Buddhist Fables

Buddhist Classics

Life and Legends of Buddha

The Illustrated Jataka & Other Stories of the Buddha by C. B. Varma Introduction | Glossary | Bibliography

हिमालय के वन में निवास करते एक सन्यासी ने हाथी के एक बच्चे को अकेला पाया। उसे उस बच्चे पर दया आयी और वह उसे अपनी कुटिया में ले आया। कुछ ही दिनों में उसे उस बच्चे से मोह हो गया और बड़े ममत्व से वह उसका पालन-पोषण करने लगा। प्यार से वह उसे ठ सोमदन्त’ पुकारने लगा और उसके खान-पान के लिए प्रचुर सामग्री जुटा देता।

एक दिन जब सन्यासी कुटिया से बाहर गया हुआ था तो सोमदन्त ने अकेले में खूब खाना खाया। तरह-तरह के फलों के स्वाद में उसने यह भी नहीं जाना कि उसे कितना खाना चाहिए। वहाँ कोई उसे रोकने वाला भी तो नहीं था। वह तब तक खाता ही चला गया जब तक कि उसका पेट न फट गया। पेट फटने के तुरन्त बाद ही उसकी मृत्यु हो गयी।

शाम को जब वह सन्यासी वापिस कुटिया आया तो उसने वहाँ सोमदन्त को मृत पाया। सोमदन्त से वियोग उसके लिए असह्य था। उसके दु:ख की सीमा न रही। वह जोर-जोर से रोने-बिलखने लगा। सक्क (शक्र; इन्द्र) ने जब उस जैसे सन्यासी को रोते-बिलखते देखा तो वह उसे समझाने नीचे आया। सक्क ने कहाँ, हे सन्यासी ! तुम एक धनी गृहस्थ थे। मगर संसार के मोह को त्याग तुम आज एक सन्यासी बन चुके हो। क्या संसार और संसार के प्रति तुम्हारा मोह उचित है” सक्क के प्रश्न का उत्तर उस सन्यासी के पास था। उसे तत्काल ही अपनी मूर्खता और मोह का ज्ञान हो गया। मृत सोमदन्त के लिए उसने तब विलाप करना बन्द कर दिया।