Buddhist Fables

Buddhist Classics

Life and Legends of Buddha

The Illustrated Jataka & Other Stories of the Buddha by C. B. Varma Introduction | Glossary | Bibliography

044 – इसिसंग का प्रलोभन

The old ascetic (top left). The doe drinking water (bottom). The old ascetic nursing the baby Isisanga (centre). Alambusa (right).

गंगा के किनारे एक तपस्वी रहता था। एक दिन जब वह नदी के स्नान कर बाहर आया तो उसी स्थान पर जाकर एक हिरणी ने पानी पिया जिससे वह तत्काल गर्भवती हो गई। संयासी ने जब हिरणी की अवस्था को देखा तो उसे यह ज्ञात हुआ कि वह उसके बच्चे की माँ बनने वाली थी।

कुछ ही दिनों के बाद हिरणी ने एक बच्चे को जन्म दिया। तपस्वी ने उसका नाम इसिसंग रखा। वह संयासी पुत्र भी पिता के संरक्षण में एक महान् तपस्वी बनने लगा।

कुछ वर्षों के बाद जब तपस्वी ने अपना अंतकाल निकट पाया तो उसने इसिसंग को अंतिम उपदेश हेतु बुलाया और उसने उसे नारी के मोह-पाश से मुक्त रहने का परामर्श दिया। फिर उसने हमेशा के लिए अपनी आँखें मूंद ली।

कालान्तर में इसिसंग एक महान् संयासी के रुप में मान्य होने लगा जिससे शक्र को देव-लोक हिलता प्रतीत हुआ। अत: इसिसंग को संयासी पथ से भ्रष्ट करने के लिए शक्र ने अलम्बुसा नामक एक अति-सुंदर अप्सरा को पृथ्वी पर भेजा।

उस दिन इसिसंग जब गंगा-स्नान कर नदी से बाहर निकल ही रहा था कि उसकी दृष्टि अलम्बुसा पर पड़ी जो ठीक उसके सामने खड़ी था। उसके रुप-सौन्दर्य के जादू से इसिसंग अपने होश खो बैठा। अलम्बुसा ने तब उसे इशारों से खींचती उसकी कुटिया में ले गई। तभी से वह तीन वर्षों तक अलम्बुसा के आलिंगन में बंधा रहा। एक दिन जब उसे होश आया तब उसने जाना कि उसने वर्षों की साधनाओं का फल खो दिया था। उसका संयास-व्रत भंग हो चुका था।

वह फूट-फूट कर रोने लगा। अलम्बुसा को उसकी दशा पर बहुत दया आई। उसने इसिसंग से माफ़ी मांगी। इसिसंग ने उस पर कोई दोष आरोपित नहीं किया, क्योंकि वह जानता था कि भूल तो उसकी अपनी ही थी।

अलम्बुसा जब देव-लोक पहुँची तो शक्र ने उसे उसकी सफलता के लिए बधाई दी और कोई भी वर मांगने को कहा। तब खिन्न अलम्बुसा ने देवराज से यह वर मांगा कि वे उसे फिर किसी ऐसे कार्य में न लगाये जिससे किसी तपस्वी का शील भंग हो।