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The Illustrated Jataka & Other Stories of the Buddha by C. B. Varma Introduction | Glossary | Bibliography

078 – बुद्ध का व्यक्तित्व

बुद्ध के व्यक्तित्व के संदर्भ में कम ही जानकारियाँ प्राप्त हैं। उनके विरोधी और आलोचकों को भी यह स्वीकार्य है कि वे “सुन्दर” और “आकर्षक” व्यक्तित्व के स्वामी थे। रुप-लावण्य, कद-काठी और तेजस्विता से वे सभी का मन मोह लेते थे। दीर्घनिकाय के ‘लक्खण-सुत’ के अनुसार अन्य बुद्धों की तरह वे भी बत्तीस गुणों से सम्पन्न थे, जो एक चक्रवर्ती सम्राट या एक बुद्ध ही पा सकते हैं। काली आँखें, लम्बी जिह्मवा, हथेली का घुटनों से नीचे तक पहुँचना आदि गुण उपर्युक्त लक्षणों के कुछ उदाहरण हैं।

बुद्ध की वाणी के आठ लक्षण मान्य हैं, यथा- प्रवाह; स्पष्टता एवं सुबोधता; माधुर्य; स्फुटता (श्राव्य); अनुबंधता अथवा अविच्छेदन; परिस्फुटता; गांभीर्य तथ अनुमादिता।

बुद्ध आठ प्रकार का सभाओं को संबोधित करते थे, यथा- कुलीन, विद्वत्जन, गृहस्थ, संयासी, चातुर्महाराज, तावतिंस लोक के देवगण तथा मार।

उनकी चर्चा इस प्रकार थी कि वे प्रत्यूष काल में उठ कर नित्य-कर्मों से निवृत हो एकांतवास करते थे। फिर बाह्य चीवर धारण कर कभी बड़े भिक्षु समुदाय के साथ या फिर अकेले भिक्षाटन को निकलते थे।

जब वे अकेले भिक्षाटन को जाते तो अपनी कुटिया का द्वार पूरा करते था। यह भी माना जाता है कि वे यदा-कदा कुछ खीणामव (आश्रव) जिनके क्षीण होते हैं भिक्षुओं के साथ उड़ते हुए आराम से बाहर जाते थे।

भिक्षाटन के बाद वे अपने पैर धोते। फिर भिक्षुओं से समाधि आदि विषयों पर चर्चा करते, या फिर उन्हें शिक्षा देते। समय मिलने पर ही वे आराम या शयन करते थे। वे प्राय: अपनी दिव्य-चक्षु से धर्म-ग्रहण करने योग्य व्यक्ति का अवलोकन करते।

शाम को वे फिर स्नान करते और रात के पहले पहर तक भिक्षुओं की सुमार्ग की देशना देते; दूसरे पहर देवों को। रात्रि के अंतिम पहर वे चंक्रमण करते या फिर समाधिस्थ होते। उसके बाद ही वे शयन करते थे। अगले दिन आँखे खुलने पर वे पुन: धर्म-देशना के याग्य व्यक्तियों (वेनेच्य) का अवलोकन करते।