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The Illustrated Jataka & Other Stories of the Buddha by C. B. Varma Introduction | Glossary | Bibliography

030 – मूर्ख करे जब बुद्धिमानी का काम !

वाराणसी नरेश के राज-बगीचे में कभी एक माली रहता था। वह दयावान् था और उसने बगीचे में बंदरों को भी शरण दे रखी थी। बंदर उसके कृपापात्र और कृतज्ञ थे।

एक बार वाराणसी में कोई धार्मिक त्यौहार मनाया जा रहा था। वह माली भी सात दिनों के उस जलसे में सम्मिलित होना चाहता था। अत: उसने बंदरों के राजा को अपने पास बुलाया और अपनी अनुपस्थिति में पौधों को पानी देने का आग्रह किया। बंदरों के राजा ने अपनी बात सहर्ष स्वीकार कर ली। जब माली बाग से चला गया तो उसने अपने सारे बंदर साथियों को बुलाकर उनसे पौधों को पानी देने की आज्ञा दी। साथ ही उसने उन्हें यह भी समझाया कि बंदर जाति उस माली की कृतज्ञ है इसलिए वे कम से कम पानी का प्रयोग करें क्योंकि माली ने बड़े ही परिश्रम से पानी जुटाया था। अत: उसने उन्हें सलाह दी कि वे पौधों की जड़ों की गहराई माप कर ही उन पर पानी ड़ाले। बंदरों ने ऐसा ही किया। फलत: पल भर में बंदरों ने सारा बाग ही उजाड़ दिया।

तभी उधर से गुजरते एक बुद्धिमान् राहगीर ने उन्हें ऐसा करते देख टोका और पौधों को बर्बाद न करने की सलाह दी। फिर उसने बुदबुदा कर यह कहा-“जब कि करना चाहता है अच्छाई। मूर्ख कर जाता है सिर्फ बुराई।।”