कला बाई – मध्य प्रदेश के गोंड कलाकार

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कला बाई जो अपनी कलात्‍मक अभिव्‍यक्ति के लिए कैनवास, ब्रश और एक्रिलिक रंग का इस्‍तेमाल करने वाली प्रथम गोंड परधान महिला है, बाघों तथा रे‍नडियर, वृक्षों और पक्षियों के चित्र बनाने का लुत्‍फ उठाती हैं। उनकी चित्रकारी में बाघ उन्‍हें विशेष रूप से प्रिय हैं क्‍योंकि वे उन्‍हें अमरकंटक में उनके बचपन की याद दिलाते हैं जब बाघ उनके आसपास वाले जंगलों में घूमते रहते थे। अपने बचपन में उन्होंने बाघ के कई रूपों को देखा था जिन्‍हें वह अपने चित्रों में उतारना चाहती हैं।

जब कला बाई नौ वर्ष की थीं और पतनगढ़ में रहती थीं तो वह और अन्‍य बच्‍चे अपने परिवारों की बकरियों तथा बैलों को नदी के किनारे घास चराने के लिए ले जाया करते थे। इस समूह में सबसे बड़ा बच्‍चा जंगढ सिंह श्‍याम, कला की माता के सौतेले भाई थे। कला बाई बड़े चाव से याद करती हैं कि किस तरह जंगढ ने एक बार एक पानी के सर्प को मछली समझकर पकड़ लिया था और फिर बाद में अत्‍यधिक हंसी और शोरगुल के बाद इसे वापस पानी में फेंकना पड़ा था। बच्‍चे नदी में उछल-कूद करते हुए, एक दूसरे पर पानी के छींटे मारते हुए बहुत अधिक मजा करते थे, जबकि जानवर घास चरते रहते थे।

भारत भवन में ही कला को सबसे पहले रंग और कागज चित्रकारी करने के लिए दिए गए थे। उस समय तक, उनकी शादी आनंद सिंह श्‍याम से हो गई थी जो वहां ग्राफिक विभाग में कार्य करते थे। कला, एक कलाकार ने कागज पर पेंट करने से इनकार कर दिया और इस बात पर जोर दिया कि वह इसके बजाए दीवार पर अपने चित्र बनाएंगी। उन्‍होंने दीवार पर एक बाघ का चित्र बनाया और सभी लोगों जिन्‍होंने इसे देखा, और इसकी अत्‍यधिक प्रशंसा की गई थी।

जब मध्‍यप्रदेश से विभाजित करके छत्‍तीसगढ़ बनाया गया तो कला बाई और आनंद सिंह श्‍याम ने मध्‍यप्रदेश का नया नक्‍शा बनाया। इस नक्‍शे का विमोचन भारत के तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति डा. ए. पी. जे. अब्‍दुल कलाम द्वारा किया गया था। डा. कलाम ने उनसे उनकी संस्‍कृति तथा जीवन-शैली के बारे में अनेक प्रश्‍न पूछे। बाद में उन्‍होंने कर्मा नृत्‍य की उनकी एक पेंटिंग खरीदी।

एक अन्‍य स्‍मरणीय घटना तब घटी, जब स्‍कॉटलैंड के एक फिल्‍म एनिमेटर जेस्‍ली ने कला बाई और अन्‍य कलाकारों को गोंड लोककथा को चित्रांकित करने के लिए काम पर लगाया जिसे बाद में तारा द्वारा एनिमेटेड फिल्‍म में परिणत किया गया। इस फिल्‍म को स्‍कॉटलैंड में टॉलेस्‍ट स्‍टोरी कंपीटिशन में पुरस्‍कार प्राप्‍त हुआ।

कला बाई अपने पुत्र संभव तथा पुत्री अनिता को भारत भर में पेंटिंग कैम्‍प तथा कार्यशालाओं में ले जाया करती थीं। अब, यद्यपि दोनों बच्‍चे स्‍कूल में हैं और अपनी बोर्ड की परीक्षाओं (X तथा XII) में शामिल हो रहे हैं तथापि, वे अपने माता-पिता की परंपरा को जारी रख रहे हैं और अपने बचे हुए समय में उन्‍होंने चित्रकारी शुरू कर दी है।