दुर्गा बाई – मध्य प्रदेश के गोंड कलाकार

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दुर्गाबाई की चित्रकारी की सर्वाधिक आकर्षक विशेषता कथा कहने की उनकी क्षमता है। उनके चित्र अधिकांशत: गोंड परधान समुदाय के देवकुल से लिए गए हैं। दुर्गाबाई को लोककथाओं को चित्रित करने में भी मजा आता है। इसके लिए वह अपनी दादी की आभारी हैं जो उन्‍हें अनेक कहानियां कहती थीं। दुर्गाबाई की कृति उनके जन्‍म स्‍थान बुरबासपुर, मध्‍यप्रदेश के मांडला जिले के गांव पर आधारित है।

दुर्गाबाई जब छह वर्ष की थीं तभी से उन्‍होंने अपनी माता के बगल में बैठकर डिगना की कला सीखी जो शादी-विवाहों और उत्‍सवों के मौकों पर घरों की दीवारों और फर्शों पर चित्रित किए जाने वाली परंपरागत डिजायन है। दुर्गा ने गोबर से घर की दीवारें लेपने से लेकर विभिन्‍न रंगों की गीली मिट्टी एकत्र करने तक हर तरह के काम का आनंद उठाया है। उनके चित्र बेहतरीन थे और उनकी कला की मांग हमेशा ज़ोरों पर रहती थी।

दुर्गा फसल कटाई उत्‍सव नवाखल का स्‍मरण करती हैं। जब खूब फसल होती थी तो एक आनंदोत्‍सव मनाया जाता था। पर फसल हमेशा अच्छी नहीं होती थी और हालांकि उनके मातापिता यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश करते थे कि उनके बच्‍चे भूखे ना रहें, तथापि उनके प्रयास प्राय: ही व्‍यर्थ हो जाते थे। फिर भी नन्‍ही दुर्गा उस दीवार के सामने बैठकर फूलों के चित्रों में तल्‍लीन हो कर अपनी परेशानियों को भूल जाती थी जो उनका कैनवास हुआ करती थी और उसके पाँचों भाई बहन खेलते रहते थे।

जब दुर्गाबाई बड़ी हुई तो वह  सुभाष व्‍यास से विवाह करके भोपाल चली गईं। सुभाष व्‍यास ने पहले ही खुद को एक कलाकार के तौर पर स्‍थापित कर लिया था। उनके बहनोई, जंगढ सिंह श्‍याम, दुर्गाबाई की रचना से प्रभावित होकर उन्‍हें चित्रकारी के लिए प्रोत्‍साहित करते थे। दुर्गाबाई के विषय अधिकांशत: देवियां रही हैं जैसे रातमाईमुरखरी, रात्रि की पहरी, महारालिन माता जो भूतों से गांव की रक्षा करती हैं; खेरो माता, बुरे लोगों से सुरक्षा प्रदान करती हैं, बूढ़ी माई फसल की रक्षक; कुलशाहीनमाता जिनकी स्‍तुति फसल बोते समय की जाती थी। दुर्गा ने सर्वोच्‍च देव, बड़ा देव तथा चुला देव के भी चित्र बनाएं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि घर का चूल्‍हा हमेशा जलता रहे।

1996 में आनंद सिंह श्‍याम ने दुर्गाबाई को भारत भवन में अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगाने के लिए आमंत्रित किया। उनके चित्रों में से एक चित्र जिसमें अविवाहित लड़कियों को वंदना करते हुए दिखाया गया था, चंडीगढ़ के कलेक्‍टर द्वारा लिया गया। उसके बाद से उन्‍होंने भोपाल, दिल्‍ली, देहरादून, खजुराहो, इंदौर, रायपुर में लगभग प्रत्‍येक प्रदर्शनी तथा मुंबई के  जहांगीर आर्ट गैलरी में हिस्‍सा लिया है। 2003 में दुर्गाबाई को चेन्‍नई में तारा पब्लिशिंग द्वारा आयोजित कार्यशाला में आमंत्रित किया गया था और उसके बाद से कई प्रकाशकों के लिए किताबों को चित्रित करती आ रही हैं।

2004 में दुर्गाबाई को हस्‍तशिल्‍प विकास परिषद द्वारा सम्‍मानित किया गया था। 2008 में दुर्गाबाई और दो अन्‍य गोंड कलाकारों, राम सिंह उरवेटी तथा भज्‍जू श्‍याम को तारा पब्लिशिंग द्वारा प्रकाशित बच्‍चों की किताब “द नाइट लाइफ आफ ट्रीज” में उनके चित्रों के लिए इटली में बोलोनारागज्‍जी पुरस्‍कार से नवाजा गया था। दुर्गाबाई को वर्ष 2006-2007 के लिए आईजीएनसीए स्‍कालरशिप से भी अलंकृत किया गया था। जब कभी दुर्गाबाई को कला प्रदर्शनी में हिस्‍सा लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है, वह  यह सुनिश्चित करती हैं कि उनके तीन बच्‍चे भी उनके साथ जाएं। सभी तीनों बच्‍चों ने चित्रकारी शुरू कर दी है जो उनके गर्वित माता-पिता के लिए खुशी की बात है जिन्‍हें इस बात का विश्‍वास है कि गोंड चित्रकला की परंपरा अगली पीढ़ी द्वारा आगे बढ़ाई जाएगी।