Bunddelkhand Ki Lok Sanskriti Ka Itihas

पुस्तक समीक्षा

Bunddelkhand Ki Lok Sanskriti Ka Itihas

नर्मदा प्रसाद गुप्त

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, प्रथम संस्करण   १९९५

  ISBN 81-7119-224-X


अनुक्रम

लोकदेवत्व

लोकोत्सवता

संस्थाए

लोकसाक्ष्य

दिशा

परिशिष्ट प्रमुख संदर्भ-ग्रंथ
 

पथरीलो वुंदेली प्रदेश

दरपीलो वुंदेली लोक

  ठसकीली वुंदेली चेतना

को...

महानिर्वाणतंत्र के अनुसार आठों दिशाएँ   आठ रंगों से सम्बन्धित हैं। लोक की अवधारणा दिशाओं से जुड़ी हुई है । संस्कृति के रंग अनेक हैं। अष्टकोणों से चतुष्कोण, चतुष्कोण   से वृत्त एवं वृत्त से बिंदु का एक रेखागणित बनता है। बिंदु से वृत्त की और और वृत्त से बिंदु की ओर प्रसारित   होना संस्कृति के अप एवं अभि-केंद्रित विकास की स्वाभाविक प्रक्रिया है। इन दोनों प्रक्रियाओं के परिप्रेक्ष्य में बुंदेलखंड के आकाश और काल को पढ़ा जा सकता है; परंतु बुंदेलखंड के आकाश और काल की   कोई सत्ता नहीं है ।    अत: किसी भी चतुर पाठक को इस पुस्तक   पढ़ने से ऐसा अनुभव होगा कि लोक-संस्कृति का यह चित्र भारत के किसी भी क्षेत्र के लिए अथवा किसी भी अन्य लोक-संस्कृति के लिए उतना ही सत्य है जितना बुंदेलखंड के लिए।   

बुंदेलखंड की लोकसंस्कृति का इतिहास मूलत: मौखिक रत्रोतों के आधार पर लिखा गया है, पर इसमें पुरातात्त्विक   और ऐतिहासिक सामग्री का भीउपयोग किया गया है। यह सामाजिक इतिहास है जिसमें न कालानुक्रम महत्वपूर्ण है, न राजा-रानी, न युद्ध में जय-पराजय । लोकाचार समूहों के अंतर्सबंध, पारिवारिक जीवन आदि को बहुत ही प्रभाव-शाली ढंग से रेखंकित किया गया है ।

मुहआ और बेर के प्रदेश के नायक--आल्हा-ऊदल, लाला हरदौल-इसमें विराट् रुप में आए हैं। मनियाँ देव या मनियाँ देवी के प्रश्न पर भी विचार हुआ है, जिससे एक महात्त्वपूर्ण जातीय उद्भव की समस्या जुड़ी हुई है।

लोकसाहित्य और संस्कृति के अध्ययन की दृष्टि से अपने ढंग का पहला ग्रंथ है -बुंदेलखंड की   लोकसंस्कृति का इतिहास

 

बुंदेलखंड संस्कृति - Documentation by Ajay Kumar

जन्म: बुंदेलखंड, भारत में १ जनवरी, १९३१ को। एम. ए. हिंदी और अंग्रेजी में। पी-एच.   डी. का विषय: बुदेलखंड का मध्ययुगीन काव्य: एक ऐतिहासिक अनुशीलन दस वर्ष अंग्रेजी और पच्चीस वर्ष हिंदी के प्राध्यापक। १९५८ ई. से साहित्यिक सेवा। संस्थापक, संरक्षक, अध्यक्ष, मंत्री एवं कार्य समिति सदस्य के रुप में अनेक संस्थाओं की सेवा। सृजन कविता और कहानी से प्रारम्भ। लगभग ३५ कहानियाँ विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित। १९६२ में   आल्लहा ऐतिहासिक उपन्यास प्रकाशित। साहित्य पर ३०, लोकसाहित्य पर ४०, लोककला पर १० शोधलेख; लोकललित निबंध १० ख्यात पत्रिकाओं में प्रकाशित। लोकगीतों और लोकगाथाओं का पाठ-सम्पादान प्रथम बार। छ: सम्पादित पुस्तकें चर्चित। बुदेंलखंड साहित्यिक इतिहास पाँच खंडों में प्रकाश्य। १९८१ ई से   ठमामुलिया' त्रैमासिक पत्रिका का सम्पादन। बुदेंलखंड साहित्य अकादमी की संस्थापना। विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मान। जबलपुर का ठलोकसाहित्य-सम्मान' एंव तिवनी (रीवा) का लोक-भाषा-सम्मान। उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ का श्री मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार।

सम्प्रति: अध्यक्ष, बुदेंलखंड साहित्य अकादमी सम्पादक, मामुलिया त्रैमासिक पत्रिका।

सम्पर्क: सर्किट हाउस मार्ग, छतरपुर-४७१००१, म. प्र.

 

© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र पहला संस्करण: १९९५ 

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, २/३८, अंसारी रोड, दरियागंज, नयी दिल्ली-११०००२

आवरण : बी. सरकार

लेज़र कम्पोकिंज़ग कम्प्यूटेक सिस्टम, मानसरोवर पार्क, दिल्ली-११००३२

मुद्रक जितेन्द्रा आर्ट प्रेस, नवीन शाहदरा, दिल्ली-११००३२

All rights reserved. No part of this book may be reproduced or transmitted in any form or by any means, electronic or mechanical, including photocopy, recording or by any information storage and retrieval system, without prior permission in writing.