मित्रलाभ
- सुवर्णकंकणधारी
बूढ़ा बाघ और मुसाफिर की कहानी
- कबुतर,
काक, कछुआ, मृग और चूहे की कहानी
- मृग, काक
और गीदड़ की कहानी
- भैरव नामक
शिकारी, मृग, शूकर, साँप और
गीदड़ की कहानी
- धूर्त
गीदड़ और हाथी की कहानी
सुहृद्भेद
- एक
बनिया, बैल, सिंह और गीदड़ों की कहानी
- धोबी,
धोबन, गधा और कुत्ते की कहानी
- सिंह, चूहा
और बिलाव की कहानी
- बंदर, घंटा
और कराला नामक कुटनी की कहानी
- सिंह और
बूढ़ शशक की कहानी
- कौए का जोड़ा और काले
साँप की कहानी
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हितोपदेश
मित्रलाभ
५. धूर्त गीदड़ और कर्पूरतिलक हाथी की कहानी
ब्रह्मवन में कर्पूरतिलक नामक हाथी था। उसको देखकर सब गीदड़ों ने सोचा,""यदि यह किसी तरह से मारा जाए तो उसकी देह से हमारा चार महीने का भोजन होगा।'' उसमें से एक बूढ़े गीदड़ ने इस बात की प्रतिज्ञा की -- मैं इसे बुद्धि के बल से मार दूँगा। फिर उस धूर्त ने कर्पूरतिलक हाथी के पास जा कर साष्टांग प्रणाम करके कहा -- महाराज, कृपादृष्टि कीजिये। हाथी बोला -- तू कौन है, सब वन के रहने वाले पशुओं ने पंचायत करके आपके पास भेजा है, कि बिना राजा के यहाँ रहना योग्य नहीं है, इसलिए इस वन के राज्य पर राजा के सब गुणों से शोभायमान होने के कारण आपको ही राजतिलक करने का निश्चय किया है।
जो कुलाचार और लोकाचार में निपुण हो तथा प्रतापी, धर्मशील और नीति में कुशल हो वह पृथ्वी पर राजा होने के योग्य होता है।
राजानं प्रथमं विन्देत्ततो भार्या ततो धनम्।
राजन्यसति लोकेsस्मिन्कुतो भार्या कुतो धनम्।।
पहले राजा को ढ़ूंढ़ना चाहिये, फिर स्री और उसके बाद धनको ढूंढ़े, क्योंकि राजा के नहीं होने से इस दुनिया में कहाँ स्री और कहाँ से धन मिल सकता है ?
राजा प्राणियों का मेघ के समान जीवन का सहारा है और मेवके नहीं बरसने से तो लोक जीता रहता है, परंतु राजा के न होने से जी नहीं सकता है।
इस राजा के अधीन इस संसार में बहुधा दंड के भय से लोग अपने नियत कार्यों में लगे रहते है और न तो अच्छे आचरण में मनुष्यों का रहना कठिन है, क्योंकि दंड के ही भय से कुल की स्री दुबले, विकलांग रोगी या निर्धन भी पति को स्वीकार करती है।
इस लिए लग्न की घड़ी टल जाए, आप शीघ्र पधारिये। यह कह उठ कर चला फिर वह कर्पूरतिलक राज्य के लोभ में फँस कर गीदड़ों के पीछे दौड़ता हुआ गहरी कीचड़ में फँस गया। फिर उस हाथी ने कहा -- ""मित्र गीदड़, अब क्या करना चाहिए ? कीचड़ में गिर कर मैं मर रहा हूँ। लौट कर देखो। गीदड़ ने हँस कर कहा -- "" महाराज, मेरी पूँछ का सहारा पकड़ कर उठो, जैसा मुझ सरीखे की बात पर विश्वास किया, तैसा शरणरहित दुख का अनुभव करो।
यदासत्सड्गरहितो भविष्यसि भविष्यसि।
तदासज्जनगोष्ठिषु पतिष्यसि पतिष्यसि।।
जैसा कहा गया है -- जब बुरे संगत से बचोगे तब जानो जीओगे, और जो दुष्टों की संगत में पड़ोगे तो मरोगे।
फिर बड़ी कीचड़ में फँसे हुए हाथी को गीदड़ों ने खा लिया।
विषय
सूची
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विग्रह
- पक्षी
और बंदरो की कहानी
- बाघंबर
ओढ़ा हुआ धोबी का गधा और
खेतवाले की कहानी
- हाथियों का
झुंड और बूढ़े शशक की कहानी
- हंस, कौआ
और एक मुसाफिर की कहानी
- नील
से रंगे हुए एक गीदड़ की कहानी
- राजकुमार
और उसके पुत्र के बलिदान की कहानी
- एक
क्षत्रिय, नाई और भिखारी की कहानी
संधि
- सन्यासी
और एक चूहे की कहानी
- बूढ़े
बगुले, केंकड़े और मछलियों की कहानी
- सुन्द,
उपसुन्द नामक दो दैत्यों की कहानी
- एक
ब्राह्मण, बकरा और तीन धुताç की कहानी
- माधव
ब्राह्मण, उसका बालक, नेवला और
साँप की कहानी
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