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The Illustrated Jataka & Other Stories of the Buddha by C. B. Varma Introduction | Glossary | Bibliography

053 –  नाविक सुप्पारक

सुप्पारक नाम के एक कुशल नाविक ने अचानक अपनी आँखों की रोशनी खो दी। इस कारण उसे कुछ दिनों तक एक राजा के यहाँ नौकरी करनी पड़ी। राजा ने उसकी कद्र नहीं की। अत: वह वहाँ से इस्तीफा देकर अपने घर बैठ गया।

एक दिन उसकी योग्यताओं को सुन कुछ समुद्री व्यापारी उसके पास पहुँचे। उन्होंने उसे एक जहाज का कप्तान बना दिया। फिर सुप्पारक की कप्तानी में वे अपने जहाज का दूर विदेश ले गये।

मार्ग में एक भयंकर तूफान आया जिससे जहाज अपने रास्ते से भटक गया। फिर भी सुप्पारक के कौशल से वह खुरमाला, अग्गिमाला, दपिमाला आदि जगहों से होता हुआ वापिस मारुकुच्छ पहुँच गया। रास्ते में सुप्पारक दूर स्थान से अनेक रत्न और कीमती द्रव्य भी निकलवा लाया था, जिसे पाकर व्यापारियों की क्षति की भरपाई भी हो गई।