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The Illustrated Jataka & Other Stories of the Buddha by C. B. Varma Introduction | Glossary | Bibliography

023 – बंदर का हृदय

किसी नदी के तट पर एक वन था। उस वन में एक बंदर निवास करता था, जो वन के फल आदि खा कर अपना निर्वाह करता था। नदी में एक टापू भी था और टापू और तट के बीच में एक बड़ी सी चट्टान भी थी। जब कभी बंदर को टापू के फल खाने की इच्छा होती वह उस चट्टान पर उस टापू पर पहुँच जाता और जी भर अपने मनचाहे फलों का आनंद उठाता।

उसी नदी में घड़ियालों का एक जोड़ी भी रहती थी। जब भी वह उस हृष्ट-पुष्ट बंदर को मीठे-रसीले फलों का आनंद उठाते देखती तो उसके मन में उस बंदर के हृदय को खाने की तीव्र इच्छा उठती। एक दिन उसने नर घड़ियाल से कहा, “प्रिय ! अगर तुम मुझसे प्रेम करते हो तो मुझे उसका हृदय खिला कर दिखा दो,” नर घड़ियाल ने उसकी बात मान ली।

दूसरे दिन बंदर जैसे ही टापू पर पहुँचा नर-घड़ियाल टापू और तट के बीच के चट्टान के निचले हिस्से पर चिपक गया। वह बंदर एक बुद्धिमान प्राणी था। शाम के समय जब वह लौटने लगा और तट और टापू के बीच के चट्टान को देखा तो उसे चट्टान की आकृति में कुछ परिवर्तन दिखाई पड़ा। उसने तत्काल समझ लिया कि जरुर कुछ गड़बड़ी है। तथ्य का पता लगाने के लिए उसने चट्टान को नमस्कारकरते हुए कहा, “हे चट्टान मित्र ! आज तुम शांत कैसे हो ? मेरा अभिवादन भी स्वीकार नहीं कर रही हो ? ” घड़ियाल ने समझा, शायद चट्टान और बंदर हमेशा बात करते रहते हैं इसलिए उसने स्वर बदल कर बंदर के नमस्कार का प्रत्युत्तर दे डाला। बंदर की आशंका सत्य निकली। बंदर टापू में ही रुक तो सकता था मगर टापू में उसके निर्वाह के लिए पर्याप्त आहार उपलब्ध नहीं था। जीविका के लिए उसका वापिस वन लौटना अनिवार्य था। अत: अपनी परेशानी का निदान ढूंढते हुए उसने घड़ियाल से कहा, “मित्र ! चट्टान तो कभी बातें नहीं करती ! तुम कौन हो और क्या चाहते हो?” दम्भी घड़ियाल ने तब उसके सामने प्रकट हो कहा, ” ओ बंदर ! मैं एक घड़ियाल हूँ और तुम्हारा हृदय अपनी पत्नी को खिलाना चाहता हूँ। ” तभी बंदर को एक युक्ति सूझी। उसने कहा, ” हे घड़ियाल ! बस इतनी सी बात है तो तुम तत्काल अपनी मुख खोल दो, मैं सहर्ष ही अपने नश्वर शरीर को तुम्हें अर्पित करता हूँ।” बंदर ने ऐसा इसलिए कहा कि वह जानता था कि जब घड़ियाल मुख खोलते हैं, तो उनकी आँखें बंद हो जाती हैं।

फिर जैसे ही घड़ियाल ने अपना मुख खोला, बंदर ने तेजी से एक छलांग उसके सिर पर मारी और दूसरी छलांग में नदी के तट पर जा पहुँचा।

इस प्रकार अपनी सूझ-बूझ और बुद्धिमानी से बंदर ने अपने प्राण बचा लिए।