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चीन की राम कथा
चीनी साहित्य में राम कथा पर आधारित कोई मौलिक रचना नहीं हैं। बौद्ध धर्म ग्रंथ त्रिपिटक के चीनी संस्करण में रामायण से संबद्ध दो रचनाएँ मिलती हैं। 'अनामकं जातकम्' और 'दशरथ कथानम्'। फादर कामिल लुल्के के अनुसार तीसरी शताब्दी ईस्वी में 'अनामकं जातकम्' का कांग-सेंग-हुई द्वारा चीनी भाषा में अनुवाद हुआ था जिसका मूल भारतीय पाठ अप्राप्य है। चीनी अनुवाद लियेऊ-तुत्सी-किंग नामक पुस्तक में सुरक्षित है।१
'अनामकं जातकम्' में किसी पात्र का नामोल्लेख नहीं हुआ है, किंतु कथा के रचनात्मक स्वरुप से ज्ञात होता है कि यह रामायण पर आधारित है, क्योंकि इसमें राम वन गमन, सीता हरण, सुग्रीव मैत्री, सेतुबंधष लंका विजय आदि प्रमुख घटनाओं का स्पष्ट संकेत मिलता है। नायिका विहीन 'अनामकं जातकम्', जानकी हरण, वालि वध, लंका दहन, सेतुबंध, रावण वध आदि प्रमुख घटनाओं के अभाव के बावजूद वाल्मीकि रामायण के निकट जान पड़ता है। अहिंसा की प्रमुखता के कारण चीनी राम कथाओं पर बौद्ध धर्म का प्रभाव स्पष्ट रुप से परिलक्षित होता है।
'दशरथ कथानम्'२ के अनुसार राजा दशरथ जंबू द्वीप के सम्राट थे। राजा की प्रधान रानी के पुत्र का नाम लोमो (राम)। दूसरी रानी के पुत्र का नाम लो-मन (लक्ष्मण) था। राजकुमार लोमो में ना-लो-येन (नारायण) का बल और पराक्रम था। उनमें 'सेन' और 'रा' नामक अलौकिक शक्ति थी तीसरी रानी के पुत्र का ना पो-लो-रो (भरत) और चौथी रानी के पुत्र का नाम शत्रुघ्न था।
राजा तीसरी रानी पर आसक्त थे। वे उसकी इच्छापूर्ति हेतु सर्व न्योछावर करने की बात करते थे। रानी ने उनके वचन को धरोहर के रुप में रख छोड़ा था। कालांतर में राजा बीमार हो गये। उन्होंने राजकुमार लोमो को राजा बना दिया। उनके बालों को रेशम की डोरी से बांधा गया और सिर पर दिव्य मुकुट पहना दिया गया। छोटी रानी को लोमो का राजा बनना रास नहीं आया। राजा के कुछ स्वस्थ होने पर उसने पूर्व में दिये गये वचन के अनुसार अपने पुत्र पो-लो-रो को राजा बनाने के लिए कहा। राजा को अपने ज्येष्ठ पुत्र पर पूरा भरोसा था। उन्होंने उसे अपदस्थ कर पो-लो-रो को राजा बना दिया।
लोमो के अनुज ने उनसे इसका विरोध करने के लिए कहा, क्योंकि उनके पास 'सेन' और 'रा' नामक अलौकिक शक्ति थी, किंतु उन्होंने उत्तर दिया कि आज्ञाकारी पुत्र को पिता की इच्छा के प्रतिकूल आचरण नहीं करना चाहिए। छोटी माता को मेरे पूज्य पिता का स्नेह प्राप्त है। इसलिए वही सच्ची माता हैं। रामानुज चुप हो गये। पिता के आदेशानुसार वे दोनों बारह वर्षों के लिए वन चले गये।
राजा का स्वर्गवास हो गया। उस समय पो-लो-रो दूसरे देश में थे। उन्हें स्वदेश बुलाया गया और राजा बना दिया गया, किंतु परंपरा के प्रतिकूल आग्रज को अपदस्थ कर उन्हें राजा बनाया गया था। इसलिए उनके मन में अपनी माता के प्रति घृणा उत्पन्न हो गयी। वे सेना के साथ अपने अग्रज से मिलने पहाड़ परगये। लो-मन के मन में संदेह हुआ, किंतु लोमो के मन में किसी प्रकार का भ्रम उत्पन्न नहीं हुआ। उन्होंने पो-लो-रो से सेना के साथ आने का कारण पूछा,तो उसने बताया कि मार्ग में लुटेरों से बचने के लिए उसने ऐसा किया। उसने अपने अग्रज से स्वदेश लौटकर राज्य का शासन संभालने के लिए बार-बार अनुरोध किया, किंतु लोमो ने पिता की आज्ञा का उल्लंघन करना उचित नहीं समझा। अंतत: पो-लो-रो अपने अग्रज की चरण पादुका लेकर घर लौट गये और उन्हें राज सिंहासन पर स्थापित कर दिया।
पो-लो-रो चरण पादुका की पूजा करते थे और उससे आदेश लेकर शासन संचालन करते थे। लोमो को मालूम हो गया था कि पो-लो-रो उनकी चरण पादुका को आग्रज की तरह सम्मान देते हैं। इसलिए समय पूरा होने पर वे घर लौट गये। राजा का पद ग्रहण करने से इन्कार करने पर पो-लो-रो ने उन्हें यह कहकर निरुत्तर कर दिया कि परंपरानुसार ज्येष्ठ पुत्र ही राज सिंहासन का उत्तराधिकारी होता है। परंपरा भंग करना उचित नहीं है। लोमो राजा बने। देश धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया। कोई किसी रोग से पीड़ित नहीं रहा। जंबू द्वीप के लोगों की सुख-समृद्धि पहले से दस गुनी हो गयी।
1. रामकथा, पृ.४६
2. Raghuvir and yamamoto, The Ramayana in China, PP. 27-30
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