राम कथा की विदेश-यात्रा

Ram Katha Ki Videsh Yatra

  1. रामायण का अर्थ राम का यात्रा पथ
  2. रामायण के घटना स्थलों का विदेश में स्थानीकरण
  3. शिलालेखों से झांकती राम कथा
  4. शिला चित्रों में रुपादित रामायण
  5. भित्तियो पर उरेही गयी रामचरित-चित्रावली
  6. रामलीला: कितने रंग, कितने रुप
  7. रामकथा का विदेश भ्रमण
  8. इंडोनेशिया की रामकथा: रामायण का कावीन
  9. कंपूचिया की राम कथा: रामकेर्ति
  10. थाईलैंड की राम कथा: रामकियेन
  11. लाओस की रामकथा: राम जातक
  12. बर्मा की राम कथा और रामवत्थु
  13. मलयेशिया की राम कथा और हिकायत सेरी राम
  14. फिलिपींस की राम कथा: महालादिया लावन
  15. तिब्बत की राम कथा
  16. चीन की राम कथा
  17. खोतानी राम कथा
  18. मंगोलिया की राम कथा
  19. जापान की राम कथा
  20. श्रीलंका की राम कथा
  21. नेपाल की राम कथा: भानुभक्त कृत रामायण
  22. यात्रा की अनंतता

खोतानी राम कथा

एशिया के पश्चिमोत्तर सीमा पर स्थित तुर्किस्तान के पूर्वी भाग को खोतान कहा जाता है जिसकी भाषा खोतानी है। एच.डब्लू. बेली ने पेरिस पांडुलिपि संग्रहालय से खोतानी रामायण को खोजकर प्रकाश में लाया। उनकी गणना के अनुसार इसकी तिथि नौवीं शताब्दी है।१ खोतानी रामायण अनेक स्थलों पर तिब्बीती रामायण के समान है, किंतु इसमें अनेक ऐसे वृत्तांत हैं जो तिब्बती रामायण में नहीं हैं।

खोतानी रामायण के अनुसार राजा दशरथ के प्रतापी पुत्र सहस्त्रवाहु वन में शिकार खेलने गये जहाँ उनकी भेंट एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण से हुई। उन्होंने अपनी तपस्या से चिंतामणिऔर कामधेनु प्राप्त किया था। कामधेनु की कृपा से ब्राह्मण ने राजा का भव्य स्वागत किया। प्रस्थान करते समय राजा की आज्ञा से उनके अनुचर ब्राह्मण की गाय लेकर चले गये। इसकी जानकारी ब्राह्मण पुत्र परशुराम को हुई। उसने सहस्त्रवाहु का वध कर दिया। परशुराम के भय से सहस्त्रवाहु की पत्नी ने अपने पुत्र राम और रैषमा (लक्ष्मण) को पृथ्वी के अंदर छिपा दिया। बारह वर्षों के बाद दोनों बाहर आये। राम अद्वितीय धनुर्धर थे। उन्होंने अपने अनुज रैषमा को राज्य संभालने के लिए कहा और स्वयं अपने पिता के हत्यारे परशुराम को ढूंढ़ कर वध कर दिया।

दानवराज दशग्रीव को एक पुत्री हुई। भविष्य वक्ताओं ने उसकी कुंडली देखकर कहा कि वह अपने पिता के साथ समस्त दानव कुल के नाशकर कारण बनेगी। इसलिए उसे बक्से में बंदकर नदी में बहा दिया गया। वह बक्सा एक ॠषि को मिला। उन्होंने उसका पालन पोषण किया। वह रक्षा वलय के बीच एक वाटिका में रहती थी। राम और रैषमा उसे देखकर मोहित हो गये। खोतानी रामायण में यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि राम और रैषमा का उसके साथ कैसा संबंध था।

खोतानी रामायण के अनुसार चमत्कारी मृग की सौ आंखे थी। राम और रैषमा ने उसकी पीछा किया। इसी अंतराल में दशग्रीव वहाँ पहुँचा, किंतु वह रक्षा वलय को पार नहीं कर सका। इसके बाद वह भिक्षुक वेश में सीता के पास गया और रक्षा वलय के बाहर आने पर उन्हें उठाकर भाग गया।

सीतन्वेषण क्रम में दोनों भाईयों की भेंट एक बूढ़े बंदर से हुई। उसी स्थल पर दो सहोदर बंदर पैत्रिक राज्य के लिए युद्धरत थे। उनमें से एक का नाम सुग्रीव और दूसरे का नंद था। राम की नंद से मैत्री हो गयी। उन्होंने सुग्रीव का वध कर दिया। नंद ने यह कह कर बंदरों को सीता की खोज करने के लिए भेजा कि यदि वे सात दिनों में सीता की खोज नहीं कर पाते, तो उनकी आँखें निकाल ली जायेगी। छह दिन बीत गये। सातवें दिन लफुस नामक एक बंदरी ने मादा काक और उसके बच्चों की बात को सुन लिया। मादा काक अपने बच्चों से कह रही थी कि दशग्रीव ने सीता का अपहरण कर लिया है। बंदर उन्हें खोज नहीं पायेंगे। इसलिए कल्ह उन्हें बंदरों की आँखे खाने का सुयोग है। बंदरी के माध्यम से यह समाचार बंदरों को मिला। फिर, यह संदेश राम और रैषमा को दिया गया।

राम और रैषमा वानरी सेना के साथ समुद्र तट पर गये। वहाँ पहुँचने पर नंद ने कहा ब्रह्मा के वरदान के कारण उसके द्वारा स्पर्श करने पर पत्थर जल में तैरने लगते हैं। फिर, नंद के सहयोग से सेतु का निर्माण हुआ और सेना सहित राम और रैषमा लंका पहुँचे।

बंदरों के कोलाहल से दशग्रीव उत्तेजित हो गया। वह उड़कर आकाश में चला गया और समुद्र से एक विषधर सांप को पकड़कर उसी से बानरी सेना पर प्रहार किया। नागास्र से राम आहत हो गये। नंद अमृत-संजीवनी लाने के क्रम में हिमवंत पर्वत को ही उखाड़कर ले आया। औषधि के प्रयोग से राम स्वस्थ हो गये।

रावण की जन्म कुंडली देखने पर पता चला कि उसकी जीवनी उसके अंगूठे में है। राम ने उसे अंगूठा दिखाने के लिए कहा। उसने जैसे ही अंगूठा दिखाया, राम ने उस पर बाण प्रहार कर उसे मुर्छित कर दिया। आत्मसमपंण करने के बाद उसे मुक्त कर दिया गया। बौद्ध प्रभाव के कारण उसका वध नहीं किया गया। राम और रैषमा ने सीता के साथ सौ वर्ष बिताया। इसी बीच लोकापवाद के कारण सीता धरती में प्रवेश कर गयी। अंत में शाक्य मुनि कहते हैं कि इस कथा का नायक राम स्वयं वे ही थे और मैत्रेय रैषमा था।


 


1. Baily, H.W., The Ramayana in Khotan, Journal of Amerian Society, Vol.59, 1939, PP.460-468


Copyright Shri Devendra Nath Thakur © 2006