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रामलीला: कितने रंग, कितने रुप
दक्षिण-पूर्व एशिया के इतिहास में कुछ ऐसे प्रमाण मिलते है जिससे ज्ञात होता है कि इस क्षेत्र में प्राचीन काल से ही रामलीला का प्रचलन था। जवा के सम्राट वलितुंग के एक शिलालेख में एक समारोह का विवरण है जिसके अनुसार सिजालुक ने उपर्युक्त अवसर पर नृत्य और गीत के साथ रामायण का मनोरंजक प्रदर्शन किया था।१ इस शिलालेख की तिथि ९०७ई. है। थाई नरेश बोरमत्रयी (ब्रह्मत्रयी) लोकनाथ की राजभवन नियमावली में रामलीला का उल्लेख है जिसकी तिथि १४५८ई. है।२ बर्मा के राजा ने १७६७ई. में स्याम (थाईलैड) पर आक्रमण किया था। युद्ध में स्याम पराजित हो गया। विजेता सम्राट अन्य बहुमूल्य सामग्रियों के साथ रामलीला कलाकारों को भी बर्मा ले गया।३ बर्मा कि राजभवन में थाई कलाकारों द्वारा रामलीला का प्रदर्शन होने लगा। माइकेल साइमंस ने बर्मा के राजभवन में राम नाटक १७९५ई. में देखा था।४
आग्नेय एशिया के विभिन्न देशों में रामलीला के अनेक नाम और रुप हैं। उन्हें प्रधानत: दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है- मुखौटा रामलीला और छाया रामलीला। मुखोटा रामलीला के अंतर्गत इंडोनेशिया और मलेशिया के 'लाखोन', कंपूचिया के 'ल्खोनखोल' तथा बर्मा के 'यामप्वे' का प्रमुख स्थान है। इंडोनेशिया और मलयेशिया में 'लाखोन' के माध्यम से रामायण के अनेक प्रसंगो को मंचित किया जाता है।
कंपूचिया में रामलीला का अभिनय ल्खोनखोल के माध्यम के होता है। 'ल्खोन' इंडोनेशाई मूल का शब्द है जिसका अर्थ नाटक है। कंपूचिया की भाषा खमेर में खोल का अर्थ बंदर होता है। इसलिए 'ल्खोनखोल' को बंदरों का नाटक या हास्य नाटक कहा जा सकता है। 'ल्खोनखोल' वस्तुत: एक प्रकार का नृत्य नाटक है जिसमें कलाकार विभिन्न प्रकार के मुखौटे लगाकर अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं। इसके अभिनय में मुख्य रुप से ग्राम्य परिवेश के लोगो की भागीदारी होता है। कंपूचिया के राजभवन में रामायण के प्रमुख प्रसंगों का अभिनय होता था।
मुखौटा नाटक के माध्यम से प्रदर्शित की जाने वाली रामलीला को थाईलैंड में 'खौन' कहा जाता है। इसमें संवाद के अतिरिक्त नृत्य, गीत एवं हाव-भाव प्रदर्शन की प्रधानता होती है। 'खौन' का नृत्य बहुत कठिन और समय साध्य है। इसमें गीत और
संवाद का प्रसारण पर्दे के पीछे से होता है। केवल विदूषक अपना संवाद स्वयं बोलता है। मुखौटा केवल दानव और बंदर-भालू की भूमिका निभानेवाले अभिनेता ही लगाते हैं। देवता और मानव पात्र मुखौटे धारण नहीं करते।
बर्मा की मुखौटा रामलीला को यामप्वे कहा जाता है। बर्मा की रामलीला स्याम से आयी थी। इसलिए इसके गीत, वाद्य और नृत्य पर स्यामी प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता, किंतु वास्तविकता यह है कि बर्मा आने के बाद यह स्याम की रामलीला नहीं रह गयी, बल्कि यह पूरी तरह बर्मा के रंग डूब गयी। बर्मा के लोग हास्यरस के प्रेमी होते हैं। इसलिए यामप्वे में विदूषक की प्रधानता होती है। ऐसी स्थिति बहुत कम होती है, जब विदूषक रंगमंच पर उपस्थित न हो। रामलीला आरंभ होने के पूर्व एक-दो घंटे तक हास-परिहास और नृत्य-गीत का कार्यक्रम चलता रहता है।
विविधता और विचित्रता के कारण छाया नाटक के माध्यम से प्रदर्शित की जाने वाली रामलीला मुखौटा रामलीला से भी निराली है। इसमें जावा तथा मलेशिया के 'वेयांग' और थाईलैंड के 'नंग' का विशिष्ट स्थान है। जापानी भाषा में 'वेयांग' का अर्थ छाया है। इसलिए यह अंग्रेजी में 'शैडोप्ले' और हिंदी में 'छाया नाटक' के नाम से विख्यात है। इसके अंतर्गत सफ़ेद पर्दे को प्रकाशित किया जाता है और उसके सामने चमड़े की पुतलियों को इस प्रकार नचाया जाता है कि उसकी छाया पर्दे पर पड़े। छाया नाटक के माध्यम से रामलीला का प्रदर्शन पहले तिब्बत और मंगोलिया में भी होता था।
थाईलैंड में छाया-रामलीला को 'नंग' कहा जाता है। नंग के दो रुप है- 'नंगयाई' और 'नंगतुलुंग'। नंग का अर्थ चर्म या चमड़ा और याई का अर्थ बड़ा है। 'नंगयाई' का तात्पर्य चमड़े की बड़ी पुतलियों से है। इसका आकार एक से दो मीटर लंबा होता है। इसमें दो डंडे लगे होते हैं। नट दोनों हाथों से डंडे को पकड़कर पुतलियों के ऊपर उठाकर नचाता है। इसका प्रचलन अब लगभग समाप्त हो गया है।
'नंग तुलुंग' दक्षिणि थाईलैंड में मनोरंजन का लोकप्रिय साधन है। इसकी चर्म पुतलियाँ नंगयाई की अपेक्षा बहुत छोटी होती हैं। नंग तुलुंग के माध्यम से मुख्य रुप से थाई रामायण रामकियेन का प्रदर्शन होता है। थाईलैंड के 'नंग तुलुंग' और जावा तथा मलेशिया के 'वेयांग कुलित' में बहुत समानता है। वेयांग कुलित को वेयंग पूर्वा अथवा वेयांग जाव भी कहा जाता है। यथार्थ यह है कि थाईलैंड, मलयेशिया और
इंडोनेशिया में विभिन्न नामों से इसका प्रदर्शन होता है।
वेयांग प्रदर्शित करने वाले मुख्य कलाकार को 'दालांग' कहा जाता है। वह नाटक का केंद्र विंदु होता है। वह बाजे की ध्वनि पर पुतलियों को नचाता है। इसके अतिरिक्त वह गाता भी है। वह आवाज़ बदल-बदल कर बारी-बारी से विभिन्न पात्रों के संवादों को भी बोलता है, किंतु जब पुतलियाँ बोलती रहती हैं, बाजे बंद रहते हैं। वेयांग में दालांग के अतिरिक्त सामान्यत: बारह व्यक्ति होते हैं, किंतु व्यवहार में इनकी संख्या नौ या दस होती है।
'वेयांग' में सामान्यत: १४८ पुतलियाँ होती हैं जिनमें सेमार का स्थान सर्वोच्च है। सेमार ईश्वर का प्रतीक है और उसी की तरह अपरिभाषित और वर्णनातीत भी। उसकी गोल आकृति इस तथ्य का सूचक है कि उसका न आदि है और न अंत। उसके नारी की तरह स्तन और पुरुष की तरह मूँछ हैं।५ इस प्रकार वह अर्द्धनारीश्वर का प्रतीक है। जावा में सेमार को शिव का बड़ा भाई माना जाता है। वह कभी कायान्गन (स्वर्ग लोक) में निवास करता था, जहाँ उसका नाम ईसमय था।६ वेयांग का संबंध केवल मनोरंजन से ही नहीं, प्रत्युत आध्यात्मिक साधना से भी है।
१.
Santoso, Soewito, The old Javanese Ramayana, The Ramayana Tradition in Asia, P.23
2. The Ramayana in South-east Asia P.33
3. Raghvan. V., op.cit. P.140
४. वर्मा, सुधा, पूर्ववत्, पृ.२४५
५. Stange, Paul, Mystical Symbolism in Javanese Wayang Mythology, The South East Asian Review, 1977, P.115
6. Ibid, P.47
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