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भित्तियो पर उरेही गयी
रामचरित-चित्रावली
भाव संप्रेषण के क्षेत्र में चित्रकला की भूमिका चित्राकर्षक होती है। दक्षिण-पूर्व एशिया में रेखा और रंगों को माध्यम से रामकथा के अनेकवर्णी चित्रों को उरेहा गया है। इनका रुप निराला है। इन रामचरित-चित्रावलियों की विशिष्टता यह है कि इनका चित्रण अपने-अपने देश की रामायण के आधार पर हुआ है और विचित्रता यह है कि इन्हें बौद्ध धर्मावलंबी सम्राटों के राजभवनों और विहारों में संरक्षण मिला है। लाओस, कंपूचिया और थाईलैंड के राजभवनों तथा बौद्ध विहारों की भित्तियों पर उरेही गयी रामकथा चित्रावली उसी प्रकार संरक्षित हैं, जिस प्रकार माता की गोद में बच्चे निर्भय और निर्जिंश्चत होते हैं।
लाओस के लुआ प्रवा तथा विएनतियान के राजप्रसाद में थाई रामायण 'रामकियेन' और लाओ रामायण फ्रलक-फ्रलाम की कथाएँ अंकित हैं।१ इनके अतिरिक्त लाओस के कई बौद्ध विहारों में भी राम कथा के चित्र उरेहे गये हैं। लाओस का उपमु बौद्ध विहार राम कथा-चित्रों के लिए विख्यात है। विहार के लगभग बीस मीटर लंबी और सवा पाँच मीटर ऊँची दीवार पर वहाँ की रामायण 'फ्रलक-फ्रलाम' अर्थात् 'प्रिय लक्ष्मण प्रियराम' की कथा क्षेत्रीय पृष्ठभूमि में रुपायित है।२ 'फ्रलक-फ्रलाम' राम जातक के नाम से भी विख्यात है।
उपमुंग विहार की चित्रावली में राम कथा का आरंभ लाओ रामायण के अनुसार रावण के जन्म से हुआ है और लंका युद्ध के बाद राम की अयोध्या वापसी तक की कथा का संक्षेप में निर्वाह भी हुआ है, किंतु इसमें कुछ प्रसंग अन्यत्र से भी संकलित हैं। यह चित्रावली लाओस लोक कला का उत्कृष्ट नमूना है। इसकी पृष्ठभूमि में चित्रित प्रकृति और परिवेश मनमोहक हैं।
लाओस के वाट पऽकेऽ में भी राम कथा के चित्र हैं। लुआ प्रवा के निकट एक छोटी पहाड़ी के ऊपर यह विहार स्थित है। इसका निर्माण १८०३ई. में हुआ था और उसी समय एक चित्रकार के द्वारा उसकी भित्तियों पर राम कथा के चित्र उरेहे गये थे।३ इस चित्रावली में राम कथा का आरंभ सिउहान (विद्युज्जिह्मवा) प्रकरण से हुआ है। वह अपनी जिह्मवा से लंका को ठंक कर उसकी रक्षा कर रहा है।
वाट पऽकेऽ में रुपायित भित्ति चित्रों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है। प्रथम खंड में रावण के जन्म से बालि वध तक की कथा का चित्रण हुआ है। दूसरे खंड में दशरथ के स्वर्गवास के बाद भरत के अयोध्या आगमन से किष्किंधा की गुफा तक की कथा रुपायित हुई है। अंतिम खंड में दो चित्र हैं। प्रथम चित्र में दशरथ के स्वर्गारोहण के बाद भरत के अयोध्या लौटने का दृश्य है और दूसरे चित्र में राम, लक्ष्मण और सीता को नाव में बैठ कर गंगा पार करते हुए दिखाया गया है। इस चित्रावली में घटनाओं की क्रमवद्धता का अभाव है। इसमें कुछ घटनाओं की पुनरावृत्ति हुई है, तो कुछ अछूती ही रह गयी हैं।
थाईलैंड के राज भवन परिसर स्थित वाटफ्रकायों (सरकत बुद्ध मंदिर) की भित्तियों पर संपूर्ण थाई रामायण 'रामकियेन' को चित्रित किया गया है। ऐसा अनुमान किया जाता है कि इन चित्रों का निर्माण 'रामकियेन' की रचना के बाद १७९८ई. में हुआ था। थाई सम्राट चूला लौंग तथा उनके साहित्यमंडल के मित्रों ने मिलकर इन भित्तिचित्रों में रुपादित रामकथा को काव्यबद्ध किया था। उन पद्यों को शिलापट पर उत्कीर्ण करवाकर उन्हें यथास्थान भित्तिचित्रों के सामने स्तंभों में जड़वा दिया गया।४ इससे स्पष्ट होता है कि थाईवासी अपनी इस सांस्कृतिक विरासत के प्रति कितने संवेदनशील है। मरकत
(emrald ) बुद्ध मंदिर में रामकथा के १७८ चित्र हैं जिनमें सीता के जन्म से रामराज्याभिषेक तक की कथा के साथ जानकी के निर्वासन से उनकी अयोध्या वापसी तक के संपूर्ण वृत्तांत का चित्रण हुआ है।
कंपूचिया के राजभवन की भित्तियों, सिंहासन कक्ष की छत और राजकीय बौद्ध विहार में रामायण के दृश्यों के रंगीन चित्र हैं। किंतु, वहाँ की स्थिति यह है कि चित्रकारों के अभाव में थाई कलाकारों द्वारा उन चित्रों का उद्धार करवाया गया है। कंपूचिया के अतिरिक्त इंडोनेशिया के बाली द्वीप में रामकथा के चित्र मिलते हैं। वहाँ सीता की अग्नि परीक्षा का चित्र बहुत लोकप्रिय है। हिंदू बहुल बाली द्वीप दक्षिण-पूर्व एशिया का जीता-जागता भारत है।
१. वर्मा, सुधा, आग्नेय एशिया
में रामकथा, पृ.१५२
२. The Ramayana Tradition in Asia, P.266
३. रानम, कमला, लाओस में राकथा, पृ. ७१-७२
४. Raghavan, V., The Ramayana in Greater India, P.85
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