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मंगोलिया की राम कथा
चीन के उत्तर-पश्चिम में स्थित मंगोलिया के लोगों को राम कथा की विस्तृत जानकारी है। वहाँ के लामाओं के निवास स्थल से वानर-पूजा की अनेक पुस्तकें और प्रतिमाएँ मिली हैं। वानर पूजा का संबंध राम के प्रिय पात्र हनुमान से स्थापित किया गया है।१ मंगोलिया में राम कथा से संबद्ध काष्ठचित्र और पांडुलिपियाँ भी उपलबध हुई हैं। ऐसा अनुमान किया जाता है कि बौद्ध साहित्य के साथ संस्कृत साहित्य की भी बहुत सारी रचनाएँ वहाँ पहुँची। इन्हीं रचनाओं के साथ रामकथा भी वहाँ पहुँच गयी। दम्दिन सुरेन ने मंगोलियाई भाषा में लिखित चार राम कथाओं की खोज की है।२ इनमें राजा जीवक की कथा विशेष रुप से उल्लेखनीय है जिसकी पांडुलिपि लेलिनगार्द में सुरक्षित है।
जीवक जातक की कथा का अठारहवीं शताब्दी में तिब्बती से मंगोलियाई भाषा में अनुवाद हुआ था जिसके मूल तिब्बती ग्रंथ की कोई जानकारी नहीं है। आठ अध्यायों में विभक्त जीवक जातक पर बौद्ध प्रभाव स्पष्ट रुप से दिखाई पड़ता है। इसमें सर्वप्रथम गुरु तथा बोधिसत्व मंजुश्री की प्रार्थना की गयी है। जीवक पूर्व जन्म में बौद्ध सम्राट थे। उन्होंने अपनी पत्नी तथा पुत्र का परित्याग कर दिया। इसी कारण उन्हें दोनों ने शाप दे दिया कि अगले जन्म में वे संतानहीन हो जायेंगे। जीवक की भेंट भगवान बुद्ध से हुई। उन्होंने श्रद्धा के साथ उनका प्रवचन सुना और उन्हें अपने निवास स्थान पर आमंत्रित किया। इस घटना के बाद जीवक की भेंट दस हज़ार मछुआरों से हुई। उन्होंने उन्हें अहिंसा का उपदेश दिया।
जीवक नामक राजा को तीन रानियाँ थीं। तीनों को कोई संतान नहीं थी। राजा वंशवृद्धि के लिए बहुत चिंतित थे। एक बार उन्होंने पुत्र का स्वप्न देखा। भविष्यवस्ताओं के कहने पर वे उंदुबरा नामक पुष्प की तलाश में समुद्र तट पर गये। वहाँ से पुष्प लाकर उन्होंने रानी को दिया। पुष्प भक्षण से रानी को एक पुत्र हुआ जिसका नाम राम रखा गया। कालांतर में राम राजा बने। उनके राज्य में प्रजा सुखी थी। उन्होंने अपने राज्य में बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु कुकुचंद को आमंत्रित किया।
लंका के एक दानव ने मृग का रुप धारण कर लिया था। उसका अगला धड़ सोना और पिछला चांदी का था। वह राम के राज्य में निवास करने वाले ॠषियों की तपस्या में बाधा पहुँचाता था। ॠषियों ने राम को बुलवाया। राम ने पत्थर से मृग की
एक आँख फोड़ दी। ॠषियों ने आशीर्वाद स्वरुप उन्हें अजेय शक्ति प्रदान की।
दानवों के देश में एक बूढ़ी औरत ने एक बच्ची को जन्म दिया। ज्योतिष शास्र के ज्ञाताओं ने कहा कि यदि वह लड़की जीवित रहती है, तो देश का नाश हो जायेगा। दानवों ने उसे एक बक्से में बंदकर समुद्र में फेंक दिया। वह बक्सा जंबू द्वीप चला गया जहाँ वह एक किसान को मिला। किसान ने उस बच्ची का पालन-पोषण किया। जब वह बड़ी हुई, तब उसने राम से उसका विवाह कर दिया।
दानवराज दशग्रीव को अपनी बहन द्वारा राम की पत्नी के सौंदर्य का पता चला। उसने अपने एक मंत्री को मनोहर मृग का रुप धारण कर राम के पास जाने के लिए कहा। वह मृग उन्हें लुभाकर दूर ले गया। राम जिस समय द्रुत गति से भागते हुए मृग का पीछा कर रहे थे, दानवराज उनकी पत्नी का अपहरण कर अपने देश ले गया।
राम अपनी पत्नी को तलाशते हुए बंदरों के राज्य में पहुँचे। वहाँ दो बंदर आपस में लड़ रहे थे। उनके नाम वालि और सुग्रीव थे। उन्होंने सुग्रीव के अनुरोध पर वालि का वध कर दिया। आभारवश सुग्रीव ने उन्हें बंदरों की विशाल सेना प्रदान की जिसके प्रधान हनुमान थे। राम वानरी सेना के साथ लंका पहुँचे। वे दानव राज को पराजित कर अपनी पत्नी के साथ देश लौट गये, जहाँ वे सुख से जीवन व्यतीत करने लगे।
1. Damdin Suren, T.S., The Ramayana in
Mangolia, The Ramayana Tradition in Asia, P.657
2. Raghvan, V., The Ramyana in Greater India, P.24
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