मित्रलाभ
- सुवर्णकंकणधारी
बूढ़ा बाघ और मुसाफिर की कहानी
- कबुतर,
काक, कछुआ, मृग और चूहे की कहानी
- मृग, काक
और गीदड़ की कहानी
- भैरव नामक
शिकारी, मृग, शूकर, साँप और
गीदड़ की कहानी
- धूर्त
गीदड़ और हाथी की कहानी
सुहृद्भेद
- एक
बनिया, बैल, सिंह और गीदड़ों की कहानी
- धोबी,
धोबन, गधा और कुत्ते की कहानी
- सिंह, चूहा
और बिलाव की कहानी
- बंदर, घंटा
और कराला नामक कुटनी की कहानी
- सिंह और
बूढ़ शशक की कहानी
- कौए का जोड़ा और काले
साँप की कहानी
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हितोपदेश
सुहृद्भेद
४.
बंदर, घंटा और कराला नामक
कुटनी की कहानी
श्रीपर्वत के बीच में एक ब्रह्मपुर नामक नगर
था। उसके शिखर पर एक घंटाकर्ण नामक
राक्षस रहता था, यह मनुष्यों से उड़ती हुई
खबर सुनी जाती है। एक दिन घंटे को
ले कर भागते हुए किसी चोर को व्याघ्र ने
मार डाला ओर उसके हाथ से गिरा हुआ घंटा
बंदरों के हाथ लगा। बंदर उस घंटे को
बार- बार बजाते थे। तब नगरवासियों ने देखा कि वह मनुष्य खा
लिया गया और प्रतिक्षण में घंटे का बजना
सुनाई देता है। तब सब नागरिक लोग
""घंटाकर्ण क्रोध से मनुष्यों को खाता है
और घंटे को बजाता है'', यह कह कर नगर
से भाग चले।
बाद में कराला नामक कुटनी ने सोचा कि यह घंट का
शब्द बिना अवसर का है, इसलिए क्या
बंदर घंटे को बजाते हैं ? इस बात को
अपने आप जान कर राजा से कहा -- जो कुछ धन खर्च
करो, तो मैं इस घंटाकर्ण राक्षस को वश
में कर लूँ। फिर राजा ने उसे धन दिया
और कुटनी ने मंडल बनाया और उसमें
गणेश आदि की पूजा का चमत्कार दिखला कर
और बंदरों को अच्छे लगने वाले फल
ला कर वन में उनको फैला दिया। फिर
बंदर घंटे को छोड़ कर फल खाने लग गये
और कुटनी घंटे को ले कर नगर में आई
और सब जनों ने उसका आदर किया।
विषय
सूची
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विग्रह
- पक्षी
और बंदरो की कहानी
- बाघंबर
ओढ़ा हुआ धोबी का गधा और
खेतवाले की कहानी
- हाथियों का
झुंड और बूढ़े शशक की कहानी
- हंस, कौआ
और एक मुसाफिर की कहानी
- नील
से रंगे हुए एक गीदड़ की कहानी
- राजकुमार
और उसके पुत्र के बलिदान की कहानी
- एक
क्षत्रिय, नाई और भिखारी की कहानी
संधि
- सन्यासी
और एक चूहे की कहानी
- बूढ़े
बगुले, केंकड़े और मछलियों की कहानी
- सुन्द,
उपसुन्द नामक दो दैत्यों की कहानी
- एक
ब्राह्मण, बकरा और तीन धुताç की कहानी
- माधव
ब्राह्मण, उसका बालक, नेवला और
साँप की कहानी
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