मध्य प्रदेश के भील कलाकार
गोमा पार्गी – राजस्थान के भील कलाकार
गोमा पार्गी का 70 वर्ष की उम्र में देहांत हो गया जिन्होंने कला का विशाल भंडार छोड़ा था, इससे आज उनके पुत्र, भीमा पार्गी तथा अन्य कलाकारों को प्रेरणा मिलती है। गोमा पार्गी 10 वर्ष की आयु से घरों तथा छोटे मंदिरों की दीवारों पर चित्रकारी करते रहे थे। 1984 में उन्होंने चित्रकारी की आधुनिक सामग्री का इस्तेमाल करना शुरू किया। उनके परदादा, छत्र पार्गी, दादा रूपा पार्गी तथा उनके पिता नारायण पार्गी सुविख्यात कलाकार थे और उनकी कृतियों को घरों तथा मंदिरों की दीवारों पर अभी भी देखा जा सकता है। उनकी दादी, उदी पार्गी अपने घर की दीवारों पर चित्रकारी किया करती थी।
गोमा पार्गी की चित्रकारी जनजातीय अनुसंधान संस्थान के संग्रहालय टीआरआई, उदयपुर में प्रदर्शित की जाती है। वह भील के जीवन के भिन्न–भिन्न पहलुओं को चित्रित किया करते थे। उनकी एक विषय-वस्तु गोटरेज जो शादी-विवाहों के दौरान घर की दीवारों पर चित्रित प्रमुख मंडनो है,
गोटरेज में ज्यामितीय आकृतियां देखी जा सकती हैं जिनमें अर्थपूर्ण परतें हैं। कुछ कलाकारों के लिए गोटरेज की मुख्य विषय-वस्तु अपनी पत्नियों के साथ गणेश है। गोमा पार्गी द्वारा पशुओं और मनुष्यों का चित्रण अत्यंत अभिव्यंजक है। उनके चित्रों में चरवाहे हमेशा सचेत होते हैं ताकि ऐसा न हो जाए कि कोई बाघ अथवा भालू उनके किसी मवेशी को ले भागे। वस्तुत: इन्या पर्वत पर 12 शिव मंदिर बनाए गए थे जिससे कि ईश्वर उनके जानवरों की रक्षा करें।
गोमा पार्गी को वर्ष 2001 में राजस्थान ललित कला अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया गया।