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वेंकट श्याम – मध्य प्रदेश के गोंड कलाकार
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वेंकट श्याम सात वर्ष की आयु से चित्रकारी और पेंटिंग करते आ रहे हैं। कागज का हरेक टुकड़ा, यहां तक कि उनके घर की दीवारों पर खाली स्थान उनके चारकोल की चित्रकारी से आच्छादित हैं। जब 1983 में वेंकट के चाचा, जंगढ तथा श्याम ने उनके घर का दौरा किया तो उनका ध्यान दीवार पर शिर्डी के साईं बाबा के चित्र तथा समाचार-पत्र के हाशियों पर घरों तथा कीड़े-मकौड़े के चित्रों पर गया। उन्होंने वेंकट को सिन्झोना ग्रामीण स्कूल में अपना अध्ययन पूरा करके चित्रकारी करने के लिए भोपाल आने के लिए कहा।
वेंकट ने ठीक वैसा ही किया। वह 10’x10’ के विशाल कैनवासों तथा पोस्टर कलर से-और सबसे अधिक, अनेक आकारों में उपलब्ध ब्रशों से मुग्ध हो गए। उनकी पहली पेंटिंग देवी खेरो माई की थी जो बुरी आत्माओं से गांव की रक्षा करती हैं तथा जिनकी उन्होंने भोपाल के लिए रवाना होने के पहले प्रार्थना की थी। जब जंगढ ने पेंटिंग देखी और उन्हें गधा कहा तो वेंकट को पता चल गया कि उनके चाचा उनके कार्य से प्रसन्न हैं।
बाद में, वेंकट दिल्ली गए जहां विभिन्न मौकों पर उन्होंने बावर्ची, रिक्शा चालक, राजमिस्त्री, बिजली मिस्त्री के रूप में कार्य किया और अपनी सारी कमार्इ को कला सामग्री की खरीद में लगाया। यहां वह प्राय: सुज्ञात समकालीन कलाकार जे. स्वामीनाथम के पास जाते थे। स्वामीजी के स्नेहमय व्यवहार तथा वेंकट को एक साथी कलाकार के रूप में मानते हुए जो सम्मान उन्होंने दर्शाया, उससे वेंकट का उत्साह हमेशा और भी बढ़ जाता था। जंगढ श्याम की 2001 में मृत्यु से वेंकट को गहरा आघात लगा। उन्होंने तत्काल उसी समय निर्णय लिया कि अब वह पेंटिंग के सिवा कुछ भी नहीं करेंगे।
संस्कृति विशिष्ट चित्रकारी से लेकर अत्यधिक अमूर्त विषय-वस्तुओं तक वेंकट ने सभी कुछ किया है। उनका मानना है कि किसी भी कलाकार को परंपरा की मान्यता रखने वाली विषयवस्तुओं में अवश्य ही एक नवीनता लानी चाहिए। ‘‘जब कोई व्यक्ति मेरी पेंटिंग देखता है, तो उस व्यक्ति को अवश्य ही यह मानना चाहिए कि वे परंपरागत हैं किंतु साथ ही उनमें नए तत्व शामिल होने चाहिएं,’’ उनका कहना है। अपने तीन दशकों के कलात्मक सफर के दौरान वेंकट ने अपनी रचनाओं में आधुनिक तथा परंपरागत शैलीगत प्रभावों, दोनों को एकीकृत किया है।
वेंकट ने भारत तथा कई यूरोपीय देशों की विस्तृत यात्रा की है जहां उनकी कृतियों को प्रदर्शित किया गया है । वर्ष 2002 में उन्हें मध्य प्रदेश सरकार द्वारा राज्य हस्तशिल्प पुरस्कार से नवाजा गया। वह तारा डगलस द्वारा गोंड लोक कथा की निर्मित एक एनिमेटेड फिल्म के समन्वयक भी थे जिसे स्कॉटलैंड में सबसे लंबी कथा प्रतियोगिता में एक पुरस्कार प्राप्त हुआ।
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