Buddhist Fables
- The Story of Ruru Deer
- The Story of Two Swans
- The Hare on The Moon
- The Story of Chaddanta Elephant
- The Story of Great Monkey
- The Story of The Two Deer
- The Story of a Buffalo
- Silava Elephant
- The Wise Monkey
- The Story of the Golden Swan
- The Story of The Great Ape
- The Mighty Fish
- Story of the Monkey King
- Lion and Jackal
- Somdatta
- The Story of the Crows
- The Monkey Brothers
- The Story of Nigrodha Deer
- Kalbahu
- Nandivisala
- Coronation of Owl
- The Feast of the Dead
- The Heart of the Monkey
- The Story of a Rooster
- The Story of a Tigeress
- The Pigeon and The Crow
- The Story of Romaka Pigeon
- The Story of Khardiya Deer
- The Thankless Monkey
- Can A Fool Ever Act Good!
- The Story of a Tortoise
- Jackal –The Arbitrator
- The Story of a Snake Charmer
- The Leather Garment
- The Giant Crab
- Mahilaimukha Elephant
- The Story of Vinilaka
Buddhist Classics
- The Sacrifice of Vessantara
- The Wisdom of Vidhura Pandita
- Chullabodhi – The Conqueror of Anger
- The Story of Kushinagar
- The Virtue of Forbearance
- Matanga – The World’s First Crusader of Untouchability
- The Temptation of Isisanga
- The Flight of Sakka
- Mahajanaka’s Renunciation
- The Wine-Jar
- The Sacrifice of Sivi
- The Box of the Monster
- The Lotus Stalk
- Kandari – The Handsome Prince
- Ghat: The Virtuous King
- Supparaka – The Ancient Mariner
- Sankhapala: The Naga King
- Champeyya
- The Baveru Island
- The Great Gambler
- The Story of The Dumb Prince
- The Naive House-Holder
- The Jewelled Serpent
- The Mango-Thief
- The Foot-Print Reader
- The Story of Sutasoma
- The Story of Sudasa
- The Little Bowman
- The Envoy of Belly
- Story of a Drummer
- The King, Who Knew The Language Of Animals
- The Happy Man
- Sama: The Good Son
Life and Legends of Buddha
- Gotama Buddha
- Birth Story of Gotama
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- Sage Asita’s Visit
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- Story of Renunciation
- The Buddha’s Victory over Mara
- The Personality of the Buddha
- Nalgiri Elephant
- Story of Kumara Kassapa
- Dhamma-Chakka-Pavattana-Katha
- The Buddha’s Teaching of Abhidhamma
- Buddha's Visit to Rahula Mata
- The Savatthi Miracles
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- Story of Parinibbana
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- The Spiritual Journey of Janapada Kalyani
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The Illustrated Jataka & Other Stories of the Buddha by C. B. Varma Introduction | Glossary | Bibliography
दान में प्राप्त बछड़े को एक ब्राह्मण ने बड़े ही ममत्व के साथ पाला-पोसा और उसका नाम नन्दीविसाल रखा। कुछ ही दिनों में वह बछड़ा एक बलिष्ठ बैल बन गया।
नन्दीविसाल बलिष्ठ ही नहीं एक बुद्धिमान और स्वामिभक्त बैल था। उसने एक दिन ब्राह्मण के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए कहा, ” हे ब्राह्मण ! आपने वर्षों मेरा पालन-पोषण किया है। आपने तन-मन और धन से मेरा उपकार किया है। मैं आपका ॠणी हूँ। अत: आपके उपकार के बदले में आपके प्रचुर धन-लाभ के लिए सहायता करना चाहता हूँ, और एक युक्ति सुझाता हूँ। चूँकि मेरे जैसे बलिष्ठ बैल इस संसार में अन्यत्र कहीं नहीं है, इसलिए हाट जाकर आप हज़ार स्वर्ण मुद्राओं की सट्टा लगाएँ कि आपका बैल सौ बड़ी-बड़ी गाड़ियों का बोझ इकट्ठा खींच सकता है।”
ब्राह्मण को वह युक्ति पसन्द आयी और बड़े साहूकारों के साथ उसने बाजी लगा ली। पूरी तैयारी के साथ जैसे ही नन्दीविसाल ने सौ भरी गाड़ियों को खींचने की भंगिमा बनाई, ब्राह्मण ने तभी नन्दीविसाल को गाली देते हुए कहा, ” दुष्ट ! खींच-खींच इन गाड़ियों को फटाफट।” नन्दी को ब्राह्मण की भाषा पसन्द नहीं आई। वह रुष्ट होकर वहीं जमीन पर बैठ गया। फिर ब्राह्मण ने हज़ारों युक्तियाँ उसे उठाने के लिए लगाई। मगर वह टस से मस न हुआ। साहूकारों ने ब्राह्मण का अच्छा मज़ाक बनाया और उससे उसकी हज़ार स्वर्ण-मुद्राएँ भी ले गये। दु:ख और अपमान से प्रताड़ित वह हारा जुआरी अपने घर पर पड़ी एक खाट पर लेटकर विलाप करने लगा।
तब नन्दीविसाल को उस ब्राह्मण पर दया आ गयी। वह उसके पास गया और पूछा, ” हे ब्राह्मण क्या मैं ने आपके घर पर कभी भी किसी चीज का कोई भी नुकसान कराया है या कोई दुष्टता या धृष्टता की है?” ब्राह्मण ने जब “नहीं” में सिर हिलाया तो उसने पूछा, ” क्यों आपने मुझे सभी के सामने भरे बाजार में ठदुष्ट’ कह कर पुकारा था।” ब्राह्मण को तब अपनी मूर्खता का ज्ञान हो गया। उसने बैल से क्षमा मांगी। तब नन्दी ने ब्राह्मण को दो हज़ार स्वर्ण-मुद्राओं का सट्टा लगाने को कहा।
दूसरे दिन ब्राह्मण ने एक बार फिर भीड़ जुटाई और दो हज़ार स्वर्ण मुद्राओं के दाँव के साथ नन्दीविसाल को बोझ से लदे सौ गाड़ियों को खींचने का आग्रह किया। बलिष्ठ नन्दीविसाल ने तब पलक झपकते ही उन सारी गाड़ियों को बड़ी आसानी से खींच कर दूर ले गया।
ब्राह्मण ने तब दो हज़ार स्वर्ण मुद्राओं को सहज ही प्राप्त कर लिया।