के साथ-साथ मूल-पाठ विषयक टिप्पणियां और/अथवा संगत व्याख्या भी दी जाती है। प्रमुख शब्दों के साथ उनके सजातीय शब्द, संयुक्त शब्द, पर्यायवाची आदि भी शामिल किए जाते हैं। उद्धरणों को किसी संकल्पना की परिभाषा, पहली बार उसके प्रयोग, महत्वपूर्ण प्रयोगों, उप-विभाजन आदि से जोड़ा जाता है। विभिन्न शास्त्रों से कई हजार कार्ड एकत्र किए गए हैं। इन कार्डों के आधार पर एक कंप्यूटरीकृत डाटाबेस तैयार किया जा रहा है।

शब्दों के बारे में कार्डों के आधार पर लिखे गए लेख, संबंधित संकल्पना का संपूर्ण इतिहास प्रस्तुत करने का दावा नहीं करते क्योंकि भारतविद्या संबंधी शोध के वर्तमान स्तर पर यह संभव भी नहीं होगा। तथापि, वे उन प्रक्रमों को दर्शा सकते हैं जिनसे होकर किसी संकल्पना को गुजरना पड़ा, अर्थात् काल्पनिक, भौतिक, आनुष्ठानिक और पौराणिक/कथात्मक क्षेत्रों में अपने शाखा विस्तार के साथ वेदों से लेकर बौद्ध और जैन स्रोतों से, वेदांगों या प्राचीन विज्ञानों से होते हुए, विभिन्न शास्त्रों, पुराणों, तंत्रों, दर्शनों आदि से होकर यात्रा करते हुए भिन्न-भिन्न कलाओं में उसके एक निश्चित रूप ले लेने तक जिन प्रक्रमों से उन्हें गुजरना पड़ा, उन प्रक्रमों को इनके माध्यम से दर्शाया जा सकता है। संकल्पनापरक पृष्ठभूमि और कलाओं में उनकी अभिव्यक्ति के बीच संबंध ही इन लेखों का मुख्य प्रतिपाद्य है। कलाओं की स्थिति मध्यवर्ती की है, इसलिए वे तत्वविज्ञान और भौतिक विज्ञान के बीच, आध्यात्मिकता और विज्ञान के बीच मध्यस्थता करती हैं। उदाहरण के लिए कोई स्तूप या मंदिर एक संपूर्ण आध्यात्मिक संकल्पना का द्योतक है लेकिन इसके साथ ही उसके निर्माण के लिए वास्तुशिल्प के तकनीकी विज्ञान की और इंजीनियरी की जरूरत होती है। इस प्रकार इसके लिए एक अंतर्विषयी दृष्टिकोण अपनाया जाना अनिवार्य है।

तांत्रिक उक्ति: ‘सर्वम सर्वात्मकम’, अर्थात् प्रत्येक वस्तु एक ‘संपूर्ण’ से जुड़ी होती है (या: हर विवरण एक समग्रता का अंश है), इन अवधारणाओं के अर्थ खोलने में एक प्रकार की जादुई कुंजी का कार्य करती है। जहां तक व्याख्या की संभव योजनाओं का सवाल है, जो प्रकट या अप्रत्यक्ष हो सकती हैं, स्वयं भारतीय परंपरा इसके लिए पर्याप्त वर्गीकरण उपलब्ध कराती है। वास्तविकता को समझने के दो या तीन स्तरों की विभिन्न योजनाएं यहां लागू की जा सकती हैं: आधिभूत (भौतिक) में वैदिक विभाजन, आधिदैव (दैवी) और अध्यात्म (मानवीय, आत्मिक); स्थूल (भौतिक), सूक्ष्म (अतीन्द्रीय) और परा (ज्ञानातीत) के तीन आयामों की व्यापक अवधारणा; व्यक्त, अव्यक्त एवं व्यक्त-अव्यक्त में भेद आदि व्याख्यात्मक आधार प्रस्तुत करते हैं। संदर्भ के आधार पर शुरुआती बिन्दु भौतिक/वैज्ञानिक या आध्यात्मिक/अवधारणात्मक हो सकती है, किंतु अन्य आयामों को भी छोड़ा नहीं जाता। एकआयामी या एकपक्षीय व्याख्याओं का परित्याग किया जाता है।
आलेखों का लेखन विद्वानों के एक समूह द्वारा आपसी परामर्श के साथ किया जा रहा है, ताकि दृष्टिकोण के एकरूपता कायम रहे। किसी शब्दसूची या शब्दकोश की स्थिति में, प्रति-अनुमोदन एवं सूचियां उपयोग निर्धारण में सहायक होते हैं। कलातत्त्वकोश के छह खंड जो अब तक प्रकाशित हुए हैं, इस प्रकार हैं: