Buddhist Fables

Buddhist Classics

Life and Legends of Buddha

The Illustrated Jataka & Other Stories of the Buddha by C. B. Varma Introduction | Glossary | Bibliography

037 – विनीलक-कथा

एक बार एक स्वर्णिम राज-हंस मिथिला में रुका, जहाँ उसने एक कौवी के साथ सहवास किया जिससे काले मेघ के समान एक कौवा पैदा हुआ जिसका नाम उसके वर्ण और छवि के अनुकूल विनीलक रखा गया। कुछ ही दिनों में हंस और कौवी अलग-अलग हो गये और हंस फिर से हिमालय के निकटवर्ती एक सरोवर में वास करने लगा। वहाँ उसने एक सुंदर हंसी के साथ विवाह कर एक नया घर-संसार बसाया। हंसी ने दो सुन्दर सफेद हंसों को जन्म दिया।

हंस-पुत्र जब बड़े हो गये और उन्हें विनीलक के अस्तित्व का ज्ञान हुआ तो पिता की आज्ञा ले, वे विनीलक से मिलने मिथिला जा पहुँचे। गंदे कूड़े के ढेर पर रहते विनीलक को उन्होंने अपने साथ पिता के पास हिमालय चलने का निमंत्रण दिया। विनीलक ने उनका निमंत्रण सहर्ष स्वीकार कर लिया। तब दोनों ही हंसों ने एक लकड़ी के दोनों छोरों से पकड़ विनीलक को उस पर सवार होने का आग्रह किया। जब विनीलक ने वैसा किया तो उन्होंने हिमालय की तरफ उड़ना आरम्भ कर दिया। मार्ग में उन्हें मिथिला के राजा विदेह की सवारी दिखाई पड़ी जिसे चार सफेद घोड़े खींच रहे थे। राजा की सवारी देख विनीलक चिल्ला उठा “देख! राजा की सवारी उसके सफेद घोड़े ज़मीन पर खींच रहे हैं किन्तु मेरी सवारी तो सफेद अनुचर आसमान पर! दोनों हंसों को कौवे की अपमान-जनक वाणी से क्रोध तो बहुत आया मगर पिता की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए उन्होंने उसे नीचे नहीं गिराया और हिमालय में लाकर पिता के सामने रख दिया। फिर उन्होंने विनीलक के अपशब्दों से भी पिता को अवगत कराया। विनीलक के गुणों को सुन पिता ने अपने दोनों पुत्रों को फिर से विलीलक को मिथिला छोड़ आने को कहा क्योंकि वह हिमालय पर रहने योग्य नहीं था। तब हंसों ने उसे उठाकर फिर मिथिला पहुँचा आये जहाँ वह मलों के ढेर में अपना वास बना काँव-काँव करता हुआ रहने लगा।