मोहन सिंह श्याम – मध्य प्रदेश के गोंड कलाकार

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पतनगढ़ के मोहन सिंह श्‍याम की खुशी का ठिकाना न रहा जब जंगढ सिंह श्‍याम द्वारा उनकी दो पेंटिंग्‍स चुनी गयीं और उन्हें उज्‍जैन में अखिल भारतीय कालीदास समारोह में भेजा गया। जब पेंटिंग्‍स की बिक्री हो गई तो मोहन सिंह श्‍याम को इस बात की खुशी हुई कि उन्‍होंने आय का दूसरा स्रोत भी पा लिया है।

दोनों चित्रों की विषयवस्‍तु समान है। पहले में, उन्‍होंने अपने पदचिन्‍हों के साथ एक सड़क का चित्र बनाया था। ‘‘हमेशा सड़क पर कोई न कोई पहले चलता है और अपने पीछे पदचिन्‍ह छोड़ जाता है। बाद में लोग उन पदचिन्‍हों को देखते हैं और आसानी से उस रास्ते पर चलते हैं।’’ दूसरी पेंटिंग में हवा को चित्रित किया गया जिसकी परिकल्‍पना मोहन ने एक छोटे वृक्ष के रूप में की और धीरे-धीरे उसका प्रसार जैसे जैसे हवा तेज होती जाती है। हवा रास्ते को साफ कर देती है जिससे कि अन्य व्‍यक्ति उस पर चल सकें’’। ये पेंटिंग्‍स गोंड चित्रकला की वर्तमान शैली के प्रवर्तक जंगढ सिंह श्‍याम से प्रेरित थीं।

एक कलाकार के तौर पर मोहन सिंह श्‍याम का सफर उनके ग्रामीण पालन-पोषण को समर्पित है। उन्‍हें उन जानवरों तथा पक्षियों का चित्रण करना पसंद है जिन्‍हें उन्‍होंने पतनगढ़ में बड़े होते हुए देखा था।

वह पांच वर्ष के थे जब उन्‍होंने अपनी माता राजा बाई के साथ अपने घर की दीवारों पर चित्रकारी शुरू की। उनके पिता, जगत राम ने उन्‍हें प्रोत्‍साहित किया कि वह महोत्‍सवों के दौरान अपनी कलाकृति से अपनी माता की सहायता करें।

मोहन उन बच्‍चों को जंगढ सिंह और श्‍याम और जे स्‍वामीनाथन के बारे में बताते हैं जो पतनगढ़ में प्रतिवर्ष पेंटिंग्‍स कार्यशाला में हिस्‍सा लेते हैं कि ‘‘उनकी वजह से हम अपने आप को कलाकारों के रूप में स्‍थापित करने  में समर्थ रहे हैं और उनकी वजह से विश्‍व को गोंड लोगों तथा उनकी संस्‍कृति की अब जानकारी हुई है।’’ जब मोहन पहली बार भोपाल आए तो उन्‍होंने एक खानसामा के रूप में कार्य किया। एक दिन जंगढ ने उन्‍हें चित्रकारी में हाथ आजमाने के लिए कहा। उन्‍होंने मोहन के मिट्टी के चित्र देखे थे और उन्‍हें मोहन की काबिलियत पर विश्‍वास था। यह मोहन के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन था।

मोहन ने अपनी पेंटिंग्‍स दिल्‍ली, उज्‍जैन, पंजाब, खजुराहो, नासिक, रायपुर, अमरकंटक तथा भोपाल में प्रदर्शित की है। वह भोपाल में वर्ष 2004 में वेस्‍ट हॉलैण्‍ड एनिमेशन फिल्‍म वर्कशॉप में शामिल कलाकारों में भी थे। वह आईजीआरएमएस संग्रहालय में दिहाड़ी मजदूर के रूप में कार्य करते हैं। संग्रहालय में एक दीवार पर अन्‍य कलाकारों के कार्य के साथ-साथ उनकी कृति का चित्रण है।

मोहन की पत्‍नी धनिया बाई भी एक सुस्‍थापित कलाकार हैं। उनकी दस वर्षीय पुत्री कुंती श्‍याम पहले से ही एक होनहार कलाकार हैं हालांकि किर्ती श्‍याम, छोटी पुत्री में अभी ऐसी कोई प्रवृत्ति प्रदर्शित नही हुई है। उनका दो वर्षीय पुत्र दानेश्‍याम रंगों के साथ खेलना पसंद करता है और खुशी से चिल्‍लाता है-‘‘पेंटिंग्‍स!  पेंटिंग्‍स!”।