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कंपूचिया की राम कथा: रामकेर्ति
कंपूचिया की राजधानी फ्नाम-पेंह में एक बौद्ध संस्थान है जहाँ ख्मेर लिपि में दो हजार ताल पत्रों पर लिपिबद्ध पांडुलिपियाँ संकलित हैं। इस संकलन में कंपूचिया की रामायण की प्रति भी है। फ्नाम-पेंह बौद्ध संस्थान के तत्कालीन निदेशक एस. कार्पेल्स द्वारा रामकेर्ति के उपलब्ध सोलह सर्गों (१-१० तथा ७६-८०) का प्रकाशन अलग-अलग पुस्तिकाओं में हुआ था। इसकी प्रत्येक पुस्तिका पर रामायण के किसी न किसी आख्यान का चित्र है।१ कंपूचिया की रामायण को वहाँ के लोग 'रिआमकेर' के नाम से जानते हैं, किंतु साहित्य जगत में यह 'रामकेर्ति' के नाम से विख्यात है।
'रामकेर्ति' ख्मेर साहित्य की सर्वश्रेष्ठ कृति है। 'ख्मेर' कंपूचिया की भाषा का नाम है। इसके प्रथम खंड की कथा विश्वामित्र यज्ञ से आरंभ होती है और इंद्रजित वध पर आकर अंटक जाती है, दूसरे खंड में सीता त्याग से उनके पृथ्वी प्रवेश तक की कथा है। 'रामकेर्ति' का रचनाकार कोई बौद्ध भिक्षुक ज्ञात होता है, क्योंकि वह राम को नारायण का अवतार मानते हुए उनको 'बोधिसत्व' की उपाधि प्रदान करता है। इसके बावजूद 'रामकेर्ति' और वाल्मीकि रामायण में अत्यधिक साम्य है।
रामकेर्ति का आरंभ विश्वामित्र यज्ञ से होता है। एक असुर विशालकाय काक का रुप धारण कर विश्वामित्र का यज्ञ-विध्वंस करने का प्रयत्न करता है। काकनासुर का वध करने के लिए विश्वामित्र राम तथा लक्ष्मण को बुलाकर लाते हैं और उन्हें धनुष-बाण भी देते हैं।
कंपूचियाई रामायण के अनुसार राजा जनक यमुनातीर पर यज्ञ करने के लिए हल चला रहे थे, उसी समय उन्होंने सीता को एक बेड़े पर देखा और उसे प्राप्त कर पुत्रीवत पालन-पोषण किया। युवती होने पर जनक ने सीता के अपूर्व सौंदर्य को देखकर मंत्र द्वारा एक दिव्य धनुष की सृष्टि की। उसी समय उन्होंने प्रण किया कि जो इस धनुष को उठाने में समर्थ होगा, उसी से सीता का पाणिग्रहण होगा। सीता स्वयंवर के समय तेंतीस देवता बारी-बारी से धनुष परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो जाते हैं। अंत में राम धनुष पर बाण चढ़ा कर उसे छोड़ते हैं। यहाँ धनुभर्ंग की चर्चा नहीं हुई है, किंतु जनक का दूत दशरथ से कहता है कि धनुष छोड़ने पर मेघ गर्जना से दस हज़ार गुना विकराल ध्वनि हुई थी।
कैकेयी राम और लक्ष्मण दोनों के लिए चौदह वर्ष वनवास का वर मांगती है। यह सुनकर लक्ष्मण उसकी हत्या कर देना चाहते हैं, किंतु राम उन्हें शांत कर देते हैं। वन गमन क्रम में निद्रा देवी के आने पर लक्ष्मण उसे चौदह वर्षों तक अपने पास आने से मना कर देते हैं। वे निद्र देवी से क्षुधा को भी अपने निकट आने से मना करने के लिए कहते हैं। निद्रा देवी उनके समक्ष ऐसा करने की प्रतिज्ञा करती है।
सीता हरण के समय सीता की अंगूठी छीन कर रावण जटायु पर प्रहार करता है और वह आहत होकर ज़मीन पर गिर जाता है। रामकेर्ति के अनुसार हनुमान जब राम के पास जाते है, तब वे उनके कुंडल को देखकर उनको पहचान लेते हैं। अंजना ने अपने पुत्र से कहा था कि जो कोई उसका कुंडल देखने में समर्थ होगा, वही उसका स्वामी होगा। सुग्रीव मिलन का यहाँ दक्षिण-पूर्व एशिया की परंपरा के अनुसार वर्णन हुआ है। प्यासे राम के लिए लक्ष्मण पानी लाने जाते हैं। वे सुग्रीव के आँसुओं की धारा से जल भर लाते हैं। राम जब उसे पीते है, तब उसका स्वाद नमकीन मालूम पड़ता है। दल का स्रोत तलाशने के क्रम में सुग्रीव से राम की भेंट होती है।
वालि आहत होने से पूर्व राम के बाण को हाथ से रोक लेता है। राम इस शर्त पर उसे जीवित छोड़ देना चाहते हैं कि उसके शरीर पर बाण के घाव का निशान आजीवन रहेगा। वालि पराजित होकर जीने की अपेक्षा विष्णु के बाण से मरना श्रेयस्कर समझता है। बाण को हाथ से छोड़ देने पर वह उसके शरीर में प्रवेश कर जाता है और उसका प्राणांत हो जाता है।
लंका पहुँचने पर हनुमान रावण के राजभवन में प्रवेश कर जाते हैं। वे रावण और मंदोदरी के बाल एक साथ बांध देते हैं और मंत्र पढ़कर यह लिख देते हैं कि जब तक मंदोदरी रावण के सिर पर थप्पड़ नहीं मारेगी, वह बंधन नहीं खुलेगा। सेतु निर्माण के समय मछलियों द्वारा बाधा पहुँचाने पर राम समुद्र पर बाण प्रहार करने के लिए उद्यत होते हैं, तब समुद्र द्वारा क्षमा मांगने पर वे शांत होते हैं। रावण के दरबार में अंगद को बैठने के लिए कोई आसन नहीं दिया जाता है, तब वह अपनी पूँछ के कुंडल का ही उच्चासन बना लेता है और उसी पर बैठ जाता है। रामकेर्ति के आठवें सर्ग में इस प्रसंग का उल्लेख हुआ है।
दक्षिण-पूर्व एशिया की रामकथाओं में सीता त्याग की घटना के साथ एक नया आयाम जुड़ गया है, सीता द्वारा रावण का चित्र बनाना। रामकेर्ति में रावण का निकट
संबंधी अतुलय सीता की सखी बन जाती है। वह अनुनय-विनय कर सीता से रावण का चित्र बनवाती है और उसके अंदर स्वयं प्रवेश कर जाती है। सीता के बहुत प्रयत्न करने पर भी वह चित्र मिट नहीं पाता है। वह उसे पलंग के नीचे छिपा देती हैं। राम जैसे ही पलंग पर लेटते हैं, तीव्र ज्वर से पीड़ित हो जाते हैं। यथार्थ से अवगत होने पर वे लक्ष्मण से वन में ले जाकर सीता के वध करने का आदेश देते हैं और मृत सीता का कलेजा लाने के लिए कहते हैं। वन पहुँचकर लक्ष्मण जब सीता पर तलवार प्रहार करते हैं, तब वह पुष्पहार बन जाता है। सीता लक्ष्मण को वह पुष्पहार अर्पित करती है, तब वह फिर तलवार बन जाता है। उसी समय इंद्र मृग रुप धारण कर मर जाते हैं। लक्ष्मण उसी मृत मृग का कलेजा राम को दिखाने के लिए ले जाते हैं।
रामकेर्ति में सीता के पुत्रों के नाम राम लक्ष्मण और जप लक्ष्मण है। वाल्मीकि से धनुर्विद्या की शिक्षा ग्रहण करने के बाद वे अपने बाण से एक विशाल वृक्ष को नष्ट कर देते हैं जिससे अयोध्या में भूकंप होता है। ज्योतिष शास्र के ज्ञाताओं ने किसी महान राजा द्वारा बाण प्रहार को भूकंप का कारण बताया। उस राजा के तलाशने के लिए घोड़ा छोड़ा गया। भरत, शत्रुघ्न और हनुमान उसका अनुसरण कर रहे थे। सीता पुत्रों ने घोड़ा पकड़ लिया। उन्होंने हनुमान को युद्ध में पराजित कर दिया और उनके हाथ-पाँव बाँध कर उनके चेहरे पर लिख दिया कि उनका स्वामी ही उनके बंधन खोलने में समर्थ हो सकते हैं। भरत और लक्ष्मण के विफल होने पर स्वयं राम उनका बंधन खोलते हैं। बंधन खुलने पर हनुमान दोनों भाईयों को बंदी बनाकर अयोध्या ले जाते हैं। जब लक्ष्मण अपनी माता की अंगूठी की सहायता से अपने भाई को मुक्त करवाता है। फिर, सीता पुत्रों और राम के बीच युद्ध होता है। अंत में राम लक्ष्मण के बाण पुष्पहार बना गये और राम के बाण मिष्टान्न।
लक्ष्मण से सीता त्याग के यथार्थ को जानकर राम उनके पास गये। उन्होंने सीता से क्षमा याचना की, किंतु वे द्रवित नहीं हुईं। उन्होंने अपने दोनों पुत्रों को राम के साथ जाने दिया और स्वयं पृथ्वी में प्रवेश कर गयी। हनुमान ने पाताल जाकर सीता से लौटने का अनुरोध किया। उन्होंने उस आग्रह को भी ठुकरा दिया। रामकेर्ति की खंडित प्रति की कथा यहीं पर आकर अंटक जाती है।
1. Raghavan, V., The Ramayana in Greater India, P.50
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